'काम करें या घर पर बैठें एक महिला की पसंद', गुजारा भत्ते पर बॉम्बे हाई कोर्ट की अहम टिप्पणी
मुंबई, 11 जून: बॉम्बे हाईकोर्ट ने गुजारा भत्ते से जुड़ी एक याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि अगर महिला पढ़ी-लिखी है तो उसे बाहर काम पर जाने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है। बॉम्बे हाईकोर्ट ने पुणे के फैमिली कोर्ट के आदेश के खिलाफ पति की ओर से दायर एक पुनरीक्षण आवेदन पर सुनवाई के दौरान यह अहम टिप्पणी की।

पुणे फैमिली कोर्ट के फैसले के खिलाफ याचिका
दरअसल, पुणे के फैमिली कोर्ट ने पति को अलग रह रही पत्नी को भरण-पोषण का भुगतान करने का निर्देश दिया गया था, जिसके बाद पुरुष ने बॉम्बे हाई कोर्ट में अदालत के फैसले के खिलाफ एक याचिका दायर की। जस्टिस भारती डांगरे की एकल पीठ ने इस याचिका पर सुनवाई की। इस दौरान जज ने कहा कि एक महिला की पसंद है कि वो काम करें या घर पर बैठें। इसी के साथ उन्होंने पति को गुजारा भत्ता देने के लिए निर्दश दिए।
'काम करें या घर पर बैठें एक महिला की पसंद'
शुक्रवार को सुनवाई के दौरान अदालत ने कहा कि एक महिला के पास "काम करने या घर पर रहने का विकल्प" है, भले ही वह योग्य हो और उसके पास शैक्षिक डिग्री हो। जस्टिस भारती डांगरे ने कहा कि हमारे समाज ने अभी तक यह स्वीकार नहीं किया है कि घर की महिला को (आर्थिक रूप से) योगदान देना चाहिए। काम करने के लिए एक महिला की पसंद है। उसे काम पर जाने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है। सिर्फ इसलिए कि वह ग्रेजुएट है, इसका मतलब यह नहीं है कि वह घर पर नहीं बैठ सकती है।
महिला जज ने दिया खुद का उदाहरण
इसी के साथ उन्होंने अपना उदाहरण देते हुए कहा, "आज मैं इस अदालत की न्यायाधीश हूं। कल मान लीजिए मैं घर पर बैठ जाऊं। क्या आप कहेंगे कि मैं न्यायाधीश बनने के योग्य हूं और घर पर नहीं बैठना चाहिए?" वहीं याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि पारिवारिक अदालत ने उसके मुवक्किल को भरण-पोषण का भुगतान करने का "अनुचित" निर्देश दिया था, क्योंकि उसकी अलग रह रही पत्नी ग्रेजुएट थी और उसके पास काम करने और जीवन यापन करने की क्षमता थी।
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बता दें कि पति ने वकील अजिंक्य उडाने के जरिए दायर अपनी याचिका में यह भी आरोप लगाया कि उसकी अलग रह रही पत्नी के पास मौजूदा वक्त में में आय का एक स्थिर स्रोत था, लेकिन उसने इस तथ्य को अदालत से छुपाया था। याचिकाकर्ता ने फैमिली कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी, जिसमें उसे पत्नी को हर महीने 5 हजार रुपए और अपनी 13 वर्षीय बेटी के भरण-पोषण के लिए 7000 रुपए के भुगतान करने का निर्देश दिया गया था, जो वर्तमान में उसके साथ रहती है। हाईकोर्ट इस मामले में अगले हफ्ते आगे सुनवाई करेगा।