Women's Day: कानपुर की कलावती को मिला नारी शक्ति पुरस्कार, अपने हाथों से बनाए 4 हजार शौचालय
कानपुर। उत्तर प्रदेश के कानपुर में रहने वाली 58 वर्षीय कलावती देवी पेशे से राजमिस्त्री हैं। उन्होंने अब तक 4000 से ज्यादा शौचालय अपने हाथों से बनाए हैं। कानपुर को खुले में शौच से मुक्त बनाने में कलावती का अहम योगदान है। कलावती के पति और दामाद की मौत हो चुकी है। कलावती पर ही उनके परिवार की जिम्मेदारी है। वह खुले में शौच से होने वाली बीमारियों के प्रति जागरूकता पैदा करने के लिए घर-घर जाती हैं। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कलावती देवी को नारी शक्ति पुरस्कार से सम्मानित किया है।
13 साल की उम्र में हो गई शादी
कलावती मूलरूप से सीतापुर जिले की रहने वाली हैं। महज 13 साल की उम्र में उनकी शादी पांच साल बड़े युवक से हो गई थी। इसके बाद वह पति के साथ कानपुर में रहने लगीं। कलावती पढ़ी-लिखीं नहीं हैं, लेकिन समाज के लिए कुछ करने की ललच उनमें बचपन से ही थी। वह जहां रहती थीं वह इलाका गंदगी के ढेर पर बसा था। करीब 700 लोगों की आबादी वाले इस मोहल्ले में एक भी शौचालय नहीं था। सभी लोग खुले में शौच के लिए जाते थे।
एनजीओ से जुड़ी कलावती देवी
खुले में शौच की समस्या को दूर करने के लिए करीब दो दशक पहले एक स्थानीय एनजीओ ने राजा का पुरवा में शौचालय बनाने के लिए पहल शुरू की। कलावती देवी भी इस पहल से जुड़ गईं। चूंकि कलावती को राजमिस्त्री का काम आता था, इसलिए उन्होंने मोहल्ले का पहला सामुदायिक शौचालय बनाया। कलावती ने बताया कि यह काम आसान नहीं थी। शुरुआत में लोग अपनी जमीन खाली करने के लिए तैयार नहीं होते थे। ऐसे लोगों को शौचालय का महत्व बताया गया, काफी समझाया गया जिसके बाद के वह राजी हुए। बाद में तत्कालीन नगर निगम के आयुक्त से दूसरे स्लम बस्तियों में शौचालय निर्माण कराने का प्रस्ताव रखा गया। अधिकारी प्रयासों से सहमत हुए।
कलावती के प्रयास से बदली परिस्थितियां
अधिकारियों ने प्रस्ताव रखा कि अगर मोहल्ले के लोग शौचालय की कुल लागत का एक तिहाई खर्च उठाने को तैयार हो जाएं तो दो तिहाई पैसा सरकारी योजना के तहत लिया जा सकता है।इसके बाद मोहल्ले के लोगों को समझाया गया। लोग समझने लगे और परिस्थितियां बदलने लगीं। धीरे-धीरे यह काम कलावती के लिए जुनून बन गया। कलावती के पति और दामाद की मौत हो चुकी है। बेटी और उसके दो बच्चे भी साथ रहते हैं।
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