"मन-से" क्यों नहीं मिल रहे उद्धव ठाकरे
मुंबई।
कभी
एक
दूसरे
के
साथ
न
छोड़ने
वाले
उद्धव
ठाकरे
"मन-से"
यानी
महाराष्ट्र
नव
निर्माण
सेना
से
क्यों
नहीं
मिल
रहे
हैं।
यह
सवाल
बना
हुआ
है।
दरअसल,
शिवसेना
प्रमुख
उद्धव
ठाकरे
अगर
नव
निर्माण
सेना
से
हाथ
मिला
लें
तो
हो
सकता
है
कि
आगे
चलकर
महाराष्ट्र
की
जनता
में
एक
अच्छा
संदेश
जाए।
आज
के
दौर
में
जहां
जनता
राजनीतिक
पार्टियों
के
एक-एक
कदम
का
बारीकी
से
अध्ययन
कर
रही
है
और
फिर
वोट
दे
रही
है
तो
यह
जरूरी
हो
जाता
है
कि
शिवसेना
को
अपनी
साख
मजबूत
करने
के
लिए
समाज
में
भाईचारे
के
संदेश
के
साथ
शुरूआत
करनी
होगी।
यह हो रहा है नुकसान
काफी हद तक यह भी वजह है कि महाराष्ट्र जनता शिवसेना को लेकर भ्रमितो हो गई है। तोवहीं जो परम्परागत वोट था वो भी बिखर गया है। पहले शिवसेना के नाम पर पड़ने वाला परम्परागत वोट कुछ शिवसेना के हक में जाता है तो कुछ बचा कुचा महाराष्ट्र नव निर्माण सेना के प्रमुख राज ठाकरे के हक में जाता है। हो न हो, महाराष्ट्र में शिवसेना के अस्तित्व पर मंडरा रहे खतरे को टालने और एक अच्छा संदेश यही हो सकता है कि शिवसेना और महाराष्ट्र नव निर्माण सेना दोनो एक दूसरे से हाथ मिलाएं।
भावुक निर्णय
महाराष्ट्र नव निर्माण पार्टी और शिवसेना पार्टी के चरित्र का एक पहली यह भी है कि पार्टी एक भावुक ढांचे में ढली हुई है। जो पार्टी के लिए हमेशा खतरनाक और साख को गिराने वाला साबित हुआ है। इस भावुकता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि शिवसेना या महाराष्ट्र नव निर्माण सेना प्रमुखों बयान आते ही किसी समाज को साहनुभूति मिलती है तो कोई समुदाय अपने आप को ठगा सा महसूस करता है। पार्टी के नेताओं की ओर से कुछ ऐसा बयान दे दिया जाता है कि उससे विवाद खड़ा होना जैसे रुटीन हो गया है।
शिवसेना में कितना भावुक पन है इसका अंदाजा इस ट्विट से लगया जा सकता है-