नागरिकता संशोधन विधेयक से पश्चिम बंगाल में भाजपा को बड़े फायदे की उम्मीद
नई दिल्ली:नागरिकता संशोधन बिल को लेकर भाजपा को पूर्वोत्तर भारत में भारी विरोध का सामना करना पड़ रहा है। भाजपा ने आगामी लोकसभा चुनाव में इन राज्यों से 20 से 25 सीटें जीतने का लक्ष्य तय किया था। लेकिन इस बिल आने के बाद इस लक्ष्य को पाने में खासी मुसीबतें हो सकती है। नागरिकता संशोधन विधेयक 2016 को सरकार ने शीतकालीन सत्र में मंगलवार को पास करा लिया था. लेकिन राज्यसभा में ये बिल पास नहीं हो पाया। नागरिकता संशोधन बिल से भाजपा को पूर्वोत्तर राज्यों में झटका लगने की अटकलों के बीच पार्टी को उम्मीद है कि पश्चिम बंगाल में इस बिल के आने से बड़ा फायदा होगा।
भाजपा को उम्मीद है कि इस बिल के आने से भाजपा को सूबे में एक करोड़ हिंदू बांग्लादेशियों का वोट मिल सकता है जो आने वाले लोकसभा चुनाव में भाजपा को बंगाल में कई सीटों पर जीत दिला जा सकता है. पश्चिम बंगाल के सरकार के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर से भी भाजपा को उम्मीदे हैं। भाजपा को उम्मीद है कि इस फैसले के बाद असम में नेशनल रजिस्टर फ़ॉर सिटिज़न्स (एनआरसी) प्रक्रिया के बाद भाजपा की जो एंटी बंगाली छवि बन रही है ये बिल उसे भी भी कम करेगा। बीजेपी रिफ्यूजी सेल के अध्यक्ष मोहित राय का कहना है कि केंद्र सरकार को शरणार्थियों को नागरिकता देने के लिए किसी बड़ी प्रक्रिया की आवश्यकता नहीं है।
उन्होंने आगे कहा कि नागरिकता के लिए भरे जाने वाले फॉर्म सामान्य हैं। हम जानते हैं कि जब ये लोग पड़ोसी देशों से यहां भाग के आए तो अपने साथ डॉक्यूमेंट्स नहीं लाए होंगे। ऐसे में इन्हें ऐसे दस्तावेज जमा करने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। उन्होंने कहा कि अगर नागरिकता संशोधन विधेयक बिल बन जाएगा तो हमें एनआरसी की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। भाजपा सदस्यों के मुताबिक, 'पार्टी उन जिलों में विधेयक का प्रचार करने के लिए शिविर लगाएगी जहा शरणार्थियों की संख्या बहुत अधिक है। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष ने कहा कि यह मुद्दा हमारे चुनाव अभियान में प्रमुख होगा। यह बांग्लादेश से औए भारत आए हिंदू शरणार्थियों के लिए एक बड़ी उपलब्धि है'।
नागरिकता (संशोधन) विधेयक 2016 क्या है?
ये विधेयक पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आने वाले गैरमुस्लिमों के लिए भारत की नागरिकता आसान बनाने के लिए है. इसके बिल के कानून बन जाने पर इन तीन देशों से भारत आने वाले शरणार्थियों को 12 साल की जगह छह साल बाद ही भारत की नागरिकता मिल सकती है। वहीं अगर असम की बात करें तो सा 1985 के असम समझौते के मुताबिक 24 मार्च 1971 से पहले राज्य में आए प्रवासी ही भारतीय नागरिकता के पात्र थे। लेकिन नागरिकता (संशोधन) विधेयक में यह तारीख 31 दिसंबर 2014 कर दी गई है।
लोकसभा में ये बिल पास होते ही बांग्लादेश में शरणार्थियों का मुद्दा लाइमलाइट में आ गया है। राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने प्रशासन को आदेश दिए हैं कि तुरंत रिफ्यूजी कयों को सरकारी मंजूरी दी जाए।