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अमेठी के बाद क्या अब रायबरेली की बारी,कांग्रेस के लिए संकेत शुभ नहीं

By राजीव ओझा
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लखनऊ। लोकसभा चुनाव के नतीजे आ चुके हैं। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का लगभग सफाया हो गया है। राहुल के पैरों तले से अमेठी खिसक चुकी है। रायबरेली की धरती भी डोल रही है। आखिर कांग्रेस से गलती कहाँ हो रही है? सोनिया गांंधी ने लगातार पांचवीं बार रायबरेली से लोकसभा चुनाव जीत तो लिया है लेकिन उनका वोट प्रतिशत गिर रहा है। ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि उत्तर में कांग्रेस का आखिरी किला रायबरेली भी कमजोर हो रहा है। 2019 के नतीजों के बाद अब कांग्रेस का एकमात्र चिराग सोनिया गांंधी के रूप में रायबरेली में ही टिमटिमा रहा है। कांग्रेस ने बदलाव के संकेतों को समझना होगा। बदलाव से यहांं मतलब माहौल के साथ कांग्रेस के भीतर बदलाव से है और कांग्रेस की कार्यसंस्कृति में बदलाव से भी है। कांग्रेस के नेताओं को 2019 चुनाव के संकेतों को समझना होगा। नरेन्द्र मोदी, बीजेपी, एनडीए, हिन्दूवाद और राष्ट्रवाद से अलग हटकर अपनी हार पर मंथन करते वक्त अपने संगठन के भीतर इसके कारण खोजने होंगे।

पुत्रमोही बूढ़े छत्रपों के कवच को भेदना जरूरी

पुत्रमोही बूढ़े छत्रपों के कवच को भेदना जरूरी

अपनी करारी हार के बाद 25 मई को सीडब्लूसी की बैठक में राहुल गाँधी ने जब इस्तीफे की पेशकश की तो उनके इर्दगिर्द बैठे हारे हुए छत्रपों ने एकसुर से इसका विरोध किया। हालांकि राहुल गाँधी ने पी चिदम्बरम, अशोक गहलोत और कमलनाथ पर पुत्रमोह के चलते दबाव बनाने की बात कही और नाराज़गी भी व्यक्त की। लेकिन राहुल इस बैठक में कड़ा संदेश न दे सके। अब राहुल को आगे बढ़कर कड़े फैसले लेने होंगे चापलूस काकस के कवच को तोड़कर बाहर आना होगा। पुत्रमोह और परिवारमोह से ग्रस्त बूढे हो चले सेनापतियों की जगह खुली सोच वाले युवाओं और कार्यकर्ताओं को तरजीह देनी होगी। कांग्रेस पार्टी जब तक अपनी हार की वजह बाहर तलाशती रहेगी तबतक उसका उद्धार नहीं होने वाला। चुनावों के ताज़ा तरीन आंकड़े हिंदी बेल्ट से कांग्रेस के गायब होने के गवाह हैं।

बचकानी बातों और बच्चों से नारा लगवाने से वोट नहीं मिलते

बचकानी बातों और बच्चों से नारा लगवाने से वोट नहीं मिलते

एक स्वस्थ लोकतंत्र में एक सशक्त विपक्ष का न होना उसके स्वास्थ्य के लिए घातक है। उत्तर प्रदेश में चुनाव नतीजों से साफ़ हो गया है कि जाति, जोड़तोड़ और वोटबैंक की राजनीति का फार्मूला कुछ पिछड़े क्षेत्रों को छोड़ प्रदेश के बाकी इलाकों में नकार दिया गया है। आपको याद होगा कि लोकसभा चुनाव करीब आते ही कांग्रेस ने प्रियंका गाँधी को हुकुम के इक्के की तरह चल दिया। लेकिन कांग्रेसी थिंकटैंक (अगर कोई हो तो) यह समझ नहीं सका कि राजनीति के नए खेल में हुकुम के इक्के से ज्यदा शक्तिशाली तुरूप के पत्ते हैं और बीजेपी इस खेल में माहिर है। राजनीति में प्रियंका का औपचारिक अवतरण पार्टी महामंत्री के रूप में हुआ। बीच में अटकलें लगीं कि वह वाराणसी से नरेन्द्र मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ सकती हैं। प्रियंका ने भाई राहुल की अमेठी और मां सोनिया की रायबरेली में जम कर चुनाव प्रचार किया। बीजेपी, नरेन्द्र मोदी और स्मृति इर्रानी पर तीखे हमले किये। प्रचार के दौरान कई बार उनकी भाषा अशिष्टता के निम्नतर स्तर तक पहुँच गई। लेकिन बचकानी बातों और बच्चों से नारा लगवाने से वोट नहीं मिलते, यह नतीजों से साफ़ हो गया है।

