22 साल में बना ये 22 एकड़ में फैला किला, समुद्र में बीचों-बीच सुरक्षा के लिए रखी गईं 22 तोपें, PHOTOS
मुंबई। भारत किले-महलों का देश है। यहां अमेरिका जैसे बड़े-बड़े बीच और यूरोप जैसे फुलियारे मैदान न सही, लेकिन यहां के किले और महल दुनियाभर के लोगों को आकर्षित करते हैं। हर किले का अपना-अलग इतिहास है और कुछ अलग ही कहानियां। Oneindia.com की 'किले-महलों की सैर' सीरीज के तहत आज हम आपको बताने जा रहे हैं एक ऐसे किले के बारे में, जिसका निर्माण 22 वर्षों में हुआ था। जो समुद्र के बीच 22 एकड़ में फैला हुआ है और उसमें 22 ही सुरक्षा चौकियां हैं। यह किला महाराष्ट्र के रायगढ़ से सटे मुरुद-जंजीरा में है, जो 350 साल से भी ज्यादा पुराना है। माना जाता है कि इसे शिवाजी, मुगलों से लेकर पुर्तगाली और ब्रिटिश शासक भी जीत नहीं सके थे।
कई रहस्य समेटे हुए है मुरुद-जंजीरा किला
रायगढ़ के पास अरब सागर में स्थित मुरुद-जंजीरा किला समुद्र तल से 90 फीट ऊंचा है। इस किले की बनावट ऐसी है कि इसे कब्जाने के लिए हुए हमले बेअसर रहे। कोई दुश्मन शासक इस किले पर फतह नहीं हासिल कर पाया। इस किले में सिद्दीकी शासकों की कई तोपें आज भी रखी हुई हैं, ये हर सुरक्षा चौकी में मौजूद हैं। इन सुरक्षा चौकियों में 22 तोपें रखी होती थीं। इतिहास में यह किला जंजीरा के सिद्दीकियों की राजधानी के रूप में प्रसिद्ध है। यह किला आज भी कई रहस्य समेटे हुए है।
इस किले के निर्माण के लिए निज़ाम शाह से इजाजत ली गई
दस्तावेजों के अनुसार, इस किले का निर्माण अहमदनगर सल्तनत के मलिक अंबर की देखरेख में 15वीं सदी में हुआ था। 15वीं सदी में राजापुरी (मुरुद-जंजीरा किले से 4 किमी दूर) के मछुआरों ने खुद को समुद्री लुटेरों से बचाने के लिए एक बड़ी चट्टान पर मेधेकोट नाम का लकड़ी का किला बनाया। इस किले को बनाने के लिए मछुआरों के मुखिया राम पाटिल ने अहमदनगर सल्तनत के निज़ाम शाह से इजाज़त मांगी थी।
अरब सागर में द्वीप पर बनाई गई थीं 40 फीट ऊंची दीवारें
इस किले को बनाने में काफी मशक्कत करनी पड़ी। अरब सागर में एक आइलैंड पर इस किले के चारों ओर 40 फीट ऊंची दीवारें बनवाई गईं। किले की अभेद्य सीमा के अंदर ही एक मीठे पानी की झील बनीं। समुद्र के खारे पानी के बीच होने के बावजूद भी इसमें मीठा पानी मिलता है। यह मीठा पानी कहां से आता है,इसका रहस्य आज भी कायम है।
20 सिद्दीकी शासकों ने किया था इस किले पर शासन
बताया
जाता
है
कि
इस
किले
पर
20
सिद्दीकी
शासकों
ने
राज
किया।
अंतिम
शासक
सिद्दीकी
मुहम्मद
खान
था।
सिद्दीकियों
का
शासन
खत्म
होने
के
330
वर्ष
बाद
3
अप्रैल
1948
को
यह
किला
आजाद
भारत
में
शामिल
कर
लिया
गया।
इस
किले
में
शाह
बाबा
का
एक
मकबरा
भी
है।
इतना
ही
नहीं,
इस
किले
का
परकोटा
बहुत
ही
मजबूत
है,
जिसमें
कुल
तीन
दरवाजे
हैं।
दो
मुख्य
दरवाजे
और
एक
चोर
दरवाजा।
मुख्य
दरवाजों
में
एक
पूर्व
की
ओर
राजापुरी
गांव
की
दिशा
में
खुलता
है,
तो
दूसरा
ठीक
विपरीत
समुद्र
की
ओर
खुलता
है।
चारों ओर कुल 19 बुर्ज, सभी एक—दूजे से 90 फुट फीट दूर
जंजीरा किले के चारों ओर कुल 19 बुर्ज हैं। प्रत्येक बुर्ज के बीच 90 फुट से अधिक का अंतर है। किले के चारों ओर 500 तोपें रखे जाने का उल्लेख भी कहीं-कहीं मिलता है। इन तोपों में कलाल बांगड़ी, लांडाकासम और चावरी तोपें आज भी देखने को मिलती हैं। इसी किले के बीचोबीच एक बड़ा-सा परकोटा है और पानी के दो बड़े तालाब भी हैं। माना जाता है कि इस किले में एक नगर भी था।
दूर होते ही दिखना बंद हो जाता है इस किले का द्वार
इस किले का दरवाजा दीवारों की आड़ में बनाया गया। जो किले से कुछ मीटर दूर जाने पर दीवारों के कारण दिखाई देना बंद हो जाता है। ऐसा कहा जाता है कि इसी वजह से दुश्मन किले के पास आने के बावजूद चकमा खा जाते थे और किले में घुस नहीं पाते थे।
पश्चिमी तट पर एकमात्र ऐसा किला जो कभी जीता नहीं गया
शासकों का राज खत्म होने के साथ ही यहां की बस्तियां पलायन कर गईं। फिर भी भारत के पश्चिमी तट का यह ऐसा किला बताया जाता है,जो दुश्मनों द्वारा कभी जीता नहीं गया।
देखने के लिए आप कैसे पहुंच सकते हैं यहां
मुरुद-जंजीरा किला देखने के लिए पहले मुंबई पहुंचना होगा। मुरुद से मुंबई एयरपोर्ट करीब 165 किमी दूर है। यहां से सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन पनवेल स्टेशन है, जो यहां से 122 किमी दूर है।
बस या अन्य साधन आसानी से मिल जाएंगे
मुंबई पहुंचने के बाद मुरुद जाने के लिए महाड़ आएं। इसके लिए पुणे और मुंबई से अलीबाग के लिए भी बस ली जा सकती है। फिर, बोट के जरिए यहां पहुंच सकते हैं।