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Sunil Vashisht : वो डिलीवरी बॉय जो Flying Cakes सप्लाई कर बना करोड़पति, सालाना टर्न ओवर ₹ 8 करोड़

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नई दिल्ली। अचानक नौकरी छूट जाने के बाद अक्सर लोग अवसाद में चले जाते हैं। हिम्मत हार जाते हैं, मगर यह सक्सेस स्टोरी जरा हट के है। स्टोरी उस पिज्जा डिलीवरी बॉय की है, जिसने बेरोजगार हो जाने के बाद दिल की सुनी और अपने अनुभव के आधार पर दिमाग लगाया। नतीजा यह है कि आज वो डिलीवरी बॉय सफल बिजनेसमैन है। सालाना टर्न ओवर 8 करोड़ रुपए तक पहुंच चुका है। कई राज्यों के लोग इनके आउटलेट पर बने केक का स्वाद ले रहे हैं। नाम है सुनील वशिष्ट। ये दिल्ली के छोटे से गांव चिराग दिल्ली इलाके के रहने वाले हैं।

फ्लाइंग केक्स के फाउंडर सुनील वशिष्ट का इंटरव्यू

फ्लाइंग केक्स के फाउंडर सुनील वशिष्ट का इंटरव्यू

वन इंडिया हिंदी से बातचीत में सुनील वशिष्ट ने बयां किया दिल्ली में दूध बूथ पर पार्ट टाइम जॉब करने से लेकर डोमिनोज पिज्जा में डिलीवरी बॉय से मैनेजर बनने और फिर नौकरी छूटने से लेकर फ्लाइंग केक्स की नींव रखने तथा वर्तमान में एक सक्सेस बिजनेसमैन के तौर पर दिल्ली से बाहर दूसरे राज्यों में पहुंचने तक का पूरा सफर।

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फ्लाइंग केक्स के सुनील वशिष्ट का परिवार

फ्लाइंग केक्स के सुनील वशिष्ट का परिवार

चिराग दिल्ली के कैलाश शर्मा व राधा देवी के घर जन्में सुनील वशिष्ट के दो भाई हैं। बड़े भाई अजीत शर्मा व छोटे राजीव शर्मा। सुनील के पिता कैलाश इलेक्ट्रॉनिक कांटे बेचने का काम किया करते थे। मझला बेटा सुनील सफल हो जाने के बाद से फिलहाल माता-पिता सुकून की जिंदगी जी रहे हैं। सुनील की शादी सपना शर्मा से हुई है। इनके बेटी अनुष्का शर्मा व बेटा कृष है।

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दसवीं के पास करके पार्ट टाइम जॉब करने लगे

दसवीं के पास करके पार्ट टाइम जॉब करने लगे

सुनील वशिष्ट बताते हैं कि वे सामान्य परिवार से ताल्लुक रखते हैं। परिवार कभी दो कमरों के घर में रहा करता था। सरकारी स्कूल से दसवीं पास की। फिर पिताजी ने कह दिया कि अब आगे की जिंदगी अपने दम पर जीओ और सफल होकर दिखाओ। यह बात वर्ष 1991 की है। सुनील ने पहली बार दो सौ रुपए प्रतिमाह के हिसाब से दिल्ली में डीएमएस के बूथ पर दूध के पैकेट बांटने का पार्ट टाइम जॉब किया।

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वेटर के रूप में भी किया काम

वेटर के रूप में भी किया काम

सुनील वशिष्ट फार्म हाउस में होने वाली पार्टियों में वेटर के रूप में भी काम कर चुके हैं। यहां तीन-चार सौ रुपए मिला करते थे। फिर कुछ समय चांदनी चौक स्थित साड़ियों की दुकान में नौकरी की। इन कामों के दम पर सुनील सरकारी स्कूल से 12वीं कक्षा तक तो पढ़ लिए, मगर अब बारी कालेज में दाखिले की थी, जिसका खर्च स्कूल की तुलना में अधिक था। दिल्ली के शहीद भगत सिंह कॉलेज में प्रवेश लिया।

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कॉलेज में पढ़ाई के साथ बांटा करते थे कुरियर

कॉलेज में पढ़ाई के साथ बांटा करते थे कुरियर

सुनील ने कॉलेज में प्रवेश लेने के साथ ही ब्ल्यू डॉट कॉम कम्पनी में कुरियर बांटने का काम किया करते थे। इससे कुछ पैसे कमाने लगे तो पढ़ाई से मोह छूटता गया और द्वितीय वर्ष में आते-आते पढ़ाई छोड़ दी। ढाई साल तक कुरियर कम्पनी में काम किया। फिर कंपनी बंद हो गई। बेरोजगार हो गए। पढ़ाई में मन लग नहीं रहा था। काम की तलाश में थे।

