Sagar: केदारनाथ की वादियों में होने वाला दुर्लभ ब्रह्मकमल, सागर में गमलों में खिल रहा
सागर, 14 अगस्त। मप्र के सागर जिले में देवताओं का प्रिय पुष्प कहलाने वाला ब्रह्मकमल खिल रहा है। सामान्यतः एक पौधे में एक बार में दो से चार तक फूल खिलते हैं, लेकिन बीती रात एक परिवार के यहां आश्चर्यजनक रुप से गमले में लगे पौधे में एक साथ 8 ब्रह्मकमल खिले हैं। यह पुष्प काफी दुर्लभ माना जाता है। प्राकृतिक रुप से यह पौधा उत्तराखंड में केदारनाथ की बर्फीली वादियों में पाया जाता है।
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सागर के बालाजी रेसिडेंसी में रहने वाले डाॅ. अजय विश्वकर्मा बीते छह साल पहले ब्रह्मकमल का पौधा लाए थे। उन्होंने इसके बडे़ से गमले में लगाकर इसकी देखरेख शुरू कर दी थी। एक साल बाद ही इस पौधे में ब्रह्मकमल के दुर्लभ पुष्प आना प्रारंभ हो गए थे। बीती रात गमले में एक साथ 8 ब्रह्मकमल के पुष्प खिले थे। दो पुष्प आज खिलेंगे। डाॅ. अजय विश्वकर्मा के अनुसार यह पौधा चूंकी ठंडे प्रदेशों में पाया जाता है और काफी कम जगह ही पाया जाता है। इसको काफी देखरेख की आवश्यकता होती है। हल्की धूप और हल्की बारिश में इसको रखते हैं। गर्मी में इसे कमरे में अंदररखकर पंखे और एसी की हवा तक देते हैं ताकि तेज तापमान में यह झुलसे नहीं।
ब्रह्मकमल
के
एक
से
दो
पौधे
बना
लिए
हैं
डाॅ.
अजय
विश्वकर्मा
ने
ब्रह्मकमल
के
एक
से
दो
पौधे
बना
लिए
हैं।
दूसरा
पौधा
करीब
एक
साल
को
हो
गया
है।
इसमें
आगामी
दिनों
ब्रह्मकमल
के
पुष्प
खिलने
वाले
हैं।
डाॅ.
अजय
और
उनकी
पत्नी
इन
पौधों
की
बच्चों
की
तरह
देखभाल
करती
रही
हैं।
इनको
समय
समय
पर
खाद-पानी
दिया
जाता
है।
आम
पौधों
और
बुंदेलखंड
की
मूल
प्रजाति
के
पौधों
की
अपेक्षा
इनको
देखभाल
की
अधिक
आवश्यकता
होती
है।
भीनी
खुशबु
से
आसपास
का
वातावरण
महकता
है
ब्रह्मकमल
के
पुष्पों
से
भीनी
भीनी
खुशबु
उठती
है
जो
आसपस
के
पूरे
वातावरण
को
महकाती
है।
डाॅ.
अजय
के
यहां
भी
ब्रह्मकमल
की
मन
को
प्रफुल्लित
करने
वाली
खुशबु
से
उनका
घर
व
आसपास
का
इलाका
महकता
रहता
है।
सबसे
अहम
बात
यह
पुष्प
केवल
एक
रात
ही
खिलते
हैं,
सुबह
होते
ही
ये
बंद
होना
और
मुरझाना
प्रांरभ
हो
जाते
हैं।