यहां हिन्दू-मुस्लिम पहले करते हैं राम मंदिर में आरती, फिर मिलकर दरगाह पर चढ़ाते हैं चादर
मनीष सोनी/ Rajgarh News, राजगढ़। अयोध्या में राम मंदिर बनाने और बाबरी मस्जिद ढांचे गिराए जाने के मुद्दे पर देश में वर्षों से राजनीति हो रही है। हर कोई पार्टी इस मामले पर सियासत करने में पीछे नहीं है। ऐसे में कौमी एकता की मिसाल देखनी हो तो मध्यप्रदेश के राजगढ़ चले आईए। यहां आपको राम मंदिर में हिंदू-मुस्लिम (Hindu Muslim Rajgarh MP) एक साथ आरती करते दिखेंगे, वहीं दरगाह पर चादर चढ़ाते भी नजर आएंगे। यहां पर साम्प्रदायिक सौहार्द की मिसाल पिछले 39 साल पेश की जा रही है।
राजगढ़ में है बाबा बदख्शानी की ऐतिहासिक दरगाह
दरअसल, राजगढ़ बस स्टैंड के समीप बाबा बदख्शानी की ऐतिहासिक दरगाह है। दरगाह का 105वां सालान उर्स 10 मार्च से शुरू हुआ है, जो 15 मार्च तक चलेगा। उर्स में देशभर से बड़ी संख्या में जायरीन शिकरत करने पहुंचे हैं। उर्स के दौरान राजगढ़ नगर के कलमकार परिषद की ओर से एक अनूठी परम्परा भी निभाई जाती है। जिसमें सभी सम्प्रदाय के लोग शामिल हुए और राजगढ़ के पारायण चौक स्थित राम जानकी मंदिर परिसर में पहले तो उर्स में आए कव्वालों ने कव्वाली व भजन प्रस्तुत किए।
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मंदिर से मजार चादर समारोह
इसके बाद हिंदू व मुस्लिम समाज के लोगों ने मिलकर भगवान राम आरती की। आरती के बाद राम जानकी मंदिर से बाबा बदख्सानी दरगाह की मजार तक पैदल गए और फिर सामूहिक रूप से मंदिर से मजार चारद समारोह का आयोजन करके चादर बाबा की दरगाह पर चढ़ाई। हिंदू-मुस्लिम की इस तरह की कौमी एकता का मिसाल देते इन लोगों का उत्साह देखते बना।
हमारा मकसद सिर्फ सर्वधर्म सदभाव
दिनेश कुमार नागर ने बताया कि यह अनूठी परम्परा करीब चालीस साल से जारी है। अखिल भारतीय कलमकार परिषद की स्थापना रामसिंहजी ने की थी। उनके निधन के बाद हम सब मिलकर उनकी परम्परा को आगे बढ़ा रहे हैं। जिला प्रशासन के सहयोग से राम जानकी मंदिर में कव्वाली कार्यक्रम करके दरगाह पर चादर पेश करते हैं। हमारा मकसद सिर्फ सर्वधर्म सदभाव बनाए रखना है।
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नवरात्र में मजार से आता है झंडा
साहिद
ने
बताया
कि
39
साल
पहले
हमारे
पिताजी
व
साहिदा
वकील
साहब,
जमील
साहब
आदि
ने
मिलकर
कौमी
एकता
का
संदेश
देने
के
लिए
यह
परम्परा
शुरू
की
थी।
उर्स
में
चादर
पेश
की
जाती
है।
वहीं
नवरात्र
में
मजार
से
झंडा
मंदिर
के
लिए
आता
है।
उसमें
भी
सभी
धर्मों
के
लोग
मिलकर
यह
परम्परा
निभा
रहे
हैं।
यह
अनूठी
परम्परा
एकता
का
संदेश
देती
है,
जो
आगे
भी
जारी
रहेगी।
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