
वो 8 युवा जो गरीबी को मात देकर बने IAS-IPS, कोई BPL परिवार से तो कोई मनरेगा मजदूर की बेटी
नई दिल्ली, 5 मई। दुनिया की सबसे मुश्किल परीक्षाओं में से संघ लोक सेवा आयोग की सिविल सेवा परीक्षा पैसों से नहीं बल्कि कड़ी मेहनत के दम पर पास की जाती है। इस बात का सबूत हैं वो युवा जो गरीबी को मात देकर आईएएस आईपीएस बने हैं।

आज हम आपको ऐसे ही युवाओं की सक्सेस स्टोरी बताने जा रहे हैं, जिनके परिवार की आर्थिक स्थिति कभी कमजोर हुआ करती थी और आज ये बतौर आईएएस आईपीएस देश में सेवाएं दे रहे हैं। इन प्रेरणादायी युवाओं में कोई बीपीएल परिवार से ताल्लुक रखता था तो कोई मनरेगा मजदूर की बेटी थी। कोई ऑटो चालक का बेटा तो किसी की मां ने उसे शादी समारोह में रोटियां बनाकर पढ़ाया और काबिल बनाया।

1. हसन सफीन आईपीएस गुजरात ( Hasan safin ASP Bhavnagar Police)
यूथ आईकन हसन सफीन गुजरात कैडर में आईपीएस हैं। इन्होंने साल 2017 में महज 22 साल की उम्र में 570वीं रैंक हासिल की। जामनगर एएसपी हसन सफीन की सक्सेस स्टोरी में इनकी मेहनत व मां की भूमिका सबसे बड़ी है।
Ankita
Sharma
:
नक्सलियों
के
खात्मे
के
साथ-साथ
युवाओं
को
अफसर
बना
रहीं
IPS
अंकिता
शर्मा
ये गुजरात के पालनपुर जिले के कनोदर गांव के रहने वाले है। माता-पिता हीरे की यूनिट में मजदूरी करते थे। कई बार इन्हें भूखे पेट सोना पड़ा। बेटे की पढ़ाई का खर्च निकालने के लिए मां नसीन बानो शादी समारोह में रोटियां बनाया करती थी।
ये
हैं
इतिहास
रचने
वाले
3
युवक,
IAS
अंसार
शेख,
IPS
हसन
सफीन
और
जज
मयंक
प्रताप
सिंह
मां सुबह तीन बजे जगती थी और रेस्त्रां व शादी समारोह के लिए 20 से 200 किलोग्राम आटे की रोटियां बनाती थीं। उनसे प्रतिमाह पांच से आठ हजार रुपए की कमाई होती। मां के अलावा एक स्थानीय व्यापारी ने भी हसन सफीन की दिल्ली में दो साल रहकर कोचिंग व पढ़ाई का 3.5 लाख रुपए का खर्च उठाया।

2. जयंत मनकले, आईएएस गुजरात (Jayant Mankale, IAS Gujarat)
गुजरात कैडर के आईएएस जयंत मनकले के आईएएस बनने में इन्हें दोहरी चुनौती का सामना करना पड़ा। एक तो इन्होंने अपनी आंखों की दृष्टि खो दी और दूसरी ये कि परिवार की कमजोर आर्थिक स्थिति।29 वर्षीय जयंत मांकले महाराष्ट्र के बीड जिले के रहने वाले हैं। इन्होंने महज दस साल की उम्र में पिता को खो दिया। घर चलाने के लिए इनकी मां ने अचार बनाकर बेचना शुरू किया।
मां ने जयंत को पढ़ाकर लिखाकर काबिल बनाया।इन्होंने संगमनेर के अमृतवाहिनी कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग में मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की। एक निजी फर्म में इंजीनियर के रूप में काम करते हुए यूपीएससी की तैयारी शुरू की।
जयंत बताते हैं कि गरीबी के ऑडियोबुक और स्क्रीन रीडर का खर्च नहीं उठा सकता था। इसलिए ऑल इंडिया रेडियो पर समाचार और व्याख्यान सुनकर भी तैयारी की। जयंत 2018 में फेल हुए। 2019 में 143वीं रैंक पाई।

3. एम शिवगुरु प्रभाकर, आईएएस तमिलनाडू (M Sivaguru Prabhakar, IAS Tamil Nadu )
तमिलनाडू कैडर के आईएएस एम शिवगुरु प्रभाकर की सक्सेस स्टोरी भी प्रेरणादायी है। इन्होंने साल 2004 में यूपीएससी परीक्षा पास की। इनके पिता को शराब की लत लग गई थी। तब मां और बहनों ने नारियल के पत्ते बेचकर इन्हें पढ़ाया।
तमिलनाडु
के
तंजावुर
जिले
के
मेलाओटंकाडु
गांव
में
पैदा
हुए
प्रभाकर
को
परिवार
की
आर्थिक
स्थिति
12वीं
कक्षा
के
बाद
इंजीनियरिंग
छोड़नी
पड़ी।
फिर
इन्होंने
लकड़ी
के
कारखाने
में
काम
किया।
उन्होंने
2008
में
वेल्लोर
के
एक
सरकारी
संस्थान
में
सिविल
इंजीनियरिंग
की
पढ़ाई
पूरी
की
और
IIT-मद्रास
में
दाखिला
लिया।
तब
इन्होंने
मोबइाल
रिचार्ज
की
दुकान
पर
भी
काम
किया।
अक्सर
वहां
रहने
के
लिए
जगह
नहीं
होने
के
कारण
रेलवे
स्टेशन
पर
ही
सो
जाते
थे।
साल
2017
में
यूपीएससी
सिविल
सेवा
परीक्षा
में
101वीं
रैंक
पाकर
आईएएस
बने।