रायबरेली में लगातार गिर रहा है सोनिया का ग्राफ

रायबरेली में लगातार गिर रहा है सोनिया का ग्राफ

रायबरेली सीट पर सोनिया गाँधी 2004 से लगातार लोकसभा चुनाव जीत रहीं हैं लेकिन उनका वोट प्रतिशत लगतार घट रहा है। 2019 में रायबरेली में कुल 958556 वोट पड़े जिसमें सोनिया को 534918 वोट मिले जो कि कुल वोट का 55.8 प्रतिशत है। यह 2014 में सोनिया गाँधी को मिले 63.80 प्रतिशत वोट के मुकाबले आठ प्रतिशत कम है। जबकि इस बार सपा और बसपा ने सोनिया के खिलाफ प्रत्याशी नहीं उतरा था। इसी तरह 2014 का 63.80 प्रतिशत 2009 के 72.23 प्रतिशत के मुकाबले करीब 9 प्रतिशत कम था। इसी तरह 2009 का 72.23 प्रतिशत 2006 के 80.49 के मुकाबले करीब साढे 9 प्रतिशत कम था। मतलब 2006 के बाद से लगातार सोनिया गाँधी के वोट प्रतिशत में कमी आरही है।

उत्तर प्रदेश में प्रियंका फेल

उत्तर प्रदेश में प्रियंका फेल

जिस तरह सपा-बसपा गठबंधन उत्तर प्रदेश में एक ताकत बन कर नहीं उभर सका उसी तरह प्रियंका भी कांग्रेस को नई ऊर्जा प्रदान करने में विफल रहीं। इस बार गठबंधन ने सोनिया के खिलाफ चुनाव में कोई प्रत्याशी नहीं उतारा था। इसके बावजूद सोनिया गाँधी को प्राप्त मत प्रतिशत और जीत मार्जिन में कमी कांग्रेस के लिए खतरे का संकेत है।

काम न आई मायावती की अपील

काम न आई मायावती की अपील

कांग्रेस पार्टी के खिलाफ लगातार तीखे तेवर रखने वाली बीएसपी सुप्रीमो मायावती चुनाव से पहले अचानक सोनिया गांधी पर नरम नजर आईं। उन्होंने कहा कि उन्हें पूरी उम्मीद है कि गठबंधन का एक एक वोट हर हालत में सीनिया और राहुल को मिलने वाला है। मायावती लोकसभा चुनाव की शुरुआत से ही कांग्रेस पार्टी पर हमला करती रहीं लेकिन अमेठी और रायबरेली सीटों के लिए कांग्रेस का समर्थन किया। रायबरेली में बसपा का बेस वोट करीब 21 प्रतिशत है। 2014 के चुनाव में यहाँ बसपा प्रत्याशी प्रवेश सिंह को 63633 वोट मिले थे। मायावती को लगा प्रत्याशी न उतारने से ये वोट सोनिया को मिलेंगे लेकिन बढ़ने के बजाय सोनिया का वोट प्रतिशत घट गया। जनता ने इस मौकापरस्ती को पूरी तरह नकार दिया। अब अगला मोर्चा 2022 का विधान सभा चुनाव है। कांग्रेस को नई रणनीति के साथ जुटना होगा वर्ना लोग इतिहास के पन्नों में पढेंगे- उत्तर परदेश में कभी कांग्रेस राज था।

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English summary
Lok Sabha Election Results 2019: After Amethi, Now the turn of Rai Bareilly?
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