बिहार: कांग्रेस की बर्बादी के जिम्मेदार लालू के आगे ही कांग्रेस ने रगड़ी नाक
पटना। बिहार में लालू प्रसाद के लिए कांग्रेस के नेता क्या महसूस कर रहे हैं ? हालात देख कर फिल्म लीडर के गाने का मुखड़ा याद आ रहा है- हमी से मोहब्बत, हमी से लड़ाई, अरे मार डाला दुहाई दुहाई...
लालू प्रसाद ने सीट बंटवारे में कांग्रेस से अधिक उपेन्द्र कुशवाहा को तवज्जो दी। 2013 में बनी रालोसपा के पास तीन सांसद थे। अब टूट के कारण दो रह गये हैं। दो विधायक थे जो अब उपेन्द्र कुशवाहा के साथ नहीं हैं। इसके बाद भी लोकसभा सीट बंटवारे में उपेन्द्र कुशवाहा को पांच सीटें दी गयीं।
कुशवाहा जीताऊ उम्मीदवार कहां से लाएंगे
रालोसपा को तो पांच मजबूत उम्मीदवार भी खोजने पड़ेंगे। रालोसपा के सीतामढ़ी सांसद राम कुमार शर्मा स्टिंग ऑपरेशन का वीडियो सामने आने के बाद विवादों में हैं। ऐसे में कुशवाहा जीताऊ उम्मीदवार कहां से लाएंगे, एक बड़ा सवाल है। दूसरी तरफ दो सांसदों और 27 विधायकों वाली कांग्रेस को केवल नौ सीटें दी गयी हैं। यानी राजद सुप्रीमो ने कांग्रेस जैसी बड़ी पार्टी की जगह एक नये सहयोगी पर अधिक भरोसा किया। कहा जा रहा है कि कुशवाहा को हैसियत से अधिक सीटें दी गयी हैं। सीट बंटवारे में लालू प्रसाद की ही चली। कांग्रेस को अनुनय-विनय का भी कोई फायदा नहीं मिला। यहां तककि सांसद पप्पू यादव के लिए भी कांग्रेस टिकट नहीं हासिल कर सकी। लालू ने उसके दावों को अनुसना कर दिया।
पहले तनी फिर झुकी कांग्रेस
कांग्रेस के नेता पहले 11 सीटों पर चुनाव लड़ने का बयान देते रहे। सजायाफ्ता लालू प्रसाद को ये नागवार लगा। उन्होंने तुरंत अपने दूत और विधायक भोला यादव के जरिये तेजस्वी यादव को संदेश भेजा कि कांग्रेस को आठ से अधिक सीट नहीं देनी है। कांग्रेस-राजद में तनातनी हुई। आखिरकार कांग्रेस को झुकना पड़ा। राष्ट्रीय राजनीति में राहुल गांधी का पोलिटिकल ग्राफ भले ऊपर चढ़ा है लेकिन लालू प्रसाद इसको अहमियत नहीं देते। खासकर बिहार के संदर्भ में। वे जेल में इलाजरत हैं लेकिन उनकी सियासी हनक कायम है। बहुत जोर लगाने के बाद भी कांग्रेस को नौ सीटें ही मिल पायीं।
कांग्रेस को झटका
मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में जीत के बाद कांग्रेस और राहुल गांधी का रुतबा बुलंद हुआ है। जोश से लबरेज कांग्रेस को भरोसा था कि अब वह बिहार में सीट शेयरिंग के मामले में मजबूती से अपनी बात रखेगी। बात रखी भी गयी। लेकिन लालू प्रसाद ने कांग्रेस को हकीकत की जमीन पर ला पटका। अब जो लालू देंगे उसे कांग्रेस को कड़वा घूंट पी कर भी मंजूर करना होगा। वह इस लिए क्यों कि कांग्रेस अकेले दो, तीन सीटों से अधिक नहीं जीत सकती। 1991 से अब तक हुए लोकसभा चुनाव में बिहार से कांग्रेस के सांसदों की संख्या कभी चार से अधिक नहीं हुई है।
कांग्रेस का पतन और लालू का उत्थान
यह
एक
राजनीतिक
संयोग
है
कि
कांग्रेस
के
पतन
के
साथ
ही
लालू
प्रसाद
का
उत्थान
हुआ।
1990
में
कांग्रेस
बिहार
की
सत्ता
से
बेदखल
हुई
तो
