Nashik oxygen leak:मृत मरीजों का सिलेंडर निकालकर अपने परिजनों को लगा रहे थे लोग, बहुत भयावह था मंजर
नासिक, 22 अप्रैल: महाराष्ट्र में नासिक के अस्पताल में बुधवार को हुए ऑक्सीजन लीक वाले हादसे की अंदर की कहानी अब बाहर आ रही है। डॉक्टर जाकिर हुसैन अस्पताल में अपने मरीजों का इलाज करवा रहे लोग जो घटना के वक्त वहां मौजूद थे, उन्होंने जो कुछ बताया है, वह हादसे की गंभीरता बयां कर रहा है। उनका कहना है कि लोग अपने परिजनों की जान बचाने के लिए मर चुके मरीजों का औक्सीजन सिलेंडर छीन रहे थे। कुछ लोगों ने इस उम्मीद में अपने परिजनों को दूसरे अस्पतालों में ले जाने की भी कोशिश की था कि शायद उनकी जान बच जाए, लेकिन उनमें से शायद ही किसी गंभीर मरीजों को कामयाबी मिल सकी। पूरे अस्पताल में अफरा-तफरी मची हुई थी। डॉक्टर और नर्स अपनी ओर से भरपूर कोशिश कर रहे थे, लेकिन ऑक्सीजन सप्लाई गंभीर मरीजों को ही रुक गया था और हॉस्पिटल स्टाफ ने अपने हिसाब से पूरा दम लगा दिया, लेकिन वह उस हाई-फ्लो ऑक्सीजन का विकल्प नहीं दे पाए, जिसकी उन मरीजों को दरकार थी।
मृत मरीजों से ऑक्सीजन सिलेंडर निकाल रहे थे लोग
नासिक के अस्पताल में जब ऑक्सीजन टैंक लीक हुआ तब 23 साल के विक्की जाधव वहीं पर मौजूद थे। उनकी 65 साल की दादी सुगंधा थोराट हादसे में मारे गए कम से कम 24 मरीजों में से एक थीं, जिन्होंने ऑक्सीजन सप्लाई रुकने से दम तोड़ दिया। जाधव उस मंजर के गवाह हैं, जब लोग मृत मरीजों को लगाए गए ऑक्सीजन सिलेंडर निकालकर अपने मरीजों को लगाने की कोशिश कर रहे थे। जाधव ने खुद भी दादी की सांसें लौटाने की भरपूर कोशिशें की है। उन्होंने कहा, 'एक घंटे के अंदर अपने लोगों को मरते देखना बहुत ही दर्दनाक है। लेकिन, मैं उस दृश्य को भूल ही नहीं पाता हूं कि कैसे लोग मृत मरीजों के बेड से ऑक्सीजन सिलेंडर झपट रहे थे और उसके जरिए अपने मरीजों को जिंदा करने की कोशिश कर रहे थे। यहां तक कि मैंने भी ऐसी कोशिश की, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।'
अस्पताल में मची थी अफरा-तफरी
10 बजे सुबह जब जाधव अपनी दादी से मिलने पहुंचे थे तो उनकी हालत गंभीर थी और उनका ऑक्सीजन सैचुरेशन सिर्फ 38 फीसदी था। लेकिन, उन्हें जल्दी ही महसूस हुआ कि उनकी दादी तक तो ऑक्सीजन पहुंच ही नहीं रहा है तब उन्होंने हॉस्पिटल स्टाफ को अलर्ट किया। उनके मुताबिक, 'जब मैंने उनसे कहा कि सिस्टम काम नहीं कर रहा है और तब उन्होंने चेक किया और उन्हें पता चला की लीक हो रहा है। ऐसी जानकारी मिलते ही तीसरे फ्लोर पर हड़कंप मच गया, जहां अधिकतर गंभीर मरीजों का ही इलाज चल रहा था और स्टाफ ने उन मरीजों को बचाने के लिए जंबो सिलेंडर लाना शुरू कर दिया।' हालांकि, टैंक से मिलने वाले हाई-वॉल्यूम एयर फ्लो के मुकाबले जंबो सिलेंडर कोई विकल्प नहीं था और रेस्पिरेटरी सपोर्ट के बिना कई गंभीर मरीजों को नहीं बचाया जा सका।
