कानपुर की इस गरीब महिला को हुआ शक, तब हुआ देश के बड़े किडनी रैकेट का खुलासा
Kanpur news, कानपुर। कानपुर में किडनी रैकेट का खुलासा करने में अहम भूमिका निभाने वाली संगीता अगर जागरुक नहीं होतीं तो ये रैकेट कभी पुलिस के हत्थे नहीं चढ़ता। संगीता और उनके पति को झांसा देकर दिल्ली ले जाया गया था, जंहा एक निजी नर्सिंग होम में उनके कई टेस्ट कराए गए, लेकिन जब संगीता को शक हुआ तो वह अपने पति के साथ कानपुर वापस लौट आईं और बर्रा थाने में शिकायत दर्ज करवाई। इसके बाद किडनी रैकेट चलाने वाले 6 लोग पुलिस की गिरफ्त में आ गए।
दिल्ली के अस्पताल में नौकरी दिलाने का दिया झांसा
कानपुर के साकेत नगर में रहने वाली संगीता को दिल्ली के अस्पताल में मेड की नौकरी दिलाने का झांसा देकर दिल्ली ले जाया गया। वहां नौकरी देने से पहले खून की जांच को जरूरी बताया गया, लेकिन जब कई प्रकार की जांचे हुई तो संगीता को कुछ शक हो गया। इस बीच संगीता ने उसे दिल्ली लाने वाले जुनैद किसी से किडनी जैसे शब्द सुने तो वो और सर्तक हो गई। इसके बाद जुनैद ने संगीता से कहा कि उसका आधार कार्ड हिंदू नाम से बना है, लेकिन उसे मुस्लिम महिला के रूप में नौकरी मिलेगी। इसलिये उसे दूसरा पहचान पत्र बनाना होगा। बस यहीं से संगीता और उसके पