पाकिस्तानी शासकों का कश्मीर कनेक्शन, या तो खुद तबाह हो गए या उनका करियर
इस्लामाबाद। जम्मू कश्मीर से आर्टिकल 370 हटने को 20 दिन होने वाले हैं और पाकिस्तान में इतने दिनों उथल-पुथल कम होने के बजाय बढ़ती जा रही है। प्रधानमंत्री इमरान खान ने बुधवार को बयान दिया है और कहा है कि कश्मीर, पाकिस्तान के लिए फर्स्ट लाइन ऑफ डिफेंस है। पाकिस्तान की राजनीति का इतिहास देखें तो आप गौर करेंगे कि जिस प्रधानमंत्री या राष्ट्राध्यक्ष ने कश्मीर मसले को सुलझाने की कोशिश की या उसके बारे में हद से ज्यादा पागलपन पाला, उसका करियर पूरी तरह से खत्म हो गया है। भारत के फैसले के बाद से कुछ लोगों को तो पाकिस्तान में तख्तापलट की संभावनाएं तक नजर आने लगीं हैं। आइए आपको बताते हैं पाकिस्तान के उन शासकों का क्या हश्र हुआ जिन्होंने कभी आतंकवाद तो कभी जंग के सहारे कश्मीर को हासिल करने की कोशिश की।
फांसी पर लटका दिए गए भुट्टो
पाकिस्तान के पूर्व पीएम जुल्लिफकार अली भुट्टो, दो बार पाक पीएम रहे। पहले साल 1971 से 1973 तक और फिर 1973 से 1977 तक। पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी की स्थापना करने वाले भुट्टो साल 1963 में पाक के विदेश मंत्री थे। भुट्टो ने 1965 में यूएन में अपने भाषण में कहा था कि भारत को इतने हजार घाव दिए जाएंगे कि उसका खून बहता रहेगा। इस दौरान उन्हें कश्मीर में ऑपरेशन जिब्राल्टर लॉन्च करने का जिम्मेदार माना जाता है। इसकी वजह से 1965 में पाकिस्तान के साथ युद्ध हुआ था। इसके बाद ताशकंद समझौता हुआ और सेना को यह जरा भी पसंद नहीं आया। सन् 1972 में भारत और पाकिस्तान के बीच शिमला समझौता हुआ। 1977 में जनरल जिया-उल हक ने उन्हें बेदखल किया और देश में फिर से मिलिट्री शासन हो गया। 1978 में उन्हें एक कत्ल का आरोपी मानकर फांसी पर लटका दिया गया।
प्लेन क्रैश में मारे गए जनरल जिया
कश्मीर पर भुट्टो की सोच को पाकिस्तान आर्मी के पूर्व मुखिया जनरल जिया-उल हक ने आगे बढ़ाया। 1978 में हक ने पाकिस्तान के शासक के तौर पर कमान संभाली। 71 की जंग के बाद पाकिस्तान और बांग्लादेश का बंटवारा हो चुका था। जिया उल हक ने भुट्टो की 'ब्लीड इंडिया विद थाउसंड कट्स' की नीति को आगे बढ़ाया। कश्मीर में आतंकवाद और घुसपैठ को बढ़ावा दिया गया। कश्मीर के जरिए भारत का खून बहाने का सपना देखने वाले जनरल जिया 17 अगस्त 1988 को प्लेन क्रैश में मारे गए थे।
कश्मीर को पाकिस्तान में मिलाने वाली बेनजीर की हत्या
जुल्लिफकार अली भुट्टो की बेटी बेनजीर, पाकिस्तान की पहली महिला पीएम थीं। वह, हमेशा पाकिस्तान की आवाम को बताती कि कश्मीर, पाकिस्तान का हिस्सा है और वह इसे पाकिस्तान में लाकर रहेंगी। लेकिन होनी को कुछ और ही मंजूर था। दिसंबर 2007 में बेनजीर की एक रैली में हत्या कर दी गई। फरवरी 2018 में बेनजीर के पति और पाक पूर्व राष्ट्रपति रहे आसिफ अली जरदारी ने कहा था कि जिस समय राजीव गांधी भारत के और बेनजीर पाक की पीएम थीं, कश्मीर मुद्दा सुलझने की कगार पर पहुंच चुका था। जरदारी ने कहा था कि बेनजीर और राजीव की सन् 1990 में फोन पर बात हुई थी। इस फोन कॉल में बेनजीर से राजीव ने कहा था कि पिछले 10 वर्षों में पाकिस्तान से किसी ने भी इस मसले पर भारत से बात नहीं की है।
कारगिल जंग के जिम्मेदार मुशर्रफ
पाकिस्तान के पूर्व आर्मी चीफ और तानाशाह परवेज मुशर्रफ तो कश्मीर के लिए इतना बेचैन थे कि उन्होंने सान 1999 में कारगिल जंग की रूपरेखा ही बना डाली थी। आज परवेज मुर्शरफ चाहकर भी अपने वतन नहीं लौट सकते हैं। देशद्रोह के आरोप में सजा के कगार पर खड़े मुशर्रफ साल 2008 में भागकर लंदन चले गए और फिर यहां निर्वासन का जीवन बिताने को मजबूर हो गए। साल 2013 में पाकिस्तान में आम चुनावों के समय मुशर्रफ सत्ता में लौटने के मकसद से देश वापस लौटे लेकिन उनका राजनीतिक करियर पूरी तरह से खत्म हो चुका था। मार्च 2016 में मुशर्रफ जान बचाकर दुबई भागे लेकिन अब वह सजा के डर से देश लौटना ही नहीं चाहते हैं।
नवाज शरीफ भी जेल में
पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज) के मुखिया नवाज शरीफ तीन बार पाकिस्तान के पीएम रहे लेकिन आज भ्रष्टाचार के आरोपों की वजह से जेल में हैं। उनके चुनाव लड़ने पर रोक लग चुकी है और विशेषज्ञ मान रहे हैं कि धीरे-धीरे उनका वोट बैंक भी कम होता जा रहा है। नवाज पहली बार सन् 1993 में और फिर फरवरी 1997 में पाक के पीएम बने थे। इसके बाद सन् 1999 में भी वहीं पीएम थे लेकिन 12 अक्टूबर 1999 को तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल परवेज मुशर्रफ ने तख्तापलट किया और देश में आपातकाल लगा दिया। मुशर्रफ ने इसके साथ ही नवाज को पाकिस्तान की सत्ता से बाहर कर दिया। मुशर्रफ मानते थे कि नवाज की कमजोर नीतियों की वजह से ही कारगिल की जंग में पाकिस्तान को भारत के हाथों शिकस्त का सामना करना पड़ा था। नवाज ने भारत के पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी के शांति प्रयासों का स्वागत किया था। लेकिन सेना को यह पसंद नहीं आया था। इसी तरह से पूर्व राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी ने साल 2014 में कश्मीर को पाकिस्तान की दुखती रग करार दिया था। जरदारी का राजनीतिक करियर साल 2013 से ही डगमगाने लगा था। फिलहाल वह भी नवाज शरीफ की ही तरह जेल में हैं।
अब खत्म होगा इमरान का करियर!
इमरान ने हाल ही में पाकिस्तान आर्मी चीफ जनरल कमर जावेद बाजवा का कार्यकाल तीन साल के लिए बढ़ा दिया है। 59 वर्ष के जनरल बाजवा इस वर्ष नवंबर में रिटायर होने वाले थे लेकिन अब वह साल 2022 में रिटायर होंगे। यह दूसरा मौका है जब किसी पाकिस्तानी आर्मी चीफ का कार्यकाल बढ़ाया गया था। जनरल बाजवा से पहले पाकिस्तानी आर्मी के रिटायर्ड जनरल अशफाक परवेज कियानी का कार्यकाल बढ़ाया गया था। पाकिस्तान में तनाव के हालातों के बीच ही आर्मी चीफ का कार्यकाल बढ़ना इस बात के साफ संकेत हैं कि इमरान की राजनीतिक पारी खत्म हो सकती है। हो सकता है कि सेना एक बार फिर सत्ता में वापस आ जाए। विशेषज्ञों की मानें तो पाकिस्तान मिलिट्री पीएम इमरान से खासी नाराज है और सेना को यह मानना पड़ रहा है कि कश्मीर अब पाकिस्तान के हाथ से जा चुका है।