अखिलेश के फॉर्मूले से मध्यप्रदेश में कमल मुरझाने की जुगत में कमलनाथ
नई दिल्ली। मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव करीब हैं। लगातार तीन बार शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में जीत का परचम लहराने वाली बीजेपी को चुनौती देने के लिए कांग्रेस ने कमलनाथ को प्रदेश अध्यक्ष बनाया है। शिवराज के गढ़ में कमलनाथ के लिए चुनौतियां कम नहीं हैं, लेकिन उनकी तैयारी देखकर ऐसा लग रहा है कि इस बार वह बीजेपी के सामने कठिन चुनौती पेश करने वाले हैं। इसी क्रम में उन्होंने अपनी पहली चाल चल भी दी है। कमलनाथ मध्य प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी के साथ गठबंधन की तैयारी कर रहे हैं। हालांकि, यह बात सच है कि बसपा का मध्य प्रदेश में कोई ज्यादा बेस नहीं है, लेकिन कांग्रेस के साथ मिलकर बीजेपी को मायावती बड़ा नुकसान पहुंचा सकती हैं। 'द प्रिंट' के साथ बातचीत में खुद कमलाथ ने इस बात को स्वीकार किया कि कांग्रेस मध्य प्रदेश में बसपा के साथ प्री-पोल अलांयस करना चाहती है। कमलनाथ ने कहा, 'हम राज्य में बीजेपी को हराने के लिए बसपा समेत समान विचारधारा वाले दलों से बात करेंगे।'
बसपा के साथ हुआ कांग्रेस का गठबंधन तो खड़ी होगी बीजेपी के लिए मुश्किल
देखा जाए तो बसपा मध्य प्रदेश में कोई बहुत बड़ी ताकत नहीं है। वह अपने दम बीजेपी को नुकसान नहीं पहुंचा सकती है, लेकिन मयावती की पार्टी ने मध्य प्रदेश में पिछले कई चुनावों के दौरान कांग्रेस को बड़ा नुकसान पहुंचाया है। मध्य प्रदेश में 2003 विधानसभा चुनाव से शुरुआत करते हैं, जो कि कांग्रेस ने दिग्विजय सिंह के नेतृत्व में लड़ था। इस चुनाव में कांग्रेस 230 सीटों वाली विधानसभा चुनाव में केवल 38 सीटें जीत सकी थी। 2003 के इसी विधानसभा चुनाव में बसपा मात्र 2 सीटें जीत पाई थी। लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि 2003 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस 25 सीटें सिर्फ बसपा की वजह से हार गई थी। कुछ ऐसा ही बसपा के साथ भी हुआ था। इसी चुनाव में बसपा 14 सीटों पर सिर्फ इसलिए हार गई थी, क्योंकि कांग्रेस के साथ वोट बंट गए थे। अगर इन दोनों पार्टियों के नुकसान को जोड़ा जाए तो 25+14=39, ये वो सीटें हैं, जो दोनों दल अलग-अलग लड़ने की वजह से हार गए थे। बसपा मध्य प्रदेश में कोई बहुत बड़ी ताकत भले न हो, लेकिन हर चुनाव में वह 5 से 7 प्रतिशत वोट जरूर पाती है। अगर 2003 में बसपा और कांग्रेस ने साथ में चुनाव में लड़ा होता तो कम से कम 79 सीटें तो इन्हें मिल ही जातीं।
2008 में भी कांग्रेस को बसपा ने पहुंचाया बड़ा नुकसान
मध्य प्रदेश के 2008 विधानसभा चुनाव के आंकड़ों पर गौर किया जाए कांग्रेस पिछले चुनाव से बेहतर स्थिति में नजर आती है। 2003 में 38 सीटें जीतने वाली कांग्रेस 2008 में 71 सीटों पर विजयी रही थी। वहीं, 2003 में 173 सीटें जीतने वाली बीजेपी 143 सीटों पर जीत के साथ सत्ता में लौटी थी। इस चुनाव में बसपा ने कांग्रेस को करीब 39 पर झटका दिया था, जबकि खुद बसपा को करीब 14 सीटें पर कांग्रेस की वजह से मात खानी पड़ी। अगर 71+39+14 को जोड़ दिया जाए तो आंकड़ा 131 पहुंच जाता है। मतलब बीजेपी की 143 सीटों के बेहद करीब।
मध्य प्रदेश के इन इलाकों में ताकतवर रही है बसपा
मध्य प्रदेश के कुछ इलाकों में बसपा लंबे समय से ताकतवर रही है। चंबल और उत्तर प्रदेश की सीमा से सटे अन्य इलाकों में बसपा काफी मजबूत रही है। बसपा की मध्य प्रदेश में मजबूत स्थिति के पीछे सबसे अहम कारण है- एमपी में 15 प्रतिशत दलितों की मौजूदगी। कुला मिलाकर देखें तो राज्य के करीब 22 जिलों में बसपा का खास प्रभाव है। यही कारण है कि बसपा के साथ गठजोड़ को लेकर कांग्रेस में फार्मूले पर भी चर्चा हो रही है। इस वक्त कमलनाथ के नेतृत्व में बसपा के लिए जो ऑफर तैयार किया जा रहा है, उसमें 15 सीटें देने की बात है। कांग्रेस लीडरशिप चाहती है कि बसपा को वो चार सीटें दे दी जाएं, जिन पर 2013 में उसने जीत दर्ज की थी और उन 11 सीटों को भी दे दिया जाए, जिन पर वह दूसरे स्थान पर रही थी। हालांकि, सीटों का यह नंबर फाइनल नहीं है। इसमें थोड़ा बहुत जोड़-घटाव संभव है, लेकिन फार्मूला जो भी होगा, वह इसी आंकड़े के आसपास रहेगा।
पैवेलियन में बैठकर भी विपक्षी बल्लेबाज को आउट कर सकती हैं मायावती
कमलनाथ की रणनीति यह है कि अगर बसपा को कुछ सीटें देने से उसके खाते में 40 के आसपास सीटें आ रही हैं, तो उसमें नुकसान ही क्या है। वैसे भी गोरखपुर और फूलपुर में देश का हर चुनाव विश्लेषक देख चुका है कि मायावती पैवेलियन में बैठकर भी विपक्षी पार्टी के बल्लेबाज को आउट करा सकती हैं। ऐसे में कोई शक नहीं है कि अगर बसपा और कांग्रेस मध्य प्रदेश में साथ आते हैं तो बीजेपी के लिए रास्ता बेहद कठिन हो जाएगा।