कोरोना काल में तेजी से बढ़ी Kadaknath की डिमांड, इतने रुपये में बिक रहा एक काला मुर्गा
नई दिल्ली। मुर्गे की खास प्रजाति कड़कनाथ (Kadaknath) को उसकी खूबियों के चलते काफी पसंद किया जा रहा है। मध्य प्रदेश के आदिवासी बहुल झाबुआ जिले में पाए जाने वाले इस मुर्गे की मांग कोरोना वायरस के बढ़ते मामलों की बीच ज्यादा हो गई है। मध्य प्रदेश में भोपाल और इंदौर में कोरोना वायरस के सबसे ज्यादा मामले पाए जा रहे हैं। इनमें से इंदौर में लगातार चार दिन से 500 से ज्यादा नए मामले दर्ज हो रहे हैं। वहीं भोपाल में 300 के करीब नए मामले दर्ज हो रहे हैं।
अनलॉक के बाद बढ़ी मांग
सरकारी अधिकारियों के अनुसार, कोरोना वायरस महामारी के चलते काले मुर्गे (कड़कनाथ) की मांग इन दिनों काफी तेजी से बढ़ रही है। हालांकि इस मुर्गे की मांग कोविड-19 के चलते लगाए गए लॉकडाउन में कम हो गई थी लेकिन जब से अनलॉक लागू हुआ है, उसके बाद से मुर्गे की मांग में बढ़ोतरी दर्ज हो रही है। मध्य प्रदेश सरकार ने एक आधिकारिक बयान में कहा है कि बढ़ती मांग को देखते हुए राज्य सरकार ने पोल्ट्री फार्म मालिकों की आय में वृद्धि सुनिश्चित करने के लिए उत्पादन और बिक्री को बढ़ाने के लिए एक योजना बनाई है।
क्या हैं इस काले मुर्गे की खासियतें?
इस मुर्गे की त्वचा, खून और मीट का रंग काला होता है। इसमें इम्युनिटी बढ़ाने वाली विशेषताएं पाई जाती हैं। इसके साथ ही इस मुर्गे के मीट में वसा कम होती है, प्रोटीन अधिक होता है और यह हृद्य, सांस से संबंधित और एनीमिया जैसी बीमारी से पीड़ित लोगों के लिए फायदेमंद माना जाता है। पशुपालन अपर मुख्य सचिव जेएस कंसोटिया ने बताया, इस मुर्गे की सहकारी खेती को बढ़ावा देने के लिए झाबुआ, अलीराजपुर, बड़वानी और धार जिलों में पंजीकृत पोल्ट्री फार्मों से कुल 300 सदस्य हैं। वहीं झाबुआ के कृषि विज्ञान केंद्र के प्रमुख आईएस तोमर ने कहा, कड़कनाथ मुर्गे को खरीदने के लिए देशभर के पोल्ट्री मालिक आ रहे हैं।
अलग से नहीं हुआ कोई वैज्ञानिक अध्ययन
तोमर ने बताया, कृषि विज्ञान केंद्र ने कड़कनाथ चिकन को लेकर अलग से कोई वैज्ञानिक अध्ययन नहीं किया है। लेकिन यह बात कही जाती है कि इस किस्म के चिकन में प्रोटीन की मात्रा अधिक होती है और वसा की मात्रा अन्य की तुलना में कम होती है। इस मुर्गे के उत्पादन से जुड़े झाबुआ जिले में स्थित सहकारी संगठन के प्रमुख विनोद मेदा ने बताया कि महामारी के समय इस मुर्गे की मांग में वृद्धि हुई है।
कितने में बिक रहा एक मुर्गा?
बीते साल ही झाबुआ जिले के कड़कनाथ मुर्गे को ज्योग्राफिकल इंडिकेशन (जीआई) टैग मिला था। कड़कनाथ को मुख्य रूप से झाबुआ में पाला जाता है। इसे वहां स्थानीय भाषा में 'कलमासी' कहा जाता है। यह 'मीट प्रोडक्ट, पोल्ट्री और पोल्ट्री मीट' की श्रेणी में पंजीकृत है। मुर्गे की इस नस्ल के अंडे और चिकन सामान्य नस्लों के मुकाबले दस गुना अधिक होते हैं। मुर्गे की कीमत की बात करें तो एक मुर्गा 800-850 रुपये में बिक रहा है।
देश
में
एक
दिन
के
भीतर
मिले
कोरोना
के
41810
नए
केस,
कुल
मामलों
की
संख्या
94
लाख
के
करीब
पहुंची