प्यारे खान : झुग्गी झोपड़ी में पैदा हुए, स्टेशन पर संतरे बेचे, जानिए फिर कैसे बने 600 करोड़ के मालिक?
नागपुर। वर्ष 2009 में डैनी बायल द्धारा निर्देशित फिल्म स्लमडॉग मिलिनयर आई थी, जिसमें झुग्गी झोपड़ी में रहने वाले लड़के की किस्मत बदलने की कहानी थी। यह रील लाइफ स्टोरी थी, मगर उसी दौरान रियल लाइफ में झुग्गी झोपड़ी में पैदा होने वाला शख्स खुद की कामयाबी की पटकथा लिख रहा था। आज वो 600 करोड़ रुपए की कम्पनी के मालिक हैं। नाम है प्यारे खान।
प्यारे खान, नागपुर महाराष्ट्र
मूलरूप से महाराष्ट्र के नागपुर के रहने वाले प्यारे खान ने झुग्गी झोपड़ी में जिंदगी गुजारने, पाई-पाई को मोहताज होने और रेलवे स्टेशन पर संतरा बेचने से लेकर करोड़ों की कम्पनी खड़ी करने तक का सफर तय किया है। प्यारे खान की सक्सेस स्टोरी काफी प्रेरणादायी है।
दसवीं में फेल हो गए थे प्यारे खान
मीडिया से बातचीत में प्यारे खान बताते हैं कि इनका जन्म झुग्गी झोपड़ी में हुआ। मां किराना की दुकान चलाती थी। पिता गांव-गांव जाकर कपड़े बेचते थे। समझने लगे तो घर की खराब आर्थिक की स्थिति को देखते हुए रेलवे स्टेशन पर संतरे बेचना शुरू कर दिया। इस बीच प्यारे खान ने पढ़ाई भी जारी रखी, मगर दसवीं पास नहीं कर पाने के कारण स्कूल से मोह छूट गया। फिर मां के गहने बेचकर 11 हजार रुपए का डाउन पेमेंट दिया और ऑटो खरीदा। अब ऑटो से संतरे बेचने लगे थे। यह सिलसिला वर्ष 2001 तक चला।
लोन देने से मना करती थीं बैंक
प्यारे खान कहते हैं कि वर्ष 2001 के बाद लगा कि कुछ बड़ा करना चाहिए, मगर दिक्कत यह थी कि पैसे नहीं थे। रिश्तेदार से 50 हजार उधार मांगे तो वह घर के कागज रखवाना चाहता था। फिर बैंकों से लोन के लिए चक्कर काटे। घर स्लम एरिया में होने के कारण कोई बैंक लोन नहीं दे रहा था। आखिर वर्ष 2004 में आईएनजी वैश्य बैंक से 11 लाख का लोन मिला।
छह माह बाद ट्रक का एक्सीडेंट
बैंक से 11 लाख का लोन मिलने के बाद प्यारे खान ने उन पैसों से ट्रक खरीदा, जिसे नागपुर अहमदाबाद के बीच चलाते थे। इन्होंने लगता था कि अब किस्मत पलटने वाली है, मगर छह माह में ही ट्रक का एक्सीडेंट हो गया। रिश्तेदार व दोस्त प्यारे खान को ट्रांसपोर्ट का धंधा छोड़ने की सलाह देने लगे थे, मगर प्यारे खान ने हिम्मत नहीं हारी।
ट्रक को ठीक करवाकर फिर आए मैदान में
ट्रक एक्सीडेंट के बाद प्यारे खान ने उसकी मरम्मत करवाई और फिर से उसे सड़क पर लेकर आए। बैंकों से आग्रह करके लोन की किश्त देरी से दी। कुछ समय बाद प्यारे खान का धंधा पटरी पर लौट आया। वर्ष 2007 में अश्मी रोड ट्रांसपोर्ट नाम से अपनी कम्पनी बनाई।
वर्ष 2013 में भूटान के काम ने बदली किस्मत
अब प्यारे खान की कम्पनी अश्मी रोड ट्रांसपोर्ट को काम मिलना शुरू हो गया। ट्रक और स्टाफ भी बढ़ने लगे। वर्ष 2013 में भूटान कुछ सामान लेकर जाना था। दिक्कत यह थी कि रास्ते में एक दरवाजा था, जो साढ़े 13 फीट ऊंचा था। जबकि ट्रक की ऊंचाई साढ़े 17 फीट हो रही थी। ऐसे में भारत के अधिकांश ट्रांसपोर्ट वालों ने वो काम लेने से मना कर दिया था।
सामान भूटान पहुंचाकर ही लिया दम
प्यारे खान ने उस काम को चैलेंज के रूप में लिया। खुद भूटान गए और वो दरवाजा देखा। फिर तय किया कि उनकी कम्पनी अश्मी रोड ट्रांसपोर्ट का ट्रक यह सामान लेकर भूटान जाएगा। प्यारे खान तरकीब लगाई और जब ट्रक उस दरवाजे के नीचे उतनी ही जमीन खोदी गई जितनी में ट्रक से आसानी से निकल सके।
प्यारे खान की कम्पनी में हो गए 700 कर्मचारी
भूटान वाला यह काम सफलतापूर्वक करने के बाद प्यारे खान की कम्पनी के मानों पंख लग गए। भूटान के साथ-साथ नेपाल और दुबई तक में प्यारे खान की कम्पनी के ट्रक ट्रांसपोर्ट का काम कर रहे हैं। कम्पनी में अब 250 ट्रक हो चुके हैं। 700 से ज्यादा कर्मचारी हैं। सालाना टर्न ओवर 600 करोड़ तक पहुंच चुका है।
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