मुस्लिम परिवार 40 साल से कर रहा था हिन्दू महिला की देखभाल, 90 की उम्र में यूं मिला बिछड़ा परिवार
दमोह। यह इंसानियत की सबसे बड़ी मिसाल है। 50 वर्ष की उम्र में अपनों से जुदा हुई बेबस हिन्दू महिला को मुस्लिम परिवार ने शरण दी। फिर यह इन्हीं की होकर रह गई। जिंदगी के 40 साल यही गुजारे। पूरा गांव इन्हें मौसी कहता है। कोई नहीं जानता कि ये कहां की हैं, मगर गूगल की छोटी सी मदद और सोशल मीडिया मुहिम ने पूरी कहानी में नया मोड़ ला दिया। 90 साल की उम्र में महिला से अपनों से मिला दिया।
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विदाई पर रो पड़ा पूरा गांव
हिन्दू-मुस्लिम के रिश्तों में मिठास घोलती रियल लाइफ की यह स्टोरी मध्य प्रदेश के दमोह की है। अपनों से लम्बी जुदाई के बाद फिल्मों की तरह इसकी भी हैप्पी एडिंग हुई है। इस बुजुर्ग महिला की आंखें तो उस वक्त भर आई जब उसे अपने घर के लिए विदा करने गांव उमड़ा। हर कोई रो पड़ा।
1980 में मिली थी महिला
हिन्दू बुजुर्ग और मुस्लिम परिवार द्वारा उसकी देखभाल करने वाली इस कहानी की शुरुआत वर्ष 1980 से होती है। मध्य प्रदेश के दमोह जिले के गांव कोटातला निवासी नूर खान को सड़क किनारे एक महिला विक्षिप्त अवस्था में बैठी नजर आई। इंसानियत के नाते नूर मोहम्मद महिला को अपने घर ले आए।
नूर खान की मौत के बाद बेटे ने की देखभाल
वह कुछ बताने की स्थिति में नहीं थी। कहां की हैं। यहां कैसे पहुंची। नूर खान के परिवार ने महिला को न केवल शरण दी बल्कि उसकी देखभाल भी शुरू की। धीरे-धीरे वक्त बीता और महिला का नूर खान के परिवार के रिश्ता अपनों से भी बढ़कर हो गया। कुछ समय बाद नूर खान इस दुनिया से रुखसत हो गए, लेकिन महिला की जिम्मेदारी उठाने में नूर खान के परिवार ने कोई कमी नहीं आने दी।
पूरा गांव अच्चन मौसी कहकर पुकारता
अब तक तो महिला को पूरे गांव कोटातला ने अपना लिया था। गांव में सब इन्हें अच्चन मौसी कहकर पुकारते थे। नूर खान और आस-पास के परिवार ना जाने कितने ही बच्चे अच्चन मौसी की गोद में खेलकर बड़े हुए। एक रोज नूर के बेटे इसरार से अच्चन मौसी ने बातों-बातों में किसी खानम नगर की चर्चा की। इसरार ने गूगल मैप पर खानम नगर खोजा तो वो महाराष्ट्र के अमरावती की जगह मिला, जो दमोह से करीब 485 किलोमीटर था।
सोशल मीडिया में वायरल हुई तस्वीर
समस्या यह थी कि अच्चन मौसी के खानम नगर के अलावा कुछ याद नहीं था। ऐसे में उसे अपनों से मिलाना किसी चुनौती से कम नहीं था। ऐसे में इसरार ने मौसी की तस्वीर खींचकर सोशल मीडिया पर अपलोड कर दी। साथ ही पूरी घटना का जिक्र करने के साथ ही सम्पर्क नंबर भी दिए।। तस्वीर वायरल होते होते खानम नगर पहुंची तो अच्चन के पोते पृथ्वी कुमार शिंदे ने पहचान लिया।
अच्चन मौसी का वास्तविक नाम पंचूबाई
40 साल बाद दादी का पता लगते ही पृथ्वी कुमार शिंदे अपनी पत्नी के साथ दमोह के गांव कोटातला उन्हें लेने के लिए पहुंच गए। शिंदे ने बताया कि अच्चन मौसी का रियल नाम पंचूबाई है। अच्चन मौसी के घरवाले मिल जाने की सूचना पूरे गांव में आग की तरह फैल गई। हर कोई उन्हें विदाई देने पहुंचा।
ताउम्र नहीं भूल पाएंगे अच्चन मौसी को-इसरार खान
मौसी की विदाई पर गांव कोटातला की महिलाओं ने उन्हें नयी साडी पहनाई और उनके हाथों को चूमकर आशीर्वाद लिया। महिलाएं तो इस विदाई पर बिलखती नजर आईं। वहीं, इसरार खान का कहना था वो अच्चन मौसी को ताउम्र नहीं भूल पाएंगे।
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