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1997 में डोमिनोज पिज्जा में डिलीवरी बॉय बने

1997 में डोमिनोज पिज्जा में डिलीवरी बॉय बने

वर्ष 1997 में रोजगार की तलाश में भटक रहे सुनील वशिष्ट को पता चला कि दिल्ली के ग्रेटर कैलाश इलाके में डोमिनोज के नाम से कोई विदेशी कम्पनी ने अपना पहला आउटलेट खोला है। वहां काम करने के लिए 12वीं पास, ड्राइविंग लाइसेंसधारी और अंग्रेजी बोल सकने वालों की जरूरत थी। सुनील ने इंटरव्यू दिए। अंग्रेजी नहीं आने के कारण लगातार दो बार फेल हुए। फिर तीसरी बार प्रयास किया। इस बार साक्षात्कार लेने ने कह डाला कि वे उन्हें दो बार फेल कर चुके हैं। ​फिर बार-बार क्यों आ जाते हैं। जवाब था- सर आप एक बार मौका देकर देखिए। अंग्रेजी भी सीख ही लूंगा। तीसरी बार में सुनील का डोमिनोज में पिज्जा डिलीवरी बॉय के चयन हुआ।

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डिलीवरी बॉय से प्रमोशन पाकर मैनेजर बने

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फरवरी 1998 को डोमिनोज में 2841 रुपए मासिक पगार पर बड़ी मुश्किल से मिली इस जॉब में सुनील ने पूरी जी-जान लगा दी। खूब मेहनत की। इसकी हर बारीकियों को सीखते और समझते गए। यही वजह थी कि उन्हें डोमिनोज में छह से सात बार पदोन्नति मिली और घर-घर जाकर पिज्जा डिलीवरी करने वाला सुनील वशिष्ट मैनेजर बन चुका था। इस बीच वर्ष 2000 में सपना शर्मा से शादी हो चुकी थी। तनख्वाह 14 हजार तक पहुंच गई थी।

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पत्नी गर्भवती थी तब भी नहीं मिली छुट्टी

पत्नी गर्भवती थी तब भी नहीं मिली छुट्टी

सुनील बताते हैं कि वर्ष 2003 में डोमिनोज के ग्रीन पार्क आउटलेट में बतौर मैनेजर काम कर रहा था। सब कुछ अच्छा चल रहा था। उसी दौरान पत्नी सपना गर्भवती थी। घर से फोन आया कि सपना के प्रसव पीड़ा हो रही है। उसे अस्पताल लेकर जाना है। मैंने अपने उच्च अधिकारियों से छुट्टी मांगी तो वे टालते रहे। मैंने अपने जूनियर को उस दिन का कामकाज सौंपा और सीधा घर आ गया। फिर दूसरे दिन काम पर लौटा तो पता चला कि मेरे इस तरह जाने से सीनियर नाराज हो गए। मुझसे जबरन इस्तीफा लिया गया। मुझे उस दिन पहली बार पता चला कि 'पैरों तले से जमीन खिसक जाने' के मुहावरे का क्या मतलब होता है।

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इस्तीफे ने बदली दी सुनील की सोच

इस्तीफे ने बदली दी सुनील की सोच

कहते हैं जो भी होता है अच्छे के लिए होता है। यही सुनील के साथ हुआ। जबरन इस्तीफा देने के बाद सुनील के समझ में आया कि लाखों रुपए की नौकरी करने की बजाय हजारों रुपए का खुद का काम ज्यादा सही है। इसी सोच के साथ सुनील ने जेएनयू के सामने फूड स्टॉल लगाना शुरू किया। कुछ समय बाद उस रेहड़ी एमसीडी वालों ने अवैध बताकर तोड़ दिया। तब समझ आया कि कुछ भी काम किसी सड़क किनारे अवैध जगह की बजाय वैध जगह पर होना चाहिए। इस बीच सुनील को पता चला कि इन दिनों नोएडा में कॉल सेंटर इंडस्ट्री पनप रही है। यहां कई एमएनसी ऐसी भी हैं, जो अपने कर्मचारियों का बर्थडे धूमधाम से मनाती हैं और केक, पिज्जा आदि मंगवाती रहती हैं।

