केंद्र ने अगर शुरू किया होता डोर टू डोर टीकाकरण अभियान, तो बच जाती कई लोगों की जान: बॉम्बे HC
मुंबई, 13 मई: पूरा देश कोरोना महामारी से सालभर से जूझ रहा है। वैज्ञानिकों ने साफ कर दिया कि जब तक कोरोना वैक्सीन देश के ज्यादातार नागरिकों को नहीं दे दी जाती, तब तक हालात ऐसे बने रहेंगे। इस बीच बुधवार को बॉम्बे हाईकोर्ट में वैक्सीन से जुड़ी एक याचिका पर सुनवाई हुई। इस पर कोर्ट ने कहा कि अगर केंद्र सरकार ने कुछ महीने पहले वरिष्ठ नागरिकों के लिए घर-घर टीकाकरण कार्यक्रम शुरू किया होता, तो मौजूदा वक्त में कई लोगों की जान बचाई जा सकती थी। जिनमें प्रमुख व्यक्ति भी शामिल थे।
दरअसल ध्रुति कपाड़िया और कुणाल तिवारी नाम के दो वकीलों ने हाईकोर्ट में वैक्सीन को लेकर याचिका दायर की थी। जिसमें उन्होंने कहा कि आमतौर पर जिन लोगों की उम्र 75 साल से ज्यादा है, वो या तो बिस्तर पर हैं, या फिर व्हीलचेयर के सहारे चलते हैं। ऐसे में वो टीकाकरण केंद्र तक पहुंचने में असमर्थ हैं। इस पर मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति जी. एस. कुलकर्णी की खंडपीठ ने केंद्र सरकार से पूछा कि बहुत से वरिष्ठ नागरिक टीकाकरण केंद्र पर आने में असमर्थ हैं, ऐसे में डोर-टू-डोर कार्यक्रम को क्यों नहीं शुरू किया गया। उन्होंने अपने 22 अप्रैल के उस फैसले को भी दोहराया, जिसमें उन्होंने केंद्र सरकार से डोर टू डोर टीकाकरण अभियान शुरू करने को कहा था।
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कोर्ट ने आगे कहा कि तीन हफ्ते का वक्त हो गया है, लेकिन केंद्र ने अभी तक अपने फैसले की जानकारी हमें नहीं दी। क्या हमें सरकार के खिलाफ दूसरे तरीके से फैसला लेना चाहिए था। कोर्ट ने मामले में केंद्र सरकार को 19 मई तक एक हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया है। इसके बाद आगे की सुनवाई की जाएगी। जस्टिस कुलकर्णी ने सुनवाई के दौरान कई अन्य देशों का उदाहरण दिया, जहां पर डोर टू डोर टीकाकरण शुरू हो चुका है। उन्होने कहा कि भारत में हम कई चीजें देर से करते हैं और चीजें हमारे देश में बहुत धीमी गति से चलती हैं।