Success Story: सब्जी बेचने के दौरान ठेले पर की पढ़ाई, जानें जज बनने वाले शिवाकांत की कहानी
भोपाल, 09 जुलाई। मध्य प्रदेश ज्यूडिशियल सर्विस परीक्षा को राज्य की कठिन परीक्षाओं में एक माना जाता है। यही वजह है कि इस परीक्षा को सब नहीं पास कर पाते हैं। वहीं, जो अभ्यर्थी इस परीक्षा में सफल होते हैं, वो अन्य के लिए मिशाल बन जाते हैं। ऐसे ही कुछ कहानी सतना के रहने वाले शिवाकांत कुशवाहा की है। आज वो एक एक जज हैं। हालांकि, यहां तक पहुंचने का उनका रास्ता कठिनाइयों भरा रहा है।
सब्जी
का
ठेला
लगाते
थे
शिवाकांत
शिवाकांत
मूलरूप
से
मध्य
प्रदेश
के
सतना
जिले
के
अमरपाटन
कस्बे
के
रहने
वाले
हैं।
उनके
परिवार
की
आर्थिक
स्थिति
ठीक
नहीं
थी।
यही
वजह
थी
कि
वो
खुद
सब्जी
का
ठेला
अमरपाटन
कस्बे
में
लगाते
थे।
सब्जी
बेचने
के
बाद
जो
समय
उन्हें
मिलता
था,
उसी
दौरान
वो
पढ़ाई
करते
थे।
हालांकि,
कभी-कभी
किसी
चैप्टर
को
पूरा
करने
के
लिए
वो
दुकान
पर
भी
पढ़ाई
कर
लेते
थे।
लोग
उड़ाते
थे
मजाक
शिवाकांत
जब
सब्जी
की
दुकान
लगाते
थे,
तो
कभी-कभी
बातचीत
के
दौरान
लोगों
से
कह
देते
थे
कि
एक
दिन
जज
बनूंगा।
हालांकि
उनकी
इस
बात
पर
लोग
मजाक
उड़ाते
थे।
क्योंकि
लोग
सोचते
थे
कि
आखिर
सब्जी
बेचने
वाला
जज
कैसे
बनेगा?
लेकिन
शिवाकांत
ने
अपनी
मेहनत
और
जज्बे
के
बल
पर
दिखा
दिया
कि
अगर
इंसान
के
अंदर
कुछ
कर
गुजरने
का
जज्बा
है
तो
वह
एक
दिन
सफल
जरूर
होगा,
परिस्थितियां
चाहे
जो
हों।
शिवाकांत
ने
2019
सिविल
जज
की
परीक्षा
उत्तीर्ण
कर
परिवार
का
नाम
रोशन
कर
दिया।
उन्हें
ओबीसी
में
दूसरा
स्थान
मिला
था।
10वीं
बार
में
नसीब
हुई
सफलता
शिवाकांत
को
यह
सफलता
10वीं
बार
में
नसीब
हुई।
9
बार
में
जब
उनका
चयन
नहीं
हुआ
तो
एक
पल
के
लिए
टूट
गए
थे।
लेकिन
उन्होंने
10वीं
बार
और
मजबूती
के
साथ
तैयारी
की
और
उन्हें
सफलता
मिल
गई।
शिवाकांत
के
मुताबिक
सफलता
का
एक
ही
मूल
मंत्र
है-
मेहनत,
मेहनत
और
मेहनत।
अगर
आप
मेहनत
करते
हैं,
तो
सफलता
पाने
से
आपको
कोई
रोक
नहीं
सकता
है।
जज
के
सलाह
पर
की
थी
LLB
सब्जी
बेचते
हुए
भी
शिवाकांत
कुशवाहा
ने
पढ़ाई
नहीं
छोड़ी
थी।
इस
दौरान
2007
में
उनके
दुकान
पर
एक
जज
साहब
आए।
उन्होंने
शिवाकांत
को
सलाह
दी
कि
अगर
किस्मत
बदलनी
है
तो
एलएलबी
कर
लो
और
इसके
बाद
मेहनत
करके
जज
बन
जाना।
यहीं
से
शिवाकांत
ने
ठान
ली
कि
एक
दिन
उन्हें
जज
जरूर
बनना
है।
पत्नी
ने
भी
की
शिवाकांत
की
हौसला
अफजाई
शिवाकांत
की
सफलता
में
उनकी
पत्नी
का
बड़ा
योगदान
है।
क्योंकि
उनकी
पत्नी
मधु
कुशवाहा
ने
प्राइवेट
स्कूल
में
पढ़ाकर
उनका
सहयोग
दिया।
शिवाकांत
को
पत्नी
हमेशा
पढ़ाई
के
लिए
प्रोत्साहित
करती
थी।
साथ
ही
शिवाकांत
के
लेख
को
भी
चेक
करती
थीं,
इस
दौरान
मधु
को
जो
भी
गलतियां
मिलती
थी,
वो
गोला
बना
देती
थीं।
इससे
शिवाकांत
की
हिंदी
भी
सुधर
गई।
ये भी पढ़ें- MP के इस शहर में शुरू होने जा रही हेरिटेज ट्रेन, जानिए क्या है खासियत