क्या कुलभूषण जाधव पर ICJ का फैसला मानने के लिए मजबूर होगा पाकिस्तान, क्या कहते हैं नियम
हेग। अब से कुछ घंटों के बाद नीदरलैंड्स की राजधानी हेग में इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस (आईसीजे) में कुलभूषण जाधव पर फैसला सुनाया जाएगा। भारत को उम्मीद है कि आईसीजे जाधव को मिली मौत की सजा पर रोक लगाएगा। पाकिस्तान की मिलिट्री कोर्ट ने अप्रैल 2017 में जाधव को जासूसी और आतंकवाद के आरोपों पर फांसी की सजा सुनाई थी। जो बड़ा सवाल हर किसी के दिमाग में आ रहा है वह है कि अगर आईसीजे ने जाधव को मिली फांसी की सजा को खत्म कर दिया तो क्या पाक इस फैसले को मानेगा और क्या पहले ऐसा हुआ जब किसी देश ने आईसीजे के फैसले को मानने से इनकार कर दिया हो?
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क्या है विएना कनवेंशन का प्रोटोकॉल
भारत ने आईसीजे में जाधव के खिलाफ दो बातों को आधार बनाकर केस दर्ज किया था। ये दोनों बातें थीं-काउंसलर एक्सेस मना करके विएना कनवेंशन को तोड़ना और सजा देने के लिए तैयार प्रस्ताव की प्रक्रिया। अगर आईसीजे भारत के पक्ष में फैसला देता है और जाधव की फांसी खत्म कर देता है तो सैद्धांतिक तौर पर पाकिस्तान उस फैसले को मानने के लिए बाध्य होगा। विएना कनवेंशन में एक वैकल्पिक प्रोटोकॉल है जिसके बाद विवाद के समय इस संधि को साइन करने वाले इसे मान्य करने के लिए बाध्य होते हैं। आईसीजे की ओर से दिए जाने वाले आदेश बाध्यकारी होते हैं।
अमेरिका के रास्ते चल सकता है पाक
लेकिन सिद्धांतों और वास्तविकता में काफी अंतर है। साल 2004 में आईसीजे ने 51 मैक्सिकन नागरिकों को लेकर फैसला दिया था। उस समय अमेरिका ने कोर्ट ट्रायल में इन सभी 51 नागरिकों को दोषी माना था। अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट ने इसे मानने से इनकार कर दिया और कहा कि फैसला राष्ट्रीय कानूनों को किनारे नहीं कर सकता है। साल 2005 में अमेरिका ने खुद को इस वैकल्पिक प्रोटोकॉल से बाहर कर लिया। विशेषज्ञों की मानें तो अमेरिका ने हमेशा विदेशी नागरिकों को काउंसलर एक्सेस देने से इनकार कर दिया है। हाल ही में अमेरिका ने मैक्सिको के रॉबर्टो मारेनो रामोस को काउंसलर एक्सेस देने से इनकार किया और उसे फांसी की सजा दे दी।
ICJ का फैसला कितना प्रभावी
आईसीजे के फैसले बाध्यकारी जरूर होते हैं लेकिन वे देशों को फैसला मानने के लिए मजबूर नहीं कर सकता है। अगर ऐसा कुछ होता है तो फिर यूनाइटेड नेशंस सिक्योरिटी काउंसिल (यूएनएससी) का रोल अहम हो जाएगा। यूएनएससी पाकिस्तान को आईसीजे का फैसला मानने के लिए मजबूर कर सकती है।
यूएनएससी आखिरी रास्ता
यहां पर भी बड़ा पेंच है और वह पेंच है यूएनएससी के पांच स्थायी सदस्य। अगर पाकिस्तान ऑर्डर मानने से इनकार कर देता है तो यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या चीन मसूद अजहर वाले मसले की ही तरह उसके साथ आता है या फिर वह उसके खिलाफ जाएगा। हालांकि यूएनएससी भी मामले में हस्तक्षेप करने से इनकार कर सकता है। इस केस में फिर कोई भी रास्ता नहीं रह जाता है कि फैसले को लागू करवाया जा सके।