हाथरस केस: हाईकोर्ट ने योगी सरकार से पूछा- अंतिम संस्कार मामले में डीएम के खिलाफ क्या हुई कार्रवाई?
हाथरस। उत्तर प्रदेश के चर्चित हाथरस केस की सुनवाई सोमवार को हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में हुई। जज पंकज मित्तल और जज राजन रॉय की खंडपीठ ने सुनवाई करते हुए हाथरस के डीएम के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होने पर सरकार से जवाब-तलब किया। खंडपीठ ने योगी सरकार से पूछा कि हाथरस के डीएम पर क्या कार्रवाई की गई? सरकार ने डीएम का बचाव करते हुए कहा कि उनसे कोई भी चूक नहीं हुई है। लखनऊ बेंच ने इस मामले में फैसला सुरक्षित रखा है और अगली सुनवाई के लिए 25 नवंबर की तारीख तय कर दी है। बेंच ने सीबीआई से अगली सुनवाई में जांच की स्टेटस रिपोर्ट पेश करने को कहा है। हाथरस के डीएम प्रवीण कुमार लक्षकार परिजनों की स्वीकृति के बिना पीड़िता का अंतिम संस्कार देर रात करने के मामले में विवादों में आए थे। उनका एक वीडियो भी वायरल हुआ था जिसमें डीएम पीड़िता के परिजनों को धमकाते देखे गए थे।
इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ में हाथरस केस पर सुनवाई हुई। पिछली सुनवाई में इस मामले में पीड़िता के जबरन अंतिम संस्कार किए जाने का संज्ञान जजों ने लिया था। इसके लिए जजों ने प्रशासन और सरकार को फटकार लगाई थी। सोमवार को हुई सुनवाई में बेंच ने डीएम के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होने पर चिंता जताई और सरकार से इस बारे में पूछा। सरकार के वकील ने बचाव करते हुए कहा कि डीएम ने कार्रवाई करने में कोई गलती नहीं की है। वकील ने कहा कि एसपी को सस्पेंड इसलिए किया गया क्योंकि अंतिम संस्कार कराने की कार्रवाई में लापरवाही बरतने का उन पर आरोप लगा।
लखनऊ बेंच में सुनवाई के दौरान तत्कालीन एसपी और डीएम ने कहा कि उस समय की परिस्थिति को देखते हुए अंतिम संस्कार कराया गया था और इसके लिए कैरोसिन का इस्तेमाल नहीं किया गया था। सुनवाई से पहले कोर्ट में प्रदेश सरकार, डीएम और तत्कालीन एसपी ने एफिडेविट पेश किया। प्रदेश सरकार के वकील ने कहा कि हाथरस की ही परिस्थिति कहीं और हो तो वहां पर अंतिम संस्कार करने के दिशा-निर्देशों को भी एफिडेविट में शामिल किया है।
लखनऊ बेंच ने फैसला सुरक्षित रखते हुए सीबीआई के वकील अनुराग सिंह से अगली सुनवाई में जांच की स्टेटस रिपोर्ट देने को कहा। पीड़िता के वकील सीमा कुशवाहा ने खंडपीठ के सामने जांच को प्रदेश से बाहर ट्रांसफर करने की फिर मांग की। वहीं आरोपियों के वकील सिद्धार्थ लूथरा ने जजों से निवेदन किया कि अदालत आदेश में कोई ऐसी बात न कहे जिससे जांच प्रभावित होने की आशंका हो। कोर्ट में एडीजी लॉ एंड ऑर्डर प्रशांत कुमार और गृह सचिव तरुण गाबा भी मौजूद रहे।