लालू
प्रसाद
नये
क्षत्रप
के
रूप
में
स्थापित
हुए।
लालू
प्रसाद
जैसे-जैसे
मजबूत
होते
गये
कांग्रेस
वैसे-वैसे
दम
तोड़ती
गयी।
आखिरकार
कांग्रेस
बिहार
में
मृतप्राय
हो
गयी।
ये
बात
बहुत
हैरान
करने
वाली
है
कि
कांग्रेस
ने
अपने
पुनर्जीवन
के
लिए
उसी
लालू
प्रसाद
को
चुना
जो
उसकी
बर्बादी
का
कारण
बने
थे।
कमजोर कांग्रेस मजबूत लालू
1989 में हुए भागलपुर दंगा ने कांग्रेस के पतन की पटकथा ली दी थी। कांग्रेस की केन्द्र से ही नहीं बल्कि बिहार से भी विदाई हो गयी थी। बिहार में लालू की ताजपेशी के बाद 1991 में लोकसभा का पहला चुनाव हुआ था। कांग्रेस की दुर्गति हो गयी। केवल एक सीट मिली। जब कि दूसरी तरफ लालू प्रसाद ने मुख्यमंत्री रहते हुए जनता दल को 31 सीट जीत कर दी। 1996 के लोकसभा चुनाव में लालू प्रसाद अपने बूते जनता दल को 22 सीटें दीं। कांग्रेस का आंकड़ा दो से आगे नहीं बढ़ा। 1998 के चुनाव में राजद 17 था को कांग्रेस चार थी। 1999 में लालू को झटका लगा तब भी वह कांग्रेस से आगे थे। राजद सात तो कांग्रेस चार।
कांग्रेस को केवल तीन सीटें मिलीं
2004 में राजद ने 22 सीटें जीतीं तो कांग्रेस को केवल तीन सीटें मिलीं। 2009 में राजद का आंकड़ा चार तो कांग्रेस का आंकड़ा दो रहा। 2014 में यही कहानी दोहरायी गयी। इन चुनावों में कांग्रेस कभी अकेले लड़ी तो कभी गठबंधन में लेकिन उसका आंकड़ा कभी पांच तक भी नहीं पहुंचा। कांग्रेस को बिहार में कभी गठबंधन से फायदा नहीं मिला लेकिन पार्टी का शीर्ष नेतृत्व लालू प्रसाद में ही अपना भविष्य तलाशता रहा। भाजपा को रोकने के नाम पर कांग्रेस को अपनी बर्बादी भी मंजूर रही।
लालू ने कांग्रेस को दिखाया आईना
2019 में जब कांग्रेस ने अकड़ दिखाने की कोशिश की तो लालू प्रसाद ने उसे आईना दिखा दिया। मजबूर कांग्रेस महागठबंधन तोड़ने का जोखिम नहीं ले सकती थी। उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में कांग्रेस पहले ही दरकिनार हो चुकी थी। बिहार में कांग्रेस मनमाफिक सीटों के लिए अड़ी तो बात बिगड़ने के कगार पर पहुंच गयी। आखिरकार कांग्रेस कॉम्प्रोमाइज के लिए तैयार हो गयी।
राहुल गांधी भी बैकफुट पर
राहुल गांधी कभी लालू प्रसाद के साथ मंच साझा नहीं करना चाहते थे। भ्रष्टाचार के मुद्दे पर उन्हें लालू प्रसाद से परहेज था। लेकिन मजबूत होते नरेन्द्र मोदी ने राहुल गांधी के आत्मविश्वास को हिला दिया। उन्हें लगने लगा कि विपक्षी दल अकेले नरेन्द्र मोदी को कभी नहीं हरा सकते। महागठबंधन मजबूरी बन गयी। एक दूसरे को नापसंद करने वाले नेता भी हाथ मिलाने लगे। राहुल गांधी बिहार में कांग्रेस के उठान के लिए लालू प्रसाद पर निर्भर हो गये। बिहार में कांग्रेस जब भी उठने की कोशिश करती है लालू प्रसाद उसकी कमजोर नस दबा देते हैं। लालू फील्ड में नहीं हैं लेकिन फील्डिंग सेट वही कर रहे हैं। मजबूर कांग्रेस को इसी फील्डिंग पर गेंदबाजी करनी होगी। अब उसकी किस्मत कि उसे कितने विकेट मिलते हैं।
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