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डॉक्टरों-नर्सों ने भरपूर कोशिश की
जाधव ने उस हालात में भी डॉक्टर और नर्सों की कोशिशों की सराहना की है। उनके मुताबिक, 'डॉक्टर और नर्सों में अफरा-तफरी थी और वो मरीजों को बचाने की कोशिश कर रहे थे। रिश्तेदारों को जैसे ही भनक लगी कि कुछ गड़बड़ हो गया है वो वार्ड में पहुंचने लगे......जब हमें समझ में आया कि ऑक्सीजन खत्म हो रहा है, मेरे समेत सबके रिश्तेदार ऑक्सीजन सिलेंडरों को झपटना शुरू कर दिया, जो उन मरीजों को लगा हुआ था, जो दम तोड़ चुके थे। ' उनका कहना है कि 'मैं डॉक्टरों और नर्सों को दोषी नहीं मानता, वो जो कर सकते थे उन्होंने किया। मेरा गुस्सा प्रशासन पर है जो यह सुनिश्चित करने में नाकाम रहा है कि उन्होंने जो सिस्टम लगाया है वह सुरक्षित है।'
'मेरी आंखों के सामने भाई ने दम तोड़ दिया'
कुछ लोगों ने अपने मरीजों को बेड से उठाकर रिक्शा और गाड़ियों में पास के अस्पातालों में भी ले जाने की कोशिश की। लेकिन, नितिन वेलुकर जिनके भाई और मां एक ही वार्ड में भर्ती थे,ऐसा नहीं कर सके। उन्होंने बताया, 'मेरी मां को कल डिस्चार्ज होना था, जबकि मेरे भाई प्रमोद को चार दिन बाद डिस्चार्ज होना था। सुबह जब मैं उसके लिए खाना लेकर आया था तो वह काफी खुश था। दो घंटे से भी कम समय में मेरी आंखों के सामने मदद की गुहार लगाते हुए उसने दम तोड़ दिया और मैं उसके लिए कुछ नहीं कर सका।' उनके भाई की 45 साल थी।
'जंबो और डूरा सिलेंडर काम नहीं आया'
अस्पताल प्रशासन का कहना है कि मेडिकल स्टाफ ने गंभीर मरीजों को बचाने की भरफूर कोशिश की, लेकिन हाई-फ्लो ऑक्सीजन की सप्लाई अचानक रुकना उनके लिए जानलेवा साबित हुआ। एक नर्स ने नाम नहीं बताने की शर्त पर कहा, 'हमने अस्पातल में पड़े जंबो और डूरा सिलेंडर लगाया। पास के अस्पतालों से भी सिलेंडर मंगवाए गए। हालांकि, गंभीर रूप से बीमार मरीजों के लिए जिस हाई-फ्लो ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है यह इसका विकल्प नहीं हो सकता था और आखिरकार इसी वजह से उनकी मौत हुई।' हालांकि, अस्पताल में भर्ती 100 से ज्यादा मरीजों की जान बचा ली गई। इनमें से राजेस कनाडे और उनकी पत्नी शारदा कनाडे भी शामिल हैं, जो 5 दिनों से भर्ती हैं। उन्होंने बताया कि लीक के बाद अस्पताल में अफरा-तफरी मची थी। शारदा ने बताया, 'एक नर्स मेरे पति के बेड के पास आई और उनसे कहा कि घबराने की जरूरत नहीं है। उसने उन्हें एक सिलेंडर के जरिए कुछ वक्त के लिए उन्हें भी ऑक्सीजन दिया।'