Election analysis: शिवसेना के कड़वे बोल भाजपा की साख में घोल
पिछले पच्चीस सालों से महाराष्ट्र की सत्ता पर कब्जा करने की छटपटाहट विधानसभा चुनाव से पहले शुरू हो गई है। इस बार भाजपा सबसे ज्यादा उत्साहित है। क्योंकि लोकसभा चुनाव में इतने भारी मतो से जो जीती है। लेकिन लगता है कि शिवसेना भाजपा के इस सपने पर पानी फेर देंगी। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव का काउंट डाउन शुरू हो गया है।
इससे पहले ही भाजपा के साथ महाराष्ट्र में साथ निभा रही शिवसेना ने अपने ऊलृ-जुलूल शब्द बाण छोड़ने शुरू कर दिए हैं। कभी भाजपा के निर्णय के विरोध में सुर छूट रहे हैं तो कभी किसी दूसरे राज्य के लिए तो कभी बलात्कार पीड़ित महिलाओं के खिलाफ। इससे एक सवाल उठने लगा है कि क्या शिवसेना के यह कड़वे बोल भाजपा से महाराष्ट्र हमेशा के लिए छीन लेंगे?
शिवसेना ने सबसे पहले भाजपा सरकार की ओर से रेल किराया बढ़ाए जाने पर विरोध जताया। तब लगने लगा था कि भाजपा-शिवसेना गठबंधन टूट जाएगा। थोड़ी स्थित संभलती तो इससे पहले ही शिवसेना के कड़वे बोल औऱ टिप्पणियां भाजपा सरकार की किरकिरी किए जा रहे हैं। गत दिनों शिवसेना के उद्धव ठाकरे ने कर्नाटक के एक जिले में महाराष्ट्र राज्य का साइन बोर्ड लगाए जाने पर कर्नाटक सरकार की ओर से गलत ठहराकर हटाने कन्नड़ भाषी समाज पर टिप्पणी कर दी थी। उद्धव ठाकरे ने इसके परिणाम को सोचे बिना ही कन्नड़ आतंकवाद कहा।
उद्धव के कड़वे बोल यही नहीं रुके। अब मुंबई में एक मॉडल से डीआईजी द्वारा बलात्कार किए जाने के मामले पर भी बवाल मचा। शिवसेना के मुख पत्र 'सामना' में लिखे एक सम्पादकीय में एक टिप्पणी करते हुए बलात्कार आरोपी डीआईजी अधिकारी सुनील पारसकर का बचाव किया गया। यही नहीं बचाव करते हुए महिलाओं पर भद्दी टिप्पणी की। कहा गया कि महिलाओं के लिए छेड़छाड़ औऱ बलात्कार के आरोप लगाना एक हथियार है। इससे शिवसेना तो महाराष्ट्र ने अपनी गत बिगाड़ ही ली है साथ ही भाजपा की छवि पर भी संकट के बादल हैं।
महाराष्ट्र की सत्ता पर काबिज कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन में भी इस बार उथल-पुथल का माहौल है। कांग्रेस-एनसीपी की यह सुगबुगाहट तब उजागर हई जब शिवसेना से ही कांग्रेस में शामिल हुए नारायण राणे ने अपने उद्योगमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। खबर थी कि इस बार महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बनने को लेकर नारायण राणे जिद्द पर अड़े थे। वहीं एनसीपी और कांग्रेस में इसको लेकर ही नहीं बल्कि कई मामलों पर तालमेल नहीं बैठ पा रहा है। वैसे भी राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस में अंदरूनी कलह का भी माहौल है।
जिसका फायदा भाजपा को महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में मिल सकता है। बशर्ते, भाजपा को इसके लिए अपने साथी तय करने होंगे, यह भी तय करना होगा कि कौन सा साथी उसके लिए सही है और कौन सा नहीं। सही मायनों में भाजपा को महाराष्ट्र में अपनी स्थिति के कारणों का हल तलाशते हुए मंथन करने की जरूरत है।
कहने की जरूरत नहीं कि शिवसेना के साथ महाराष्ट्र में सरकार बनाने का सपना पाले भाजपा की साख धीरे-धीरे घट रही है। शायद यही वजह रही है कि भाजपा महाराष्ट्र में सरकार नहीं बना पाई है। यदि अब भी भाजपा में इसको लेकर चिंतन शुरू नहीं हुआ तो आने वाले विधानसभा में भाजपा को इसका खामियाजा हार के रूप में उठाना पड़ सकता है।