'कमला हैरिस बन सकती हैं उपराष्ट्रपति तो सोनिया गांधी पीएम क्यों नहीं', केंद्रीय मंत्री रामदास अठावले ने कहा
'कमला हैरिस बन सकती हैं उपराष्ट्रपति तो सोनिया गांधी पीएम क्यों नहीं', केंद्रीय मंत्री रामदास अठावले ने कहा
इंदौर, 26 सितंबर: केंद्रीय मंत्री और आरपीआई नेता रामदास अठावले ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के विदेशी मूल के मुद्दे को बेमानी करार दिया। आठवले ने इंदौर में बोलते हुए कहा, 'यूपी के सत्ता में आने पर सोनिया गांधी को पीएम (प्रधानमंत्री) बनना चाहिए था। कहा कि अगर भारतीय मूल की कमला हैरिस अमेरिकी उपराष्ट्रपि बन सकती हैं तो सोनिया गांधी पीएम क्यों नहीं बन सकती। जो एक भारतीय नागरिक हैं, पूर्व पीएम राजीव गांधी की पत्नी और लोकसभा सदस्त हैं।'
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केंद्रीय मंत्री और आरपीआई नेता रामदास अठावले ने यह बात ऐसे वक्त कही है, जब पीएम नरेंद्र मोदी अमेरिका की यात्रा पर हैं और उन्होंने वहां हैरिस के साथ बैठक भी की है। अठावले ने इंदौर में मीडिया कर्मियों को दिए अपने बयान में कहा,
जब 2004 के लोकसभा चुनावों में संप्रग को बहुमत मिला था, तब मैंने प्रस्ताव रखा था कि सोनिया गांधी को भारत का प्रधानमंत्री बनना चाहिए। तब मेरा मत था कि उनके विदेशी मूल के मुद्दे का कोई अर्थ नहीं है। अगर उन्हें यह पद स्वीकार नहीं करना था, तो कांग्रेस को मजबूत करने के लिए पार्टी के तत्कालीन वरिष्ठ नेता शरद पवार को प्रधानमंत्री बनाया जाना चाहिए था। अगर पवार 2004 में देश के प्रधानमंत्री बनते, तो कांग्रेस की ऐसी कथित दुर्गति नहीं होती, जैसी आज हो रही है।
1999
में
पवार
ने
उठाया
था
सोनिया
के
विदेशी
मूल
का
मुद्दा
साल
1999
में
शरद
पवार
ने
सोनिया
गांधी
के
विदेशी
मूल
का
मुद्दा
उठाया
था।
जिसके
बाद
शरद
पवार
को
कांग्रेस
पार्टी
से
निष्कासित
कर
दिया
गया
था।
पवार
ने
बाद
में
राकांपा
का
गठन
किया
था।
वहीं
डॉ.
मनमोहन
सिंह
ने
2004
से
लेकर
2014
तक
देश
का
पीएम
पद
संभाला
था।
2014
में
भाजपा
के
पूर्ण
बहुमत
हासिल
करने
पर
नरेंद्र
मोदी
ने
पीएम
पद
की
बागडोर
संभाली।
जातिगत
जनगणना
के
पक्ष
में
है
मेरी
पार्टी:
आठवले
केंद्रीय
मंत्री
रामदास
अठावले
ने
शनिवार
25
सितंबर
को
इंदौर
में
कहा
कि
रिपब्लिकन
पार्टी
ऑफ
इंडिया
(ए)
जातिगत
जनगणना
के
पक्ष
में
है
और
पार्टी
का
मत
है
कि
सरकार
को
जाति
के
आधार
पर
नागरिकों
की
गिनती
पर
विचार
करना
चाहिए।
यह
बयान
उस
वक्त
आया
है,
जब
सरकार
ने
हाल
ही
में
सुप्रीम
कोर्ट
से
कहा
है
कि
पिछड़े
वर्गों
की
जाति
आधारित
जनगणना
'प्रशासनिक
रूप
से
कठिन
औऱ
दुष्कर'
है
और
जनगणना
के
दायरे
से
इस
तरह
की
सूचना
को
अलग
करना
'सतर्क
नीतिगत
निर्णय'
है।