2 दशक के साथ के बाद क्यों छोड़ गई रीता कांग्रेस को
आखिर क्यों रीता बहुगुणा ने छोड़ दी कांग्रेस, दो दशक के साथ में कैसा रहा उनका कांग्रेस के साथ राजनीतिक सफर
लखनऊ। उत्तर प्रदेश में चुनावी माहौल में एक तरफ जहां कांग्रेस अपनी रणनीति को हर संभव मजबूत करने की कोशिशों में जुटी है तो दूसरी तरफ जिस तरह से रीता बहुगुणा जोशी ने पार्टी का दामन छोड़ा है उसने कांग्रेस के लिए बड़ी मुश्किल खड़ी कर दी है।
पार्टी में हुई नजरअंदाज
रीता
बहुगुणा
जोशी
को
प्रदेश
में
कांग्रेस
का
बड़ा
नेता
माना
जाता
था,
वह
मौजूदा
समय
में
लखनऊ
में
कैंट
सीट
से
कांग्रेस
विधायक
भी
थी।
एक
समय
में
माना
जा
रहा
था
कि
रीता
को
कांग्रेस
का
आला
कमान
बड़ी
जिम्मेदारी
दे
सकता
है
लेकिन
जिस
तरह
से
उन्हें
पार्टी
ने
दरकिनार
किया
उससे
वह
बहुत
खफा
थी।
शीला दीक्षित को दी गई प्राथमिकता
यूपी
में
रीता
कांग्रेस
की
सबसे
बड़ी
महिला
चेहरा
थी,
दो
दशक
से
अधिक
समय
से
वह
कांग्रेस
से
जुड़ी
रही,
लेकिन
जिस
समय
वह
आस
लगा
रही
थी
की
पार्टी
उन्हें
बड़ी
जिम्मेदारी
देगी
उस
समय
शीला
दीक्षितो
सीएम
का
उम्मीदवार
घोषित
किया
गया
और
राज
बब्बर
को
प्रभारी
बना
दिया
गया।
राहुल गांधी से भी थी खफा
जिस वक्त राहुल गांधी प्रदेशभर में किसान विकास यात्रा निकाल रहे थे, उस वक्त रीता उनके इस कार्यक्रम से नदारद नज़र आई। यही नहीं जिस दिन राहुल गांधी लखनऊ अपने रोड शो के लिए पहुंचे उस दिन वीवीआईपी गेस्ट हाउस का नजारा काफी अलग था।
एक तरफ जहां राहुल गांधी तमाम बड़े नेताओं की उपस्थिति में मुस्लिम धर्मगुरु के साथ बैठक कर रहे थे, उस वक्त रीता बहुगुणा जोशी हॉल से बाहर सोफे पर बैठी थी। ऐसे में जिस तरह से उन्हें तमाम मौकों पर अनदेखा किया गया उससे रीता काफी आहत थी।
भाई हरीश रावत ने भी निभाई अहम भूमिका
रीता
बहुगुणा
जोशी
के
भाई
विजय
बहुगुणा
उत्तराखंड
के
मुख्यमंत्री
रह
चुके
हैं
और
उन्होंने
हरीश
रावत
की
सरकार
को
खतरे
में
डाला
था,
ऐसे
में
माना
जा
रहा
है
कि
रीता
को
कांग्रेस
से
दूर
करने
के
पीछे
विजय
बहुगुणा
ने
भी
अहम
भूमिका
निभाई
है।
इलाहाबाद में शुरु किया राजनीतिक सफर
रीता बहुगुणा उत्तर प्रदेश के बड़े सियासी घराने की नेता हैं, उनके पिता हेमवती नंदन बहुगुणा प्रदेश के मुख्यमंत्री थे। रीता बहुगुणा इलाहाबाद विश्वविद्यालय में इतिहास की प्रोफेसर रह चुकी हैं, यही नहीं वह इलाहाबाद की मेयर भी रह चुकी हैं।
विवादित बयान को लेकर जा चुकी हैं जेल
बसपा
सुप्रीमो
मायावती
के
खिलाफ
विवादित
टिप्पणी
के
चलते
उन्हें
जेल
तक
जाना
पड़ा
था।
अपने
राजनीतिक
कार्यकाल
में
वह
10
महीनों
तक
सपा
के
साथ
भी
रही
और
इसी
दौरान
सपा
ने
उन्हें
इलाहाबाद
का
मेयर
पद
का
उम्मीदवार
घोषित
किया
ता।
लेकिन
चुनाव
जीतने
के
बाद
उन्होंने
सपा
का
दामन
छोड़
दिया
था।
भाजपा का कमल कैसे खिलाएंगी
बहरहाल
अब
यह
देखना
दिलचस्प
होगा
कि
दो
दशक
से
अधिक
समय
तक
कांग्रेस
की
नीतियों
की
पैरोकार
रही
रीता
कित
तरह
से
भाजपा
के
लिए
प्रदेश
में
खेवनहार
साबित
होती
हैं।