4. कुलदीप द्विवेदी, आईआरएस ( Kuldeep Dwivedi, IRS )
IRS अधिकारी कुलदीप द्विवेदी मूलरूप से उत्तर प्रदेश के निगोह जिले के गांव शेखपुर के रहने वाले हैं। इनका बचपन गरीबी में बीता। पिता सूर्यकांत द्विवेदी ने विश्वविद्यालय सिक्योरिटी गार्ड का काम करके बेटे को पढ़ाया। कुलदीप ने पहली कक्षा से लेकर पोस्ट ग्रेजुएशन तक हिंदी मीडियम से ही पढ़ाई की। 12वीं पास करके इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया. वहां से हिंदी और भोगूल में ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन किया। साल 2015 में 242वीं रैंक पाकर कुलदीप IRS बने।

5. अंसार शेख, आईएएस पश्चिम बंगाल कैडर ( Ansar Sheikh, IAS West Bengal Cadre )
भारत में सबसे कम उम्र में आईएएस बनने का रिकॉर्ड अंसार शेख के नाम है। ये महज 21 साल की उम्र में आईएएस बने गए थे। मूलरूप से महाराष्ट्र के जालना जिले के शेलगांव के ऑटोरिक्शा चालक युनूस शेख अहमद के बेटे हैं। इनका जन्म 1 जून 1995 को हुआ। अंसार ने दसवीं में 91 प्रतिशत अंक प्राप्त किए। साल 2015 में 361वीं रैंक हासिल कर यूपीएससी परीक्षा पास की और पश्चिम बंगाल कैडर के आईएएस बने।
वर्ष 2016 में इनके पहली पोस्टिंग पश्चिम बंगाल के कूच बिहार में बतौर एसडीओ के रूप में मिली। अंसार शेख पुणे के कॉलेज में ग्रेजुशन कर रहे थे तब इनका पूरा खर्च छोटे भाई अनीस शेख ने उठाया। इसके अलावा अंसार के मददगारों में इनके खास दोस्त मुकुंद और दिल्ली के एनजीओ जकात फाउंडेशन आफ का का नाम भी शामिल है। अंसार साक्षात्कार व उसकी तैयारी के लिए 40 दिन दिल्ली में रहे। तब उस एनजीओ ने अंसार का पूरा खर्च उठाया।ये वर्तमान में ADM & AEO Cooch Behar Zilla Parishad at Government of West Bengal पद पर हैं।

6. श्रीधन्या सुरेश, आईएएस केरला ( Sreedhanya Suresh, IAS Kerala )
केरला के वायनाड जिले के गांव पोजुथाना निवासी श्रीधन्या सुरेश कुरिचिया जनजाति से है। इनके पिता दिहाड़ी मजदूर थे। गांव के बाजार में धनुष तीर बेचते थे। वहीं मां भी मनरेगा के तहत काम करती थीं।
श्रीधन्या ने कालीकट विश्वविद्यालय से एप्लाइड जूलॉजी में परास्नातक की डिग्री हासिल की। केरल में अनुसूचित जनजाति विकास विभाग में क्लर्क के पद पर भी कार्य किया। आईएएस श्रीराम सांबा शिवराव की प्रेरणा से यूपीएससी की तैयारी शुरू की। तीसरे प्रयास में साल 2018 में 410वीं रैंक पाई।
केरल की प्रथम जनजाति महिला आईएएस श्रीधन्या सुरेश के परिवार में गरीबी का आलम यह था कि जब इन्हें यूपीएससी साक्षात्कार के लिए दिल्ली आना था तो दोस्तों ने चंदा उगाकर 40 हजार रुपयों की व्यवस्था की।

7. राजेंद्र भारूड़, आईएएस, महाराष्ट्र कैडर ( Rajendra Bharud, IAS, Maharashtra Cadre)
आईएएस राजेंद्र भारूड़ महाराष्ट्र के धुले जिले के सामोडा के रहने वाले हैं। ये महाराष्ट्र के आदिवासी भील समाज से आईएएस बनने वाले पहले शख्स हैं। राजेंद्र जब अपनी मां कमलाबाई के पेट में थे तब इनके पिता बंडू भारूड़ की मौत हो गई थी। फिर मां कमला बाई ने शराब बेचकर इन्हें पाला और पढ़ाया। 7 जनवरी 1988 को जन्मे राजेन्द्र भारूड़ पहले प्रयास में आईपीएस और दूसरे में आईएएस बने। ये वर्तमान में Commissioner, Tribal Research and Training Institute, Pune पद पर हैं।

8. अरविंद कुमार मीणा, आईएएस ( Arvind Kumar Meena, IAS )
मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो राजस्थान के दौसा जिले के सिकराय उपखंड के गांव नाहरखोहरा निवासी अरविंद कुमार मीणा ने यूपीएससी 2020 में 676वीं रैंक पाकर आईएएस बने। इन्होंने एसटी वर्ग में 12वीं रैंक पाई थी।
इनके पिता के निधन के बाद मां सज्जनो देवी ने मजदूरी करके पढ़ाया। कभी इनका परिवार बीपीएल में हुआ करता था।
आईएएस बनने से पहले अरविंद का चयन सशस्त्र सीमा बल में सहायक कमांडेंट के पद पर हुआ। फिर भी इन्होंने यूपीएससी की तैयारी जारी रखी और आखिर में आईएएस बनने में सफल हुए।