मेरठ: लॉकडाउन में टूट गए नेशनल खिलाड़ी के सपने, तीर-कमान की जगह हाथों में आया तसला-फावड़ा
मेरठ। वैश्विक महामारी कोरोना वायरस में जहां विश्व की आर्थिक व्यवस्था चौपट हो कर रह गई। वहीं, हालातों से मजबूर कुछ खिलाड़ियों के सपने भी टूटने की कगार पर हैं। ताजा मामला मेरठ जिले का है। जहां लॉकडाउन के चलते परिवार के आर्थिक हालात खराब होने के कारण अब आर्चरी की नेशनल खिलाड़ी मजदूरी करने पर मजबूर हो गई है। हाथों में धनुष बाण की जगह तसला और फावड़ा आ गया है। जिसके बाद अब नेशनल खिलाड़ी का परिवार सरकारी मदद का तलबगार है।
एक स्वर्ण, चार रजत और चार कांस्य पद जीत चुकी है मनीषा
मेरठ जिले के रहने वाले देवेंद्र गागट की सबसे छोटी बेटी मनीषा तीरंदाजी की नेशनल खिलाड़ी है। वर्ष 2015 से मेरठ के कैलाश प्रकाश स्पोर्ट्स स्टेडियम में तीरंदाजी की प्रैक्टिस कर रही मनीषा अब तक राज्य स्तर पर एक स्वर्ण, चार रजत और चार कांस्य पदक जीत चुकी हैं। इसी के साथ ऑल इंडिया यूनिवर्सिटी के खेलो इंडिया में भी कांस्य पदक जीत चुकी हैं। वहीं, तीरंदाजी की जूनियर और सीनियर सहित यूथ प्रतियोगिता में भी भाग ले चुकी हैं। आलम यह है कि मनीषा के घर में मेडल का ढेर लगा हुआ है। इस सबके बावजूद आज के समय में मनीषा घरों में मजदूरी करने पर मजबूर हो गई हैं।
धनुष बाण की जगह फावड़ा आया हाथ में
दरअसल, लॉकडाउन के चलते परिवार के आर्थिक हालात खराब होते चले गए और पिता ने भी आर्थिक तंगी का हवाला देते हुए अब खेल के लिए मनीषा की मदद करने से इंकार कर दिया। मगर इसके बावजूद हौसलों की मजबूत मनीषा आज भी अपने घर से 8 किलोमीटर दूर स्टेडियम तक साइकिल से जाती हैं और प्रैक्टिस करने के बाद वापस लौटती हैं। जिसके बाद वह अपने घर से मजदूरी पर निकल जाती हैं। आज मनीषा के हाथों में धनुष बाण की जगह तसले और फावड़े ले ले ली है।
कर रही है तीरंदाजी की प्रैक्टिस
मनीषा जैसे होनहार खिलाड़ियों की यह हालत खेल मंत्रालय द्वारा खिलाड़ियों के प्रोत्साहन के लिए किए जाने वाले तमाम दावों पर एक बड़ा सवाल हैं। हालातों से मजबूर मनीषा आज सरकारी मदद की तलबगार हैं। मनीषा का दर्द है कि जिस धनुष और बाण से आज वह तीरंदाजी की प्रैक्टिस कर रही हैं। कुछ दिन बाद ग्रेजुएशन पूरी होने पर यह भी पंजाब के विश्वविद्यालय में जमा हो जाएगा। क्योंकि यह धनुष बाण भी उन्हें विश्वविद्यालय द्वारा ही उपलब्ध कराया गया है।