पेशावर हमला: वो लाशों को गोलियों से छलनी कर मौत की तसल्ली कर रहे थे
नयी
दिल्ली
(ब्यूरो)।
खून
किसी
का
भी
गिरे
जहां
नस्ल
ए
आदम
का
ही
होता
है।
बच्चे
सरहद
पार
के
सहीं
हर
छाती
का
सुकून
होता
है।।
दुनिया में शायद ही कोई ऐसा शब्द बना हो जिसका इस्तमाल पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान के पेशावर में हुए घटना की निंदा के लिए किया जा सके। क्या आप उस हैवानियत की कल्पना कर सकते हैं कि मासूम बच्चों का भोला चेहरा देखने के बाद भी उन हैवानों का दिल नहीं पसीजा। आपको बता दें कि मंगलवार की दोपहर पेशावर के आर्मी स्कूल पर तहरीक ए तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) के आतंकियों ने हमला कर दिया। इंसानियत को शर्मसार कर देने वाली इस घटना में 132 बच्चों सहित 141 लोगों की मौत हो गई है।
इतने में ही एक आतंकी चिल्लाया, सीटों और बेंचों के नीचे कई छात्र छिपे हैं। वहां जाओ और उन्हें मारो।' मैंने बेंच के नीचे से झांककर देखा कि काले जूतों का एक जोड़ा पहने कोई चला आ रहा है। जो शायद हमारी तलाश में था। ऑडिटोरियम में की जा रही अंधाधुंध गोलीबारी से अचानक मेरे दोनों पैरों में गोली लग गई। मुझे भयानक दर्द हो रहा था। मगर मैंने तय किया कि मैं मौत से खेलूंगा। मैंने सबसे पहले अपनी टाई को मोड़कर अपने मुंह में दबाया ताकि मेरे मुंह से डर के मारे कोई चीख न निकल जाए। मैं वहीं अपनी सांसे रोककर और आंखें बंद कर लेट गया।
बड़े काले जूतों वाला शख्स हमारे करीब यह देखने आया कि कोई जिंदा तो नहीं। वह हर शव को गोली मार रहा था। मैं भी अपनी आंखें बंद कर गोली लगने का इंतजार कर रहा था, मगर वह आया मुझे अपनी बंदूक से हिला-डुलाकर चला गया। शायद यह मौत की छुअन थी। वह आतंकी फिर वहां से चला गया। छात्र ने बताया कि उसके जाने के बाद मेरा शरीर काफी कांप रहा था। आखिरकार मुझे बेहोशी आ गई। मैं मौत को इतने करीब से महसूस करने के अहसास को नहीं भूल पाऊंगा।