दोस्त से पैसे उधार लेकर खोली शॉप

दोस्त से पैसे उधार लेकर खोली शॉप

सुनील ने तेजी से बढ़ रहे नोएडा में केक की शॉप खोलने का मौका हाथ से गंवाया नहीं और दोस्त से पैसे उधार लेकर वर्ष 2007 में शॉप्रिक्स मॉल नोएडा में शॉप डाल ली। नाम रखा फ्लाइंग केक्स। डेढ़ साल तक सुनील का खर्च भी नहीं निकल पा रहा था। सब दोस्त व रिश्तेदार सुनील को दुकान बंद करने तक की कहने लगे थे। इस पर सुनील ने हर बार की तरह हार मानने की बजाय एक और प्रयास करने की सोची। इस समय तक नोएडा में कई कॉल सेंटर खुल चुके थे, जिनके बाहर पूरी रात रौनक रहती थी। सुनील रात को कॉल सेंटरों के बाहर खड़े होकर लोगों को अपनी शॉप का कार्ड देकर जरूरत पड़ने पर केक ऑडर करने के लिए बोला करते थे। सुनील का यह प्रयास लाइफ में टर्निंग प्वाइंट बना।

 कम्पनी की एचआर मैनेजर से मिला सबसे बड़ा ऑडर

कम्पनी की एचआर मैनेजर से मिला सबसे बड़ा ऑडर

सुनील कहते हैं कि कॉल सेंटरों के बाहर खड़े होकर बांटे गए शॉप के कार्ड पर एड्रेस देखकर एक महिला फ्लाइंग केक्स शॉप से अपने बेटे के जन्मदिन पर केक खरीदकर लेकर गई। उसे केक का स्वाद लाजवाब लगा। अगले ही दिन महिला का फोन आया। उन्होंने सुनील को अपनी कम्पनी एचसीएल के कार्यालय में बुलाया। पता चला कि वो महिला कम्पनी में एचआर मैनेजर थीं। उस महिला ने सुनील को बताया कि उनके नोएड में पांच सेंटर हैं। प्रत्येक पर चार से पांच हजार कर्मचारी हैं। हर दूसरे दिन किसी ना किसी का जन्मदिन आता रहता है। अगर सुनील उन्हें रियायती दर पर केक डिलीवरी कर सके तो वे हमेशा उसी से खरीदने को तैयार हैं।

 कर्मचारी दूसरी जगह जाने से बढ़े सुनील के आउटलेट

कर्मचारी दूसरी जगह जाने से बढ़े सुनील के आउटलेट

एचसीएल की एचआर मैनेजर से सुनील की मुलाकात के बाद फ्लाइंग केक्स का बिजनेस चल निकला। खास बात यह रही कि उस कॉल सेंटर के कर्मचारियों ने नोएडा में दूसरी कम्पनियां ज्वाइन कर ली, मगर वे फ्लाइंग केक्स के केक का स्वाद नहीं भूले। दूसरी कम्पनियों में जाने के बाद वे सुनील से वहां केक की डिलीवरी मंगवाने लगे। अब सुनील का काम बढ़ चुका था। ऐसे में वर्ष 2009 में नोएड के सेक्टर 135 में फ्लाइंग केक्स को अपनी दूसरी शॉप खोलनी पड़ी।

 गुड़गांव के सेक्टर 110 में है फ्लाइंग केक्स का ऑफिस

गुड़गांव के सेक्टर 110 में है फ्लाइंग केक्स का ऑफिस

नोएडा में फ्लाइंग केक्स की दूसरी शॉप खोलने के बाद सुनील ने दिल्ली गुड़गांव का रुख किया और दिल्ली के बसंत कुंज, आया नगर, गुड़गांव के डीएलएफ 3, सेक्टर 40, 49, 22 और 109 के साथ-साथ नोएडा के 53, 143 व 154 में आउटलेट खोले। साथ ही पुणे और बंगलौर जैसी मेट्रो सिटी में भी पहुंचे। फ्लाइंग केक्स का ऑफिस गुड़गांव के सेक्टर 110 में खोला। केक के साथ ही पिज्जा, बर्गर और पाश्ता की भी डिलीवरी शुरू कर दी।

 फ्लाइंग केक्स अब दे रहा फ्रेंचाइजी

फ्लाइंग केक्स अब दे रहा फ्रेंचाइजी

सुनील बताते हैं कि बिहार के समस्तीपुर में आउटलेट खोल रहे हैं। इसके बाद कोलकाता में खोला जाएगा। अन्य कई शहरों से भी डिमांड आ रही है। ऐसे में अन्य शहरों में फ्रेंचाइजी देने की योजना पर काम कर रहे हैं। वर्ष 2017-18 में फ्लाइंग केक्स का सालाना टर्न ओवर 8 करोड़ रुपए तक पहुंच गया। हालांकि बाद के दो साल कुछ कम कमाई हुई और इस साल लोकडाउन के कारण भी काफी बुरी स्थिति से गुजरे हैं।

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English summary
Sunil Vashisht flying cakes Journey from a delivery boy to a successful business man
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