गोबर बन गया 'सोना' : नौकरी छूटने के बाद छोटे से आइडिया ने बदल दी 4 युवाओं की जिंदगी
नई दिल्ली। वक्त-वक्त की बात है, जो गोबर कभी इनके कोई काम का नहीं था वो अब इनके लिए 'सोने' से कम नहीं। गोबर ने इनकी जिंदगी बदल दी है। परिवार के पालन-पोषण का सबसे बड़ा जरिया बन गया है। हम बात कर रहे हैं उत्तराखंड के उन चार युवकों की, जिन्होंने लॉकडाउन में अपनी नौकरी गवां दी थी। अब ये चारों गोबर से अच्छी खासी कमाई कर रहे हैं।
उत्तराखंड के गांव बमोली में गोबर से बनते हैं दीपक
उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले की लैंसडाउन के ग्राम बमोली की प्रधान विनिता रावत, गोबर से दीपक बनाने वाले युवाओं व दीपक की मार्केटिंग करने वालीं नीलम सिंह नेगी 'नीलकंठ' ने वन इंडिया हिंदी से बातचीत में बताया कि गोबर के जरिए किस तरह से रोजगार मिल रहा है और इसी दिशा में आगे बढ़ने के लिए भविष्य में क्या योजना बनाई जा रही है।
लॉकडाउन से पहले कौन क्या करता था?
उत्तराखंड के गांव बमोली निवासी चार युवकों की कोरोना महामारी के कारण लॉकडाउन में नौकरी चली गई थी। आईटीआई डिग्री होल्डर संतोष दिल्ली की एक कम्पनी में इलेक्टीशियन व होटल मैनेजमेंट का डिप्लोमा करने वाला मनीष उत्तराखंड के एक होटल में काम करता था। वहीं, 12वीं पास संदीप ठेला रेहड़ी और विजेंद्र हरिद्वार में रिक्शा चलाता था।
क्या है गोबर को 'सोना' बनने वाला आइडिया?
ग्राम बमोली की प्रधान विनिता रावत बताती हैं कि लॉकडाउन में काम छूटा तो चारों युवक गांव लौट आए थे। कुछ माह में ही इनकी जमा पूंजी पूरी खर्च हो गई। परिवार पालना मुश्किल हो गया था। इस बीच सतपुली निवासी नीलम सिंह नेगी 'नीलकंठ' इन युवाओं के लिए उम्मीद की नई किरणें लेकर आईं। नीलम 'सीएससी वैली' नामक संस्था से जुड़ी हैं। उन्होंने चारों युवकों को गोबर से दीपक बनाने के लिए तैयार किया।
प्रशिक्षण व डाई उपलब्ध करवाई?
नीलम सिंह नेगी 'नीलकंठ' बताती हैं कि चारों युवाओं को गोबर से डिजाइनिंग दीपक बनाने का प्रशिक्षण देने के साथ ही डाई भी उपलब्ध करवाई है। अभी काम इनता बढ़ गया है कि डाई की संख्या कम पड़ने लगी है। फिलहाल हम दीपावली 2020 की डिमांड को ध्यान रखकर गोबर से दीपक तैयार करवा रहे हैं। साथ ही गोबर से लक्ष्मीजी व गणेशजी की प्रतिमा भी बना रहे हैं।
दिवाली से पहले तैयार होंगे 10 हजार दीपक
गोबर से दीपक बनाने वाले मनीष बताते हैं कि गोबर को गूंथकर डाई में रखते हैं, जिससे एक डिजाइनदार दीपक आकार ले लेता है। इसे दो दिन धूप में सुखाने के बाद नीलम सिंह को भेज दिया जाता है। अब तक दो हजार से अधिक दीपक भेज चुके हैं। 10 नवंबर तक 10 हजार दीपक तैयार करेंगे। फिलहाल चारों के पास खुद की गायें हैं। उन्हीं के गोबर का इस्तेमाल कर रहे हैं, मगर दीपक की डिमांड देखते हुए गोशालाओं व अन्य घरों से गोबर मंगवाना पड़ेगा।
कहां है गोबर के दीपक की डिमांड?
गोबर का दीपक कौन खरीदेगा? इसका जवाब देते हुए नीलम सिंह कहती हैं फिलहाल हमारे पास दिल्ली, गाजियाबाद और जयपुर से डिमांड है। पहली बार यहां पर गोबर के दीपक उपलब्ध करवाएंगे। दीपावली के बाद उत्तराखंड के मंदिरों में गोबर के दीपक इस्तेमाल करने पर जोर दिया जाएगा। नीलम कहती हैं कि गोबर का दीपक सामान्य मिट्टी के दीपक के तरह काम करता है, मगर इस्तेमाल करने की बजाय मिट्टी की दीपक फेंक दिया जाता है जबकि गोबर के दीपक का उपयोग पेड़ पौधों में खाद के रूप में भी किया जा सकता है।
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