कौन थे महाराजा रणजीत सिंह जिनकी मूर्ति तोड़कर पाकिस्तान ने दिखाया है अपना गुस्सा
लाहौर। एक हफ्ते हो चुके हैं जब भारत ने जम्मू कश्मीर में लागू धारा आर्टिकल 370 और 35ए को खत्म करने का ऐलान किया था। पाकिस्तान अभी तक सदमे में है और उसे समझ नहीं आ रहा है कि क्या किया जाए। अमेरिका, चीन और रूस समेत तमाम इस्लामिक देश भी अब पाकिस्तान से कन्नी काट रहे हैं। पाकिस्तान में सिर्फ सरकार ही नहीं आम नागरिक भी भारत के फैसले से इस कदर हताश हैं कि उन्होंने लाहौर में महाराजा रंजीत सिंह की मूर्ति तोड़कर अपने गुस्से का इजहार किया। महाराजा रणजीत सिंह को न सिर्फ भारत में बल्कि दुनिया भर में सिख समुदाय के लोग काफी सम्मान से देखते हैं। लाहौर में दो लोगों ने शनिवार को इस घटना को अंजाम दिया है।
लाहौर के किले में थी मूर्ति
जो मूर्ति तोड़ी गई वह नौ फीट ऊंची थी और जून में लाहौर के किले में इसका अनावरण किया गया था। महाराजा रणजीत सिंह सिख साम्राज्य के मुखिया थे और इस साम्राज्य ने 19वीं सदी की शुरुआत में भारतीय उपमहाद्वीप पर राज किया था। पुलिस ने घटना के दोषियों को गिरफ्तार कर लिया है और ईशनिंदा के तहत उन पर केस दर्ज किया गया है। जिन लोगों ने मूर्ति तोड़ी है वे भारत के उस फैसले से नाराज थे जिसमें जम्मू कश्मीर राज्य को मिले विशेष दर्जे को खत्म किया गया है। बताया जा रहा है कि आरोपी तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान का मौलाना खादिम रिज्वी है।लाहौर किले की अथॉरिटीज भी फैसले से हैरान है और ईद के बाद इस मूर्ति की मरम्मत का काम कराया जाएगा।
पसंदीदा घोड़े पर सवार रणजीत सिंह
करीब 40 साल राज करने वाले महाराजा रणजीत सिंह की सन् 1839 में मृत्यु हो गई थी। जो मूर्ति तोड़ी गई है वह कांसे से बनी थी और मूर्ति में महाराजा को हाथ में तलवार लिए अपने पंसदीदा घोड़े ‘काहर बहार' पर बैठे दिखाया गया था। महाराजा रणजीत सिंह 'शेर-ए पंजाब' के नाम से प्रसिद्ध हैं। रणजीत सिंह का जन्म सन् 1780 में गुजरांवाला (अब पाकिस्तान) संधावालिया जाट महाराजा महां सिंह के घर हुआ था। उन्होंने अफगानों के खिलाफ भी कई लड़ाइयां लड़ीं और उन्हें पश्चिमी पंजाब की ओर खदेड़ दिया। इसके साथ ही पेशावर समेत पश्तून क्षेत्र पर उन्हीं का अधिकार हो गया। यह पहला मौका था जब पश्तूनों पर किसी गैर मुस्लिम ने राज किया। उसके बाद उन्होंने पेशावर, जम्मू कश्मीर और आनंदपुर पर भी अधिकार कर लिया।
अंग्रेज छू भी नहीं सके पंजाब को
पहली आधुनिक भारतीय सेना -'सिख खालसा सेना' को तैयार करने का श्रेय भी महाराजा रणजीत सिंह को दिया जाता है। कहते हैं कि उनकी हुकूमत में पंजाब भारत का सबसे शक्तिशाली राज्य था। उनकी खालसा आर्मी ने ही लंबे अर्से तक ब्रिटेन को पंजाब हड़पने से रोके रखा। एक बार ऐसा मौका भी आया जब पंजाब देश का अकला राज्य बन गया जिस पर अंग्रेज अपना कब्जा नहीं कर पाए थे। ब्रिटिश इतिहासकार जे टी व्हीलर के मुताबिक, 'अगर वह एक पीढ़ी पुराने होते, तो पूरे हिंदूस्तान को ही फतह कर लेते।' महाराजा रणजीत खुद अनपढ़ थे, लेकिन उन्होंने अपने राज्य में शिक्षा और कला को बहुत प्रोत्साहन दिया।
लाहौर में है महाराजा की समाधि
छोटी सी उम्र में चेचक की वजह से महाराजा रणजीत सिंह की एक आंख की रोशनी जाती रही।उन्होंने पंजाब में कानून एवं व्यवस्था कायम की और कभी भी किसी को मौत की सजा नहीं दी थी। उन्होंने कभी भी किसी को सिख धर्म अपनाने के लिए विवश नहीं किया। उन्होंने अमृतसर के हरिमन्दिर साहिब गुरूद्वारे में संगमरमर लगवाया और सोना मढ़वाया, तभी से उसे स्वर्ण मंदिर कहा जाने लगा।बेशकीमती हीरा कोहिनूर महाराजा रणजीत सिंह के खजाने की रौनक था। सन् 1839 में महाराजा रणजीत का निधन हो गया। उनकी समाधि लाहौर में बनवाई गई, जो आज भी वहां कायम है। उनकी मौत के साथ ही अंग्रेजों का पंजाब पर शिकंजा कसना शुरू हो गया।