मायावती-अखिलेश की पार्टियों के महागठबंधन के पीछे राम मनोहर लोहिया के इस खत का है बड़ा योगदान
नई दिल्ली। शनिवार को लोकसभा चुनाव 2019 के लिए उत्तर प्रदेश में उस महागठबंधन का ऐलान हो गया, जिस पर पूरे देश की नजरें थी। शनिवार को लखनऊ में समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव और बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके इस महागठबंधन की घोषणा की।
सपा-बसपा महागठबंधन यूपी की 80 लोकसभा सीटों में से 76 पर चुनाव लड़ेगा। दोनों दलों ने समझौते के तहत 38-38 सीटों पर चुनाव लड़ने का फैसला किया है। इस महागठबंधन ने ऐलान किया कि वो कांग्रेस के खिलाफ रायबरेली और अमेठी में चुनाव नहीं लड़ेंगे। हम आपको बता दें कि रायबरेली से सोनिया गांधी और अमेठी से राहुल गांधी सांसद हैं। इसके अलावा महागठबंधन दो सीटें सहयोगी दलों के लिए छोड़ेगा.
हालांकि पहले खबरें आ रही थी कि अजीत सिंह के नेतृत्व वाला राष्ट्रीय लोक दल(आरएलडी) भी इसमें शामिल होगी। लेकिन इन अटकलों पर महागठबंधन के ऐलान के बाद विराम लग गया। आरएलडी का पश्चिमी उत्तर प्रदेश की ग्रीन बेल्ट पर खासा प्रभाव है। प्रेस कॉन्फ्रेंस में दोनों नेताओं ने ऐलान किया कि वो आने वाले विधानसभा चुनाव में भी एक साथ मिलकर चुनाव लड़ेंगे।
सपा-बसपा के बीच महागठबंधन की सबसे बड़ी वजह भाजपा का सूबे में मजबूती से उभरना रहा। लोकसभा चुनाव 2014 में भाजपा ने दोनों पार्टियों को शिकस्त देते हुए 71 सीटों पर कब्जा किया वहीं इसके तीन साल बाद भाजपा ने यूपी के विधानसभा चुनाव में भी भारी बहुमत से सत्ता में वापसी की। इसके बाद से ही पहली बार दोनों पार्टियों के बीच महाठबंधन की नींव पड़ी।
लेकिन इस महागठबंधन के धरातल में उतरने में कई मुश्किलें खड़ी थी। सबसे बड़ी परेशानी दोनों के बीच 1995 के गेस्टहाउस कांड से पैदा हुई खटास थी। इस दूरी को मिटाने के काम समाजवादी विचारधारा के बड़े नायक डॉ. राम मनोहर लोहिया के एक खत किया। राम मनोहर लोहिया ने ये चिट्ठी साल 1955 में लिखी थी। 10 दिसंबर 1955 को लिखे अपने पत्र में लोहिया ने दलितों के मसीहा कहे जाने वाले डॉ भीम राव बाबा साहेब अंबेडकर से अपील कि थी कि वो सिर्फ अनुसूचित जातियों के नेता बनने तक ना सीमित रहें। आप पूरी हिंदुस्तानी जनता की आवाज बनें।
लोहिया का अंबेडकर के नाम लेटर
'प्रिय डॉक्टर अंबेडकर, मैनकाइंड (अखबार) पूरे मन से जाति समस्या को अपनी संपूर्णता में खोलकर रखने का प्रयत्न करेगा। इसलिए आप अपना कोई लेख भेज सकें तो प्रसन्नता होगी। आप जिस विषय पर चाहें लिखिए। हमारे देश में प्रचलित जाति प्रथा के किसी पहलू पर आप लिखना पसंद करें, तो मैं चाहूँगा कि आप कुछ ऐसा लिखें कि हिंदुस्तान की जनता न सिर्फ क्रोधित हो बल्कि आश्चर्य भी करे। मैं चाहता हूँ कि क्रोध के साथ दया भी जोड़नी चाहिए। ताकि आप न सिर्फ अनुसूचित जातियों के नेता बनें बल्कि पूरी हिंदुस्तानी जनता के भी नेता बनें। मैं नहीं जानता कि समाजवादी दल के स्थापना सम्मेलन में आपकी कोई दिलचस्पी होगी या नहीं। सम्मेलन में आप विशेष आमंत्रित अतिथि के रूप में आ सकते हैं। अन्य विषयों के अलावा सम्मेलन में खेत मजदूरों, कारीगरों, औरतों, और संसदीय काम से संबंधी समस्याओं पर भी विचार होगा और इनमें से किसी एक पर आपको कुछ बात कहनी ही है।' - सप्रेम अभिवादन सहित, आपका राम मनोहर लोहिया।
राम मनोहर लोहिया के इस पत्र का जवाब भी अंबेडकर ने दिया था। इसमें उन्होंने उनसे मिलने की इच्छा व्यक्त की। 20 अक्टूबर 1956 को दोनों नेताओं के बीच मुलाकात की संभावना थी. लेकिन किसी वजह से वो मुलाकात नहीं हो पाई। इसके करीब डेढ़ महीने बाद 6 दिसंबर 1956 को डॉ अंबेडकर ने दुनिया को अलविदा कह दिया और एक एतिहासिक मुलाकात कभी ना हो पाई।
सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव ने ये स्वीकार किया कि महागठबंधन की बुनियाद में भी लोहिया के खत की अहम भूमिका है। एक निजी चैनल से बातचीत करते हुए उन्होंने कहा कि वो लेटर भी कहीं होंगे, जिसे लोहिया ने अंबेडकर को लिखा था. दोनों की विचारधारा में क्या फर्क है ? एक समय नेताजी, काशीराम और मायावती ने मिलकर रास्ता निकाला, अब हम उसी काम को आगे बढ़ा रहे हैं तो इसमें गलत क्या है। इससे पहले साल 1993 के विधानसभा चुनाव के लिए कांशीराम और मुलायम सिंह ने गठबंधन किया था और बाद में मिलकर सरकार बनाई।