इमरान खान ने कश्मीरी पंडितों के लिए पावन शारदा पीठ को दी की हरी झंडी, जानें क्या है इसकी अहमियत
इस्लामाबाद। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान की सरकार ने कश्मीरी हिंदुओं की भावना के मद्देनजर शारदा पीठ कॉरिडोर को खोलने का फैसला किया है। न्यूज एजेंसी एएनआई की ओर से इस बात की जानकारी दी गई है। इस कॉरिडोर को खोलने के लिए कश्मीर हिंदु पिछले कई वर्ष से मांग कर रहे थे। पिछले वर्ष नवंबर में कहा था करतारपुर कॉरिडोर के बाद वह यहां पर स्थित हिंदूओं के लिए महत्वपूर्ण धार्मिक स्थलों को खोलने पर विचार कर रहे हैं। उस समय भारतीय मीडिया से बातचीत करते हुए इमरान ने पीओके में स्थित शारदा पीठ और पंजाब प्रांत में स्थित कटासराज मंदिर का जिक्र किया। जम्मू कश्मीर के जाने-माने प्रोफेसर अयाज रसूल नाजकी साल 2007 में शारदा पीठ गए थे और वह पहले भारतीय थे जिन्होंने इस श्राइन को देखा था। यह श्राइन कश्मीरी पंडितों के लिए बहुत अहम है।
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पीओके मुजफ्फराबाद से 160 किलोमीटर दूर
शारदा पीठ को शारदा पीठम भी कहते हैं और यह नीलम घाटी में स्थित शारदा यूनिवर्सिटी के सामने ही है। पीओके में लाइन ऑफ कंट्रोल (एलओसी) पर स्थित मुजफ्फराबाद से यह 160 किलोमीटर दूर एक छोटे से गांव में आता है। इस गांव को शारदी या सारदी कहते हैं। इस गांव में नीलम नदी जिसे भारत में किशनगंगा के नाम से जानते हैं, वह मधुमति और सरगुन की धारा से मिल जाती है। शारदा पीठ न सिर्फ हिंदुओं बल्कि बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए भी बहुत अहम है। यहां से कालहाना और आदि शंकर जैसे दार्शनिक निकले हैं। कश्मीरी पंडित शारदा पीठ को काफी अहम मानते हैं और कहते है कि ये तीन देवियों से मिलकर बनी मां शक्ति का का स्वरूप है- शारदा, सरस्वती और वागदेवी जिसे भाषा की देवी मानते हैं।
क्या है कश्मीरी पंडितों के लिए इसकी अहमियत
हिंदुओं और बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए मार्तंड सूर्य मंदिर और अमरनाथ मंदिर के बाद शारदा पीठ की महत्ता है। कहते हैं कि शारदा पीठ उन 18 महाशक्ति पीठ में से एक है जहां पर मां सती के शरीर के अंग गिरे थे। कश्मीरी पंडित मानते हैं कि मुनि शांडिल्य जो ब्राह्मण नहीं थे उन्होंने यहां पर मां शारदा की प्रार्थना पूरे समर्पण भाव से की थी और मां शारदा ने उन्हें खुद दर्शन दिए थे। देवी शारदा ने उन्हें शारदा जंगलों की देखभाल करने का आदेश भी दिया था। जब मुनि शांडिल्य रास्ते में थे तो उन्हें पहाड़ी के पूर्वी छोर पर भगवान गणेश के दशन हुए। यहां से वह किशनगंगा पहुंचे थे और नदी में स्नान किया। इसके बाद उनका पूरा शरीर सोने का हो गया था। इसी समय देवी शारदा ने अपने तीनों स्वरूपों के दर्शन उन्हें कराए थे और फिर उन्हें अपने घर आने का आमंत्रण भी दिया। जब शांडिल्य मुनी धार्मिक क्रिया की तैयारी कर रहे थे तभी उन्होंने महासिंधु नदी से पानी लिया और आधा पानी शहद में बदल गया था। यहां से जो धारा निकली उसे ही मधुमति धारा के नाम से जाना गया।
बंटवारे के बाद से दूर कश्मीरी पंडित
बंटवारे के बाद से ही शारदा मंदिर से कश्मीरी पंडित दूर हैं। लेकिन साल 2007 में एक अहम पड़ाव आया जब कश्मीर के प्रोफेसर अयाज रसूल नाजकी को यहां जाने का मौका मिला। जम्मू कश्मीर चैप्टर के इंडियन काउंसिल फॉर कल्चरल रिलेशंस (आईसीसीआर) के रीजनल डायरेक्टर नाजकी के हवाले से इंडियन एक्सप्रेस ने लिखा है कि मंदिर, अच्छाई और बुराई का प्रतीक है और माना जाता है कि देवी शारदा ने ज्ञान के पात्र को बचाया था और फिर वह उसे अपने सिर पर लेकर इन्हीं पहाड़ों से होकर गुजरीं। इसके बाद उन्होंने इस पात्र को जमीन खोद कर गाड़ दिया और इसे छिपा दिया। उन्होंने बताया कि इसके बाद देवी शारदा खुद एक पत्थर में परिवर्तित हो गई ताकि वह इस ज्ञान पात्र को ढंक सकें। इसलिए ही शारदा मंदिर के फर्श पर एक चौकोर पत्थर रखा है जो मंदिर की फर्श को ढंकने का काम करता है।
यहां पर थी सबसे बड़ी लाइब्रेरी
प्रोफेसर नाजकी ने बताया है कि भले ही कश्मीरी पंडित इस श्राइन के दर्शन की इजाजत मांगते हों लेकिन इस अहम धार्मिक स्थल की अहमियत हर कश्मीरी के लिए है क्योंकि यह साझा विरासत को आगे बढ़ाता है। नाजकी ने 'इन सर्च ऑफ रूट्स' में लिखा है, 'कनिष्क शासनकाल के समय शारदा, सेंट्रल एशिया में सबसे बड़ी शैक्षिक संस्थान था। यहां पर बौद्ध धर्म के अलावा इतिहास, भूगोल, संरचना विज्ञान, तर्क और दर्शनशास्त्र की शिक्षा दी जाती थी।' उन्होंने बताया है कि इस यूनिवर्सिटी ने अपनी खुद की एक लिपि भी विकसित की थी जिसे शारदा के नाम से जानते थे। एक समय पर यहां पर पांच हजार छात्र पढ़ते थे और यूनिवर्सिटी में दुनिया की सबसे बड़ी लाइब्रेरी भी थी। नाजकी मी मानें तो यह दूसरा पहलू शारदा की अहमियत को बयां करता है। कश्मीर में स्थानीय गांववाले आज भी शारदा को यूनिवर्सिटी के तौर पर देखते हैं। उन्होंने बताया कि संरचना कई हजार साल पुरानी है और अब ज्यादा नहीं नजर आती।