नोटबंदी के दौरान सबसे ज्यादा पड़ी बेरोजगारी की मार,4 सालों का रिकॉर्ड तोड़ा- सर्वे
नई दिल्ली: आज से दो साल पहले हुई नोटबंदी के बाद लगातार ये कयास लगाए जा रहे थे कि इस दौरान कई लोगों की नौकरियां गईं और लोगों को रोजगार के कम मौके मिले। श्रम विभाग ने 2016-17 वित्तीय वर्ष में रोजगार को लेकर आंकड़े जारी किए। इस रिपोर्ट से खुलासा हुआ है कि पिछले चार सालों में नोटबंदी के बाद बेरोजगारी की दर सबसे अधिक रही।
श्रम विभाग के छठे वार्षिक रोजगार-बेरोजगार सर्वे में बताया गया है कि 2013-14 में जहां बेरोजगारी दर 3.4 प्रतिशत थी, 2015-16 में ये दर 3.7 प्रतिशत रही। साल 2016 में की गई नोटबंदी का रोजगार पर सीधा असर पड़ा और ये 2016-17 में बढ़कर 3.9 प्रतिशत हो गई। गौरतलब है कि बेरोजगारी दर काम को लेकर श्रम-शक्ति के अनुपात को बताती है. इससे पता चलता है कि इस दौरान नौकरियां कम मिलीं।
हालांकि, रिपोर्ट में कहा गया है कि श्रम शक्ति की भागेदारी नोटबंदी के बाद बढ़ीं। 2015-16 में ये 75.5% थी जो 2016-17 में बढ़कर 76.8% हो गई. ये लोगों की काम करने उम्र की जनसंख्या का अनुपात है जिसमें एक नौकरी है या एक की मांग है।
बिजनेस स्टैंडर्ड ने अधिकारियों का नाम ना बताते हुए लिखा कि केंद्रीय श्रम और रोजगार मंत्री संतोष गंगवार ने दिसंबर 2018 में इस रिपोर्ट को मंजूरी दे दी थी, लेकिन केंद्र सरकार ने इसे जारी नहीं किया। संसद के शीतकालीन सत्र में जब संतोष गंगवार ने जॉब्स के बारे में सवाल पूछा गया तो उन्होंने श्रम विभाग के पूराने आंकड़े उपलब्ध कराए। श्रम मंत्री संतोष गंगवार ने बिजनेस स्टैंडर्ड द्वारा भेजे गए प्रश्नों का जवाब नहीं दिया. वहीं श्रम एवं रोजगार मंत्रालय में सचिव हीरालाल ने रिपोर्ट को प्रकाशित नहीं करने के संबंध में भेजे गए सवाल का जवाब नहीं दिया.
दरअसल श्रम विभाग अब नौकरियों पर रिपोर्ट प्रकाशित नहीं करेगा, क्योंकि इसकी जगह राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय का ऑफिस इसे जारी करेगा। हालाँकि 2017- 18 का सर्वे इस कार्यालय द्वारा आना बचा है। गौरतलब है कि आज से सवा दो साल पहले 8 नवंबर 2016 को प्रधानमंत्री ने 500 और 1000 रूपये के नोटों को अवैध करेंसी घोषित कर चलन से बाहर करने का ऐलान किया था।