अफगानिस्तान नहीं, चीन की वजह से बढ़ी हैं अमेरिका-पाकिस्तान में दूरियां, भारत के साथ मिलकर बीजिंग से मुकाबला करेंगे डोनाल्ड ट्रंप!
वॉशिंगटन। अमेरिका और पाकिस्तान के बीच तनाव पिछले कई वर्षों की तुलना में इस वर्ष जनवरी से काफी बढ़ गया है। पिछले दिनों अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोंपेयो इस्लामाबाद पहुंचे थे लेकिन सूत्रों की मानें तो उनकी पाकिस्तान यात्रा के बाद भी अमेरिका और पाक के बीच की दूरी कम नहीं हो सकी है। वहीं पाकिस्तान के अखबार द डॉन की ओर से जो खबर दी गई है उसके मुताबिक दोनों देशों के बीच अफगानिस्तान ही नहीं बल्कि चीन की वजह से भी काफी टेंशन है। डॉन ने साल 2019 में आए अमेरिकी बजट प्रस्ताव और पेंटागन की ओर से अमेरिकी रक्षा विभाग पेंटागन के लिए जारी की गई साल 2018 की रिपोर्ट में इस बात की तरफ इशारा मिलता है। डॉन की मानें तो व्हाइट हाउस इस बात पर यकीन करने लगा है कि पाकिस्तान अब उसके क्षेत्र से बाहर होता जा रहा है।
रूस और चीन, अमेरिका के लिए खतरा
अमेरिकी बजट प्रस्तावों में 'चीन और रूस को अमेरिका की सुरक्षा और समृद्धशीलता के लिए खतरा करार दिया है।' इसके साथ ही रिपोर्ट में इन चुनौतियों से निबटने के लिए एक रणनीति भी तैयार की गई है। पेंटागन की ओर से अमेरिकी कांग्रेस को चेतावनी देते हुए कहा गया है, 'चीन उन देशों में अपने मिलिट्री बेसेज स्थापित करने की कोशिशें कर रहा है जिसके साथ इसके दोस्ताना रिश्ते और एक जैसे रणनीतिक हित हैं जैसे कि पाकिस्तान। ऐसे में विदेशी सेनाओं की मेजबानी की परंपरा शुरू हो जाएगी।' अमेरिकी मीडिया में भी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की इस चिंता से सरोकार जताया गया है। वॉल स्ट्रीट जनरल ने इस हफ्ते लिखा था, 'पाकिस्तान, चीन और अमेरिका तीनों ही के बीच चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के प्रोजेक्ट वन बेल्ट वन रोड इनीशिएटिव को लेकर टकराव की सी स्थिति है।'
भारत की मदद से निबटेगा चीन से
अमेरिका को इस बात की चिंता है कि चीन 'कर्ज जाल की नीति' के तहत पूरी दुनिया में अपना प्रभाव हासिल करना चाहता है। इस नीति के लिए चीन कुछ देशों को ऐसे प्रोजेक्ट्स के लिए ऐसे कर्ज दे रहा है जिन्हें वे देश कभी बर्दाश्त नहीं कर सकते हैं। हालांकि चीन इसे सिर्फ पश्चिमी देशों का प्रपोगेंडा कहता आया है। जो बजट प्रस्ताव आया है उसके तहत यह बताया गया है कि कैसे ट्रंप प्रशासन ने अपने साथी और मित्र देशों को साथ लेकर चीन की चुनौती से योजना तैयार की है। इस डॉक्यूमेंट में इस बात की जानकारी भी है कि अमेरिका, भारत के साथ पार्टनरशिप करें इंडो-पैसेफिक रीजन में चीन के बढ़ते प्रभाव का जवाब देगा। इन डॉक्यूमेंट्स में यह बात भी कही गई है कि अमेरिका और उसके साझीदार देशों का यह गठबंधन अमेरिकी प्रभाव को बरकरार रखेगा और साथ ही इंटरनेशनल बॉर्डर की सुरक्षा भी तय करेंगे।
चीन की तरफ से पाक को हथियारों की सप्लाई
पेंटागन की ओर से जो रिपोर्ट अमेरिकी कांग्रेस को भेजी गई है। इसमें कहा गया है कि चीन की तरफ से हथियारों का निर्यात लगातार बढ़ता जा रहा है। चीन अपनी बॉर्डर फॉरेन पॉलिसी के लक्ष्य को आगे बढ़ाने के मकसद से ही हथियारों को निर्यात कर रहा है। इसका सुबूत है कि पाकिस्तान को हथियारों की बिक्री हो रह है और पाक की तरफ से चीन में यूएवी की मांग भी की गई है। रिपोर्ट में बताया गया है साल 2012 से साल 2016 तक चीन दुनिया का पांचवां ऐसा देश रहा जिसने 20 बिलियन डॉलर की रकम के साथ सबसे ज्यादा हथियार सप्लाई किए है। इसमें से आठ बिलियन डॉलर के हथियार तो सिर्फ पाक को दिए गए थे।