युवाओं को लुभा पाने में क्षेत्रीय पार्टियां नाकाम?
क्षेत्रीय पार्टियां, राष्ट्रीय पार्टियों के सामने लगातार पिछड़ रही हैं। बसपा और सपा पार्टी की उत्तर प्रदेश में हुकूमत छोड़ भी दें तो यह देखने में आया है कि राष्ट्रीय पार्टियों की ओर से उठाए गए मुद्दों से देश का युवा ज्यादा प्रभावित होता है। राष्ट्रीय पार्टियों की जहां बात आती है कांग्रेस और भाजपा का ही नाम लिया जाता है।
दशकों से कांग्रेस के बाद भाजपा ही ऐसी पार्टी रही जिसने देश की जनता को ज्यादा प्रभावित किया। केंद्रीय राजनीति की सुईं कांग्रेस तो कभी भाजपा की ओऱ ही घूमती है।
आखिर ऐसा क्यों
दरअसल, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और शिक्षा पर बोलने वाली पार्टियां युवाओं को ज्यादा आकर्षित करती हैं। उत्तर प्रदेश में क्षेत्रीय पार्टियां इन मुद्दों से अलग जातिवाद और अन्य मुद्दों की ज्यादा से ज्यादा बात करती हैं। वहीं महाराष्ट्र में अभी सम्पन्न हुए विधानसभा चुनाव को देख लें तो पता चलेगा कि महाराष्ट्र में शिवसेना, एनसीपी और महाराष्ट्र नव निर्माण सेना पार्टी राज्य में रहने वाले समुदाय तक ही सीमित रही हैं। राष्ट्रीय स्तर पर कोई भ्रष्टाचार, गरीबी, शिक्षा जैसे मुद्दों पर चलाया गया अभियान इनके नाम नहीं है।
यह तो सिर्फ उदाहरण है। पूरे देश में सभी क्षेत्रीय पार्टियों का ही यही हाल है। विभिन्न राज्यों छोटी औऱ क्षेत्रीय पार्टी या तो बिलकुल खत्म हो जाती है या फिर राज्य की सीमा लांघकर देश की केंद्रीय सत्ता तक पहुंचकर कोई गहरी छाप नहीं छोड़ पाती।
विकल्प कम होते जा रहे हैं
क्षेत्रीय पार्टियों की ओर केंद्रीय और बड़े मुद्दों को नहीं उठाने और उन पर लम्बे समय तक काम नहीं करने की वजह से युवा मतदाता के पास अपना प्रतिनिधि चुनने के विकल्प कम होते जा रहे हैं। अब या तो कोई मतदाता कांग्रेस के बारे में सोचता है या फिर भाजपा के बारे में। इसका एक उदाहरण देखा जा सकता है आप पार्टी में। आप पार्टी इतने दशकों में एक पहली ऐसी क्षेत्रीय पार्टी कही जा सकती है जिसने युवाओं को प्रभावित किया था। वो इसलिए क्योंकि आप पार्टी के एजेंडे में भ्रष्टाचार, गरीबी, शिक्षा, बेरोजगारी जैसे मु्द्दे रहे हैं।