क्यों 'हजारा' मुसलमानों को पाकिस्तान से मिटाने की हो रही है कोशिश ?
नई दिल्ली-पिछले शनिवार की बात है, पाकिस्तानी हजारा मुसलमान आखिरकार अपने समाज के 11 कोयला खदान मजदूरों को दफनाने के लिए राजी हो गए। इन सबको आतंकवादी संगठन इस्लामिक स्टेट (islamic state) ने 3 जनवरी को मार डाला था। मृतकों के शवों को दफनाने के लिए यह शिया मुस्लिम समुदाय तभी राजी हुआ, जब पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान (Imran Khan) क्वेटा पहुंचे और मारे गए लोगों को मुआवजा देने का ऐलान किया। अगर रिसर्च पर यकीन करें तो बहुसंख्यक सुन्नी मुसलमानों का अल्पसंख्यक शिया हजारों को मिटाने का यह खेल सदियों पुराना है, जो कभी खत्म नहीं हुआ है, भले ही अब इसका शक्ल बदल चुका है और इसका ठेका दहशतगर्दी संगठनों ने ले लिया है।
मुस्लिम आतंकी संगठनों के निशाने पर हैं
पाकिस्तान और उसके पड़ोसी मुल्क अफगानिस्तान में शिया हजारों का उत्पीड़न कोई नया मामला नहीं है। उन्हें जब भी चाहते हैं तालिबान, इस्लामिक स्टेट या फिर दूसरे सुन्नी मुस्लिम आतंकवादी संगठन निशाना बनाते रहते हैं, उनके साथ बर्बरता के साथ पेश आते हैं और उनका नरसंहार करते हैं। अगर इतिहास को टटोलें तो इस समुदाय की आबादी उन्हें उत्पीड़नों की वजह से अब काफी कम हो चुकी है। सात साल पहले जेम्स बी मिनाहान की एक किताब आई थी- एथनिक ग्रुप्स ऑफ नॉर्थ, ईस्ट एंड सेंट्रल एशिया: ऐन एन्साइक्लोपीडिया(2014), जिसमें उन्होंने बताया है कि हजारा मुसलमानों का कत्लेआम कोई इस सदी की बात नहीं है। यह सिलसिला 18वीं सदी से ही चला आ रहा है।
सुन्नी मुसलमानों के टारगेट पर रहे हैं हजारा मुस्लिम
1773 के आसपास का वाक्या है, हजाराजात के पर्वतीय क्षेत्र, जिसे आज का मध्य अफगानिस्तान कह सकते हैं, उसे पश्तून शासक अहमद शाह दुर्रानी के अधीन अफगान साम्राज्य में मिला लिया गया था। पश्तून शासन में बहुसंख्यक सुन्नी मुसलमानों की वजह से तभी से शिया हजारा मुसलमानों का उत्पीड़न शुरू हो गया। 18वीं से 19वीं सदी के बीच स्थिति ऐसी बनती चली गई कि वो मध्य अफगानिस्तान की उपजाऊ जमीन को छोड़कर सूखे और बेतरतीब पहाड़ी इलाकों में अपना नया ठिकाना बसाने को मजबूर हो गए। रिसर्च से यह बात साबित हुई है कि अपनी विशिष्ट पहचान, नस्ल और धर्म ने हजारों को दूसरों से अलग रखा।
अफगानिस्तान में बहुसंख्यक से अल्पसंख्यक बन चुके हैं हजारे
हजारा हजारगी बोलते हैं, जो कि दारी फारसी की करीबी भाषा है और आज के अफगानिस्तान की आधिकारिक भाषा है। यह शारीरिक तौर पर मंगोलों की तरह होते हैं और उनकी बोलचाल, खास शब्द और मुहावरों में मध्य एशियाई तुर्की का प्रभाव नजर आता है। इसकी वजह से यह पाकिस्तान में अपने पड़ोसियों और अफगानिस्तान में मौजूद दूसरे समाज से अलग लगते हैं। मिनाहान की रिसर्च के मुताबिक 19वीं सदी में अफगानिस्तान में हजारा मुसलमानों की जनसंख्या वहां की कुल आबादी का करीब 67 फीसदी थी। उसके बाद से उनको निशाना बनाकर लगातार हुई हिंसा, उत्पीड़न और नरसंहारों की वजह से आज उनकी जनसंख्या घटकर केवल 10 से 20 रह गई है। हालांकि, यह आंकलन सिर्फ अनुमानों पर आधारित है, क्योंकि कोई आधिकारिक जनगणना के आंकड़े मौजूद नहीं हैं।
पाकिस्तान हजारों के खिलाफ बढ़ गए हैं हमले
पाकिस्तान में 2013 से हजारा मुसलमानों के खिलाफ होने वाली नस्ली हिंसा में अचानक तेजी आ गई थी, जब क्वेटा के आसपास तीन अलग-अलग बम धमाकों में हजारा इलाकों में 200 से ज्यादा लोग मारे गए थे। उन घटनाओं के बाद पाकिस्तान के शिया समुदाय में पाकिस्तानी सरकार के खिलाफ नाराजगी काफी बढ़ गई थी और उन्होंने शहर की सुरक्षा व्यवस्था पुख्ता होने तक शवों को दफनाने से इनकार कर दिया था। जब पाकिस्तानी हुक्कमरानों की ओर से कदम उठाए गए तभी, शवों को दफनाया जा सका था। तब तीन बम धमाकों में से एक की जिम्मेदारी सुन्नी आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-झंगवी (Lashkar-e-Jhangvi) ने ली थी। लेकिन, 3 जनवरी की वारदात के बाद फिर से सवाल उठ रहे हैं कि क्या अल्पसंख्यक हजारा मुसलमानों को मिटाने का मिशन अभी भी नहीं थमा है? क्या पाकिस्तान में उन्हें पूरी तरह मिटा दिया जाएगा? क्योंकि पड़ोसी अफगानिस्तान में तो उनकी संख्या बहुत ही कम बच गई है।