भोपाल की सीटों को प्रभावित करेंगे जातीय समीकरण, बीजेपी-कांग्रेस को परेशान करेंगी ये पार्टियां
भोपाल। साल 2013 के मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में भोपाल संभाग की 24 सीटों में से 18 सीटें जीतकर भाजपा ने इस इलाके को अपना गढ़ साबित किया था। भाजपा के लिए इस बार अगड़ा-पिछड़ा की सियासत में उलझे इस गढ़ को बचाना एक बड़ी चुनौती होगी। इस संभाग में मुख्यमंत्री और छह मंत्रियों की प्रतिष्ठा भी दांव पर लगी है। प्रदेश की सियासत में धूमकेतू की तरह उभरी सपाक्स (सामान्य, पिछड़ा वर्ग एवं अल्पसंख्यक कर्मचारी संगठन) और अजाक्स (आदिम जाति एवं जनजाति कर्मचारी अधिकारी संघ) यहां जातीय समीकरणों को बिगाड़ती नजर आ रही है। इससे कई विधानसभा क्षेत्रों के समीकरण बदलेंगे।
आसान सीट से चुनाव लड़ने की होड़
मौजूदा विधायक रामेश्वर शर्मा के अलावा कई अन्य भाजपा नेता भी आसान मानी जा रही हुजूर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ना चाहते हैं। वहीं रामेश्वर शर्मा भी इस क्षेत्र में कमजोर नजर आ रहे हैं। मध्य विधानसभा से पूर्व विधायक ध्रुव नारायण सिंह ने दावेदारी जता दी है। सोशल मीडिया पर इशारों-इशारों में कई बार वे इस बात को जाहिर भी कर चुके हैं। चाहे भाजपा हो या कांग्रेस हर के प्रत्याशी इस विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने को लेकर अपनी-अपनी दावेदारी पेश कर रहे हैं।
सपाक्स का बढ़ता प्रभाव
संभाग के पांचों जिलों में सपाक्स के बंद को जो समर्थन मिला उसने भाजपा और कांग्रेस दोनों के ऊपर प्रभाव डाले हैं। अभी तक जाति सियासत से खास वास्ता न रखने वाले इस संभाग में अगड़े-पिछड़े के नाम पर वोटों के ध्रुवीकरण को लेकर जहां भाजपा परेशान है तो वहीं इस मुद्दे पर कांग्रेस की चुप्पी भी कहीं न कहीं उसके असमंजस की ओर इशारा कर रही है। कर्मचारियों के शहर भोपाल में सपाक्स और अजाक्स की गतिविधियां सबसे ज्यादा तेज हैं। हालांकि चुनाव तक इस नई सियासत का ऊंट किस करवट बैठता है ये देखने वाली बात होगी। भोपाल जिले में 7 विधानसभा सीटें हैं। फिलहाल इनमें से 6 पर भाजपा और एक पर कांग्रेस का कब्जा है।
गोविंदपुरा से किसे मिलेगी टिकट इस पर फैसला बाकी
भाजपा के पुराने गढ़ गोविंदपुरा से इस बार किसे टिकट मिलेगी, इस पर संशय है। यहां से दस बार विधायक चुने जा चुके बाबूलाल गौर अभी भी चुनाव लड़ने का दावा कर रहे हैं, तो उनके उत्तराधिकारी भी समय-समय पर अपना दावा ठोंकते रहे हैं। इस सीट पर भाजपा की टिकट तय होने के बाद ही कांग्रेस अपने पत्ते खोलेगी।
भाजपा-कांग्रेस के लिए इस सीट को जीत पाना मुश्किल
नरेला से विश्वास सारंग और दक्षिण-पश्चिम से उमाशंकर गुप्ता राज्य सरकार में मंत्री हैं और फिलहाल दोनों ही चुनाव लड़ने के लिए विभिन्न त्योहारों के माध्यम से क्षेत्र में सक्रिय हैं। वहीं कांग्रेस के खाते में आई एकमात्र सीट उत्तर से आरीफ अकील कांग्रेस से अकेले दावेदार माने जा रहे हैं। भाजपा का कोई बड़ा नेता इस सीट से चुनाव लड़ने की इच्छा नहीं रखता। हालांकि दक्षिण-पश्चिम विधानसभा सीट भाजपा के लिए जीत पाना मुश्किल सा लग रहा है। इस विधानसभा क्षेत्र में कर्मचारियों की संख्या अधिक है। अधिकतर कर्मचारी सपाक्स से जुड़े हैं। ऐसे में सपाक्स का प्रभाव इस सीट पर रहेगा।
कांग्रेस अभी भी विरोध प्रदर्शन तक ही सीमित
बैरसिया विधानसभा सीट से दोनों ही दलों में दो से तीन दावेदार हैं, जो लगातार क्षेत्र में सक्रिय हैं। भाजपा नेता पिछले कुछ दिनों से कार्यकर्ता महाकुंभ की तैयारियों में जुट गए हैं, तो कांग्रेस में अभी भी कार्यकर्ता विरोध-प्रदर्शन तक सीमित हैं। एक-दो सीट पर कुछ दावेदार क्षेत्र में सक्रिय होकर सरकार की नाकामी गिना रहे हैं। किसान बाहुल्य जिले विदिशा, रायसेन, राजगढ़ और सीहोर में भावांतर जैसे मुद्दे चुनाव में गूंजेंगे तो वहीं पेट्रोल-डीजल के दाम भी अपना असर दिखा सकते हैं। ग्रामीण इलाकों में सड़क भी एक मुद्दा बन सकता है।
चुनाव में मंत्रियों की प्रतिष्ठा भी दांव पर
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सहित छह मंत्री गौरीशंकर शेजवार, रामपाल सिंह, सुरेंद्र पटवा, सूर्यप्रकाश मीणा, विश्वास सारंग, उमाशंकर गुप्ता भोपाल संभाग से ही आते हैं। लिहाजा इस इलाके में भाजपा का प्रदर्शन इन सभी की प्रतिष्ठा का सवाल बनेगा। इनमें से कुछ मंत्रियों के लिए अपनी सीट भी बचा पाना आसान नहीं होगा। सिलवानी से रामपाल सिंह को प्रीती आत्महत्या मामला परेशान कर सकता है तो शमशाबाद से सूर्यप्रकाश मीणा भी व्यक्तिगत आरोपों से घिरे हैं। पिछले दो चुनावों से भोपाल संभाग में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ही भाजपा के पोस्टरब्वॉय रहे हैं। जाहिर है इस बार भी भाजपा का प्रदर्शन उनकी मेहनत पर ही निर्भर करेगा।