महाराष्ट्र चुनाव विश्लेषणः पुरखों की बिगाड़ी 'इमेज' को साफ करेगा यह युवा नेता?
वर्ष 1995 के बाद भाजपा या शिवसेना राज्य की सत्ता का केंद्र नहीं बन सकी तो इसके पीछे शिवसेना पुरखों का अड़ियल रवैया ही जिम्मेदार रहा है। उत्तर भारतियों के खिलाफ बदज़ुबानी तो कभी तीखे चुभने वाले बोल तो कभी सिर्फ मराठा और महाराष्ट्र के अस्तित्व पर ही बात ने हमेशा से ही शिवसेना को एक साधारण जिंदगी से जूझ रहे युवा से हमेशा से ही दूर रखा है। शायद यही वजह भी थी कि कभी शिवसेना वर्चस्व केंद्र में नहीं बन सका।
90 के दशक के दंगों के दौरान शिवसेनिकों का उग्र रूप कभी भी आज तक शिवसेना की इमेज को साफ सुथरी करके पेश नहीं कर सका। लेकिन लगता है कि इस बात को शिवसेना खुद समझ चुकी है। शिवसेना के प्रमुख उद्धव ठाकरे ने अपनी अगली पीढ़ी आदित्य ठाकरे को इस चुनाव में लांच कर दिया है।
इधर भाजपा कह रही है कि नरेंद्र मोदी की हवा चल रही है। ऐसे में शिवसेना के लिए सबसे बड़ी चुनौति अपनी छवि भाजपा से बेहतर साबित करने की थी। यह काम आदित्य को सौंपा गया है।
यहां सबसे बड़ी चुनौति आदित्य ठाकरे के सामने है वो यह है क्या पुरखों के अड़ियल रवैये से बिगड़ी पार्टी इमेज सुधार पाएंगे। इसके लिए आदित्य महाराष्ट्र में लगातार रैली कर रहे हैं। रोड शो कर रहे हैं। साथ ही सोशल मीडिया नेटवर्क पर युवाओं से संवाद कर रहे हैं।
25 वर्षों की जिद्द
पिछले पच्चीस सालों से महाराष्ट्र की सत्ता पर कब्जा करने की छटपटाहट विधानसभा चुनाव बरकरार है। इस बार भाजपा सबसे ज्यादा उत्साहित है। क्योंकि लोकसभा चुनाव में इतने भारी मतो से जो जीती है। लेकिन लगता है कि शिवसेना भाजपा के इस सपने पर पानी फेर देंगी। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव का काउंट डाउन शुरू हो गया है।
सत्ता की लालसा
शिवसेना और भाजपा भले महाराष्ट्र में सहयोगी पार्टी थी लेकिन मुख्यमंत्री बनने बनने और सत्ता की उच्च कोटी तक पहुंचने की दोनो पार्टी की लालसा ने गठबंधन में घुन लगा दिया। देखते ही देखते पच्चीस साल पुराना मजबूत गठबंधन कहा जाना वाला घुन से लकड़ी के बने बुरादे की तरह धाराशाई हो गया।