भारत ही नहीं पाकिस्तान में भी युवाओं के आदर्श शहीद-ए-आजम भगत सिंह
पाकिस्तान के युवाओं के भी आदर्श हैं भगत सिंह। पाकिस्तान में है भगत सिंह के नाम पर एक ममोरियल फाउंडेशन और हाल ही में लाहौर हाई कोर्ट ने दिया आदेश भगत सिंह का शहीदी दिवस मनाने वालों को दी जाए सुरक्षा।
लाहौर। आपको सुनकर थोड़ा अजीब लग सकता है लेकिन हकीकत है कि भगत सिंह न सिर्फ भारत बल्कि पाकिस्तान के युवाओं के भी आदर्श हैं। आज उनकी शहादत के 86 वर्ष बाद भी पाक के युवा उन्हें याद करते हैं और उनकी तरह बनने की ख्वाहिश रखते हैं। आपको हैरानी होगी कि जिस दिन भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी दी गई थी उसके 25 वर्ष बाद ही पाक का गणतंत्र दिवस लागू हुआ था।
पाक में हर वर्ष होता है कार्यक्रम
पाकिस्तान के लाहौर में भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन है और लाहौर हाई कोर्ट ने एक आदेश दिया है। इस आदेश के तहत उन लोगों को सुरक्षा दी जाए जो भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव का 86वां शहीदी दिवस मनाना चाहते हैं। हर वर्ष 23 मार्च को लाहौर के शहदमन चौक पर शहीदी दिवस का आयोजन होता है। यह वही जगह है जहां पर भगत सिंह और उनके साथियों को फांसी दी गई थी।
कई पीढ़ियों को करते हैं प्रेरित
भगत सिंह की क्रांतिकारी सोच को कभी भारत और पाकिस्तान की सीमाएं नहीं बांध पाई हैं। पिछले वर्ष उनकी पुण्यतिथि के मौके पर लाहौर के साहीवाल के फरीद टाउन में एक चर्चा का आयोजन हुआ, यहां पर पंजाबी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है। उस कार्यक्रम में कई छात्र, थियेटर से जुड़े लोग और सांस्कृतिक कार्यकर्ताओं ने हिस्सा लिया।
युवाओं ने देर से भगत सिंह के बारे में जाना
इस कार्यक्रम में एक युवा लड़की ने इस तरफ ध्यान दिलाया कि कैसे पंजाबी युवाओं को भगत सिंह के बारे में जानने से मरहूम रखा गया। इस 24 वर्षीय लड़की ने कहा कि यह पहला मौका है जब मुझे भगत सिंह के बारे में पता लगा है और मुझे इस बात का अफसोस है कि मैं कैसे इस महान क्रांतिकारी के बारे में आज तक नहीं जान पाई।
डर और धमकी से अनजान लोग
जहां पाकिस्तान के कुछ युवाओं को भगत सिंह के बारे में नहीं मालूम है तो वहीं युवाओं का एक हिस्सा हर वर्ष यहां पर इकट्ठा होता है। वर्ष 2015 में कुछ धार्मिक संगठनों ने युवाओं का धमकी दी थी कि वे शहीदी दिवस नहीं मनाएंगे लेकिन कोर्ट की ओर से इन युवाओं को पुलिस सुरक्षा मुहैया कराने का आदेश दिया गया ताकि वे शहीदों को अपनी श्रद्धांजलि दे सकें।
भगत सिंह को माना जाए हीरो
भारत और पकिस्तान भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की शहादत के 16 वर्ष बाद अलग हो गए थे लेकिन आज भी भगत सिंह किसी न किसी रूप में जिंदा हैं। यहां पर हर वर्ष भगत सिंह को देश का नायक घोषित करने की मांग बढ़ती ही जाती है। वर्ष 2008 में एक पंजाबी संस्था की ओर से जारानवाला में उनका 100वां जन्मदिन मनाया गया। जरानवाला भगत सिंह के गृहनगर बंगा जिले में है। इस मौके पर उस समय कुछ 100 लोग ही इकट्ठा हुए थे।
चौक का नाम भगत सिंह चौक करने की मांग
कई वर्षों से लाहौर के शहदमन चौक का नाम भगत सिंह चौक करने की मांग बढ़ती ही जा रही है। इस मांग को हर बार अनसुना कर दिया जाता है। इसके विरोध में कई प्रदर्शन होते हैं और इन प्रदर्शनों में लोगों की भीड़ इकट्ठा होती है। लोगों का कहना है कि उनसे वादे किए जाते हैं लेकिन इस मांग को हर बार अनसुना कर दिया जाता है।
वर्ष 2012 में फिर जगी नई उम्मीद
वर्ष 2012 में लाहौर की सरकार की ओर से घोषणा की गई कि शहदमन चौक का नाम बदलकर भगत सिंह चौक करेगी। इस मांग पर सरकार आगे बढ़ती इससे पहले ही आतंकी संगठन जमात-उद-दावा (जेयूडी) की ओर से विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया। इस विरोध प्रदर्शन में एक बैनर लगाया गया जिस पर लिखा था नाम बदलने का मतलब दो देशों वाले सिद्धांतों के साथ धोखा करना होगा। जेयूडी की ओर से इस चौक का नाम हुरमत-ए-रसूल चौक करने की मांग की गई।
गांव में लगता भगत सिंह मेला
पाकिस्तान में भगत सिंह को वाजिब जगह दिलाने की मांग बढ़ती जा रही है और हर बार ही इस मांग को ठुकरा दिया जाता है। पिछले कुछ वर्षों में सिविल सोसायटी की ओर से भगत सिंह की शहादत वाले दिन पर उनके घर बंगा में एक भगत सिंह मेला आयोजित किया जाता है। उनके घर को फिर से रेनोवेट किया गया है और उनके गांव का स्वरूप बदलने की मांग उठने लगी है। जिस गांव बंगा ने भगत सिंह को त्याग दिया था, उस गांव ने एक बार फिर से भगत सिंह को अपनाया है।
कभी जिन्ना ने की थी भगत सिंह की वकालत
भगत सिंह को पाकिस्तान में हीरो का दर्जा मिलेगा या नहीं यह तो वक्त बताएगा लेकिन एक ऐसा एतिहासिक सच है जो पाकिस्तान के साथ भगत सिंह का कनेक्शन बताता है। पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना ने वर्ष 1929 में इस आजादी के मतवाले का बचाव किया था।