जानिए क्यों ससुराल छोड़ मायके चली जाती हैं इस गांव की बहुएं, अन्य युवकों की भी नहीं हो रही शादी
उज्जैन। मध्य प्रदेश के उज्जैन जिला मुख्यालय से 18 किलोमीटर दूर गंभीर डेम के पास एक गांव है कंथारखेड़ी। यहां के कई परिवार खासे परेशान हैं। वजह ये है कि यहां चार माह में बहुएं ससुराल छोड़कर मायके चली जाती हैं। यह कोई परम्परा या रीति रिवाज नहीं बल्कि मजबूरी है।
Recommended Video
मानसून आने के साथ बढ़ती है समस्या
दरअसल, गांव से एक रास्ता गुजरता है, जो आस-पास के चार गांवों को जोड़ता है। गांव के एक हिस्से में करीब 60 से 70 घर हैं। उन घरों के सामने रास्ते हमेशा कीचड़ से हमेशा लबालब रहता है। साल के अन्य माह तो लोग कीचड़ से होते हुए जैसे-जैसे आवागमन कर लेते हैं, मगर चार माह मानूसन आने पर आवागमन भी मुश्किल हो जाता है।
मायके में बिताती हैं चार माह
उज्जैन के गांव कंथारखेड़ी की इस समस्या से परेशान होकर इन 60-70 घरों में एक अनूठा रिवाज चल पड़ा है। यहां की बहुएं बरसात के चार माह में ससुराल छोड़कर अपने मायके चली जाती हैं। उन्हें कीचड़ वाले रास्ते के घरों में रहना पसंद नहीं। चार माह बाद स्थिति ठीक होती है। तब बहुएं मायके से लौटती हैं। दूसरी समस्या यह है कि घरों तक पहुंचने के लिए रास्ता ठीक नहीं होने के कारण इन परिवारों के युवकों की शादी में दिक्कतें आ रही हैं।
हमारी बहू को गए दो माह हो गए
गांव कंथारखेड़ी की लीला बाई बताती हैं कि रास्ते के कीचड़ ने जीना मुहाल कर रखा है। तंग आकर बहू भी ससुराल से मायके चली जाती हैं। हमारी खुद की बहू को गए दो माह हो गए। यह सिर्फ मेरे परिवार नहीं बल्कि घर-घर की यही कहानी है। कीचड़ की वजह से घरों से बाहर निकलना भी मुश्किल हो रहा है।
जिम्मेदार नहीं कर रहे सुनवाई
ग्रामीण राधेश्याम बताते हैं कि कीचड़ की वजह से न केवल पैदल बल्कि वाहन पर सवार होकर भी रास्ता पार करने में परेशानी होती है। दुपहिया वाहन तो फिसलकर गिर ही जाते हैं। सरपंच से लेकर मंत्री तक कई बार शिकायत कर चुके हैं, मगर कोई सुनवाई नहीं हो रही।
गांव में नहीं कोई समस्या-विधायक
वहीं, इस मामले में बड़नगर विधायक मुरली मोरवाल का तर्क अजीब ही है। विधायक की मानें तो गांव कंथारखेड़ी में कीचड़ जैसी कोई समस्या ही नहीं है। फिर भी गांव में सड़का का निर्माण जाएगा।
राजस्थान के लोग कुएं से निकालने गए बकरा, निकला मध्य प्रदेश का 17 साल का जिंदा लड़का, जानिए माजरा