kargil vijay diwas: अखिरी सांस तक दुश्मनों से लड़ते रहे थे शहीद रविकरन, 10 घुसपैठियों को मार गिराया था
मथुरा। कारगिल युद्ध 1999 को आज 26 जुलाई 2020 को 21 साल पूरे हो गए। देशभर में कारगिल विजय दिवस मनाया जा रहा है। 60 दिन चली कारगिल की जंग में भारतीय सेना को सबसे पहली जीत 13 जून 1999 की सुबह द्रास सेक्टर की तोलोलिंग पहाड़ी पर मिली थी।कारगिल युद्ध में मथुरा के लाल रविकरन ने अंतिम सांस तक लड़ते हुए पाकिस्तान के 10 घुसपैठियों को मार गिराया था। कारगिल शहीद नायक रविकरन सिंह कर्नल कुशल सिंह ठाकुर की टुकड़ी में सबसे आगे थे। 4 जुलाई, 1999 को रविकरन के शहादत की खबर मिली थी।
12000 हजार फीट की ऊंचाई पर दुश्मनों का सामना कर रहे थे नायक रविकरन
मथुरा के नौहझील के गांव नावली निवासी विजेंद्र सिंह के बेटे रविकरन की सेना में भर्ती वर्ष 1985 में हुई थी। ट्रेनिंग के बाद 18 ग्रेनेडियर लड़ाकू यूनिट में रविकरन सिपाही बने। इसके बाद कारगिल की लड़ाई में उन्हें जम्मू-कश्मीर भेजा गया। रविकरन की यूनिट 12000 फीट से अधिक ऊंचाई पर स्थित टाइगर हिल पर लड़ रही थी, जहां पाकिस्तानी सैनिक और घुसपैठियों से आमने-सामने की लड़ाई व गोलाबारी चल रही थी। कर्नल कुशल ठाकुर की यूनिट के जवान बचाव करते हुए चोटियों से हमला कर रहे थे।
आठ गोलियां लगने के बावजूद 10 घुसपैठियों को मार गिराया
साहसी और निडर नायक रविकरन सिंह लगातार दुश्मनों को मुंहतोड़ जवाब दे रहे थे, इसी दौरान फायरिंग में रविकरन सिंह के शरीर में कुल आठ गोलियां लगीं। एक गोली उनके हाथ में भी लगी थी, बावजूद इसके आखिरी सांस तक वो दुश्मनों का सामना करते रहे। उन्होंने पाकिस्तान के 10 घुसपैठियों को मार गिराया था। देश की रक्षा करते हुए नायक रविकरन वीरगति को प्राप्त हो गए। 7 जुलाई 1999 को उनका पार्थिव शरीर मथुरा उनके घर लाया गया। नावली गांव में पूरे सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया गया। शहीद के अंतिम दर्शन के लिए पूरा गांव उमड़ पड़ा था। हर शख्स की आंख में आंसू थे और शहीद की शहादत पर गर्व भी था।
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कारगिल पर विजय की 21वीं वर्षगांठ मना रहा देश
बता दें, भारत आज कारगिल पर विजय की 21वीं वर्षगांठ मना रहा है। 1999 में आज ही के दिन भारत के वीर सपूतों ने कारगिल की चोटियों से पाकिस्तानी फौज को खदेड़कर तिरंगा फहराया था। ''या तो तू युद्ध में बलिदान देकर स्वर्ग को प्राप्त करेगा या विजयश्री प्राप्त कर धरती का राज भोगेगा।'' गीता के इसी श्लोक को प्रेरणा मानकर भारत के शूरवीरों ने कारगिल युद्ध में दुश्मन को पांव पीछे खींचने के लिए मजबूर कर दिया था।
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