कोरोना काल में गई पिता की नौकरी तो सब्जी का ठेला लगाने लगे नेशनल खिलाड़ी, अब खेल राज्यमंत्री ने की मदद
मेरठ। वैश्विक महामारी कोरोना वायरस ने आम ही नहीं, बल्कि बड़े-बड़े लोगों को भी सड़क पर लाकर खड़ा कर दिया है। ऐसी ही एक कहानी मेरठ जिले के रहने वाले नेशनल तीरंदाज नीरज चौहान और बॉक्सर सुनील चौहान की है। दरअसल, नेशनल खिलाड़ियों के पिता की कोरोना काल में नौकरी चल गई, जिसके चलते दोनों भाइयों सब्जी का ठेला लगाने को मजबूर हो गए। पिता के साथ दोनों खिलाड़ियों को सब्जे बेचता देख एडवोकेट रामकुमार गुप्ता ने दोनों खिलाड़ियों की 11 हजार रुपए की आर्थिक मदद की थी। इतना ही नहीं, दोनों खिलाड़ियों की कहानी बताते हुए एक वीडियो भी सोशल मीडिया पर अपलोड करते हुए लोगों से इन खिलाड़ियों की मदद की गुहार भी लगाई थी।
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सोशल मीडिया पर दोनों का वीडियो वायरल होने के बाद वहीं अब खेल मंत्रालय आगे आया है। खेल मंत्रालय ने दोनों भाइयों की 5-5 लाख रुपए की आर्थिक मदद करने का फैसला लिया है। खेल राज्यमंत्री किरण रिजिजू ने दोनों खिलाड़ियों का नाम लिखकर ट्वीट किया। उन्होंने लिखा, 'तीरंदाज़ नीरज चौहान और बॉक्सर सुनील चौहान को दीनदयाल उपाध्याय फंड से पांच-पांच लाख रुपए की आर्थिक सहायता दी जाएगी, ताकि आर्थिक तंगी की वजह से प्रतिभा दम न तोड़ सके। इतना ही नहीं, खेल मंत्री किरन रिजिजू ने बताया कि पंडित दीन दयाल उपाध्याय फंड से इन खिलाडिय़ों की मदद की है और कहा है कि कोई भी खिलाड़ी आर्थिक रूप से परेशान है तो उसकी इस फंड से मदद की जाएगी।
दोनों
खिलाड़ी
मदद
से
खुश
इस
खबर
से
इन
दोनों
खिलाड़ियों
की
खुशी
का
ठिकाना
नहीं
है।
दोनों
भाइयों
का
सपना
है
कि
वो
ओलम्पिक
में
पदक
जीतकर
सरकार
का
रिटर्न
गिफ्ट
दें।
सुनील
चौहान
बॉक्सिंग
और
नीरज
चौहान
तीरंदाज़ी
में
पदकों
की
झड़ी
लगा
चुके
हैं।
इन
दोनों
खिलाड़ियों
ने
इतने
पदक
जीते
हैं
कि
दो
कमरे
के
घर
में
सामान
कम
पदक
ज्यादा
है।
इनके
घर
में
जिधर
भी
नज़र
जाती
है
मेडल
ही
मेडल
नज़र
आते
हैं।
23
साल
से
मेरठ
में
रह
रहा
है
परिवार
अक्षय
चौहान
मूल
रूप
से
गोरखपुर
जिले
के
रहने
वाले
हैं,
लेकिन
पिछले
23
साल
से
वो
मेरठ
के
कैलाश
प्रकाश
स्टेडियम
में
बतौर
संविदाकर्मी
काम
कर
रहे
थे।
स्टेडियम
के
हॉस्टल
में
रहने
वाले
खिलाड़ियों
के
लिए
खाना
बनाते
थे।
लेकिन
कोरोना
के
चलते
जब
स्टेडियम
के
खिलाड़ी
अपने
अपने
घर
चले
गए
तो
अक्षय
को
भी
काम
से
हटा
दिया
गया
था।
जिसके
बाद
परिवार
के
सामने
रोज़ी
रोटी
का
संकट
पैदा
हो
गया
था।