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कूड़ा-कचरा बीनने वालों के बच्चों को मुफ्त पढ़ाता है यह इंजीनियर, 20 वर्षों तक रकम जुटाकर खोला स्कूल

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सांगली। महाराष्ट्र में सांगली जिले के वालचंद कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग से इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियरिंग का डिप्लोमा करके इंजीनियर बने इरप्पा नाइक की कहानी से प्रेरणा ली जा सकती है। इरप्पा नाइक पिछले 20 सालों से गरीब बच्चों के लिए निशुल्क शिक्षा उपलब्ध करा रहे हैं। अपनी नौकरी से उन्होंने जो रकम जमा की, उससे वह कूड़ा-कचरा बीनने वालों के बच्चों के लिए इंतजाम करते हैं। वह पहली से दसवीं क्लास तक के 500 बच्चों को पढ़ा चुके हैं।

51 साल को हो चुके, बताई पूरी कहानी

51 साल को हो चुके, बताई पूरी कहानी

अब इरप्पा नाइक 51 वर्ष के हो चुके हैं। वह एक दिहाड़ी मजदूर के बेटे थे। गरीब परिवार में जन्म लेने के बावजूद उन्होंने अपने हौंसलों की दास्तान ऐसी चुनी कि, दूसरों के लिए सहारा बन गए। इरप्पा नाइक बताते हैं कि, मेरे माता-पिता दिहाड़ी मजदूर थे। दो जून की रोटी का जुगाड़ कर पाना भी मश्किल होता था। ऐसे में हमें पढ़ाई के बारे में सोचने का सवाल ही नहीं था। घर चलाने के लिए दो बड़े भाइयों को भी मजबूर होकर पढ़ाई छोड़नी पड़ी।

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वर्ष 2000 में खोला महाराष्ट्र में अपना स्कूल

वर्ष 2000 में खोला महाराष्ट्र में अपना स्कूल

''मेरे दादा (बड़े भाई) बहुत ही होनहार विद्यार्थी रहे थे, किंतु खराब आर्थिक स्थिति के कारण उन्हें बीच में ही अपनी पढ़ाई छोड़नी। मगर, उन्होंने मुझे पढ़ाया और स्कूल की फीस भरने के लिए अतिरिक्त समय में मजदूरी की। मैं जब 10वीं क्लास में था तब एक दिन मैंने तय किया कि अपने भाई की निस्वार्थ मेहनत का कर्ज जरूर चुकाउूंगा। जिसके उपरांत वर्ष 2000 में मैंने महाराष्ट्र के मिराज शहर के बाहरी इलाके में गरीब बच्चों के लिए एक स्कूल खोलकर उस वादे को पूरा किया।''

नौकरी से पैसे बचाकर बरसों में किया यह इंतजाम

नौकरी से पैसे बचाकर बरसों में किया यह इंतजाम

नाइक कहते हैं, 'मुझे पढ़ाने के लिए बड़े भाई ने गरीबी को आड़े नहीं आने दिया और मेरी पढ़ाई का पूरा खर्च उठाया। मेरे लिए यह जीवन की एक ऐसी सीख थी, जिसे मैंने हमेशा याद रखा। 10वीं की बोर्ड परीक्षा पास करने से पहले ही मैंने यह ठान लिया था कि अपनी पढ़ाई खत्म करने के बाद मैं गरीब-वंचित बच्चों को पढ़ाऊंगा। तो बाद में जो स्कूल खोला, उसमें मैं बच्चों को निशुल्क शिक्षा देने लगा। मैंने अपनी नौकरी के 20 बरसों में जो रकम जुटाई, वो इसलिए कि गरीब बच्चों को मुफ्त पढ़ाया जा सके।'

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यह है क्रांतिवीर उमाजी नाइक हाई स्कूल

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आज तक नाइक अपने फैसले पर अडिग रहे और जिन बच्चों को अपने स्कूल में पढ़ाते हैं, उनमें से ज्यादातर मजदूरी करने वालों और कचरा बीनने वालों के बच्चे हैं। वह (नाइक) बताते हैं कि, 'मेरे स्कूल बनाने के सपने को तब पंख लगे, जब मैं एक सरकारी ठेकेदार के रूप में काम कर रहा था। अच्छे क्लासरूम और यूनिफॉर्म के साथ ही मुझे स्कूल को रजिस्टर करने के लिए परमिशन की भी जरूरत थी। इसलिए मैंने नौकरी से पैसे बचाने शुरू कर दिए। इसके लिए मेरे माता-पिता ने भी पूरा साथ दिया। बाद में शहर के बाहरी इलाके में थोड़ी-सी जमीन खरीदी और 10 कक्षों (हर ग्रेड के लिए एक कक्षा) का निर्माण कराया। फिर, अपने स्कूल को महाराष्ट्र शिक्षा बोर्ड में रजिस्टर कराया और 20 बच्चों के साथ 'क्रांतिवीर उमाजी नाइक हाई स्कूल' नाम से मराठी-मीडियम स्कूल शुरू किया। यह स्कूल अब तक बहुत से बच्चों का भविष्य सुधार चुका है।''

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English summary
story of Irappa Naik, a Engineer Son of Labourer from Maharashtra, Runs a Free School for 500 Kids of Waste Pickers
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