अहमदिया होने की वजह से खटाई में पड़ सकता है पाक आर्मी चीफ बाजवा का एक्सटेंशन, इमरान भी ठहराए जा सकते हैं दोषी
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इस्लामाबाद। पाकिस्तान में आर्मी चीफ जनरल कमर जावेद बाजवा को लेकर अब घमासान मचा हुआ है। इस वर्ष अगस्त में प्रधानमंत्री इमरान खान ने उनका कार्यकाल तीन साल और बढ़ा दिया था और अब सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को संविधान के खिलाफ माना है। बाजवा को 29 नवंबर को रिटायर होना था। मगर पीएम इमरान के फैसले के बाद उनके रिटायरमेंट पर अनिश्चितता बनी हुई है। नवंबर 2016 में पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने तत्कालीन जनरल राहील शरीफ की जगह बाजवा को आर्मी चीफ नियुक्त किया था।
पाकिस्तान के 16वें आर्मी चीफ
उन्होंने देश के 16वें आर्मी चीफ के तौर पर कमान संभाली थी। बाजवा के धर्म की वजह से माना जा रहा है कि उन पर घमासान मचा हुआ है। बाजवा जिस समुदाय से आते हैं पाकिस्तान में गैर-कानूनी माना जाता है और इस हिसाब से जनरल को एक गैर-मुसलमान आर्मी चीफ के तौर पर देखा जा रहा है। जनरल कमर जावेद बाजवा साल 2016 में रावलपिंडी के नए मुखिया बने थे। उनका का जन्म घाकर मंडी पंजाब, पाकिस्तान में हुआ था।
अहमदिया मुसलमान हैं बाजवा!
डॉन की मानें तो बाजवा को बहुत से लोग 'कांदियानी' समुदाय का बता रहे हैं। इस समुदाय को पाक में अहमदिया मुसलमान के तौर पर जाने जाते हैं और यहां पर लोग इन्हें 'गैर-मुस्लिम' मानते हैं। इस समुदाय को हमेशा से पाकिस्तान में उनके धार्मिक विश्वासों की वजह से शक का सामना करना पड़ा है। जिस समय उन्हें आर्मी चीफ नियुक्त किया गया था तो उस फैसले को अहमदिया समुदाय के संघर्ष को पहचान दिलाने वाला बताया गया था।
साबित करना होता है अपना धर्म
सऊदी अरब अहमदिया मुसलमानों को हज करने की इजाजत नहीं देती। अगर बाजवा अहमदिया साबित हो गए तो फिर उप पर कड़ा एक्शन तक लिया जा सकता है। साथ ही पीएम और इमरान खान उनके सर्विस एक्सटेंशन के दोषी माने जाएंगे। ऐसा इसलिए क्योंकि पाकिस्तान के संविधान के मुताबिक 'एक गैर-मुस्लिम शख्स कभी भी आर्मी चीफ नियुक्त नहीं हो सकता है।। पाक में हमेशा से अहमदिया मुसलमानों को काफिर का दर्जा दिया जाता है। वर्ष 1984 में पाक में एक कानून आया जिसके बाद अहमदिया समुदाय के लोगों को खुद को मुसलमान साबित करना पड़ता था।
भारत में पड़ी थी नींव
अहमदिया समुदाय की नींव 23 मार्च 1889 को भारत के पंजाब राज्य में आने वाले गुरदासपुर के कादियान नामक कस्बे में रखी गई थी। मिर्जा गुलाम अहमद जो इसके संस्थापक थे उन्होंने सन् 1891 में अपने आप को 'पैगम्बर' घोषित कर दिया था। बंटवारे के बाद पंजाब राज्य दो भागों में बंट गया और एक हिस्सा भारत में आ गया तो दूसरा पाकिस्तान में चला गया। कुछ अहमदिया मुसलमान भारत में रह गए और कुछ पाकिस्तान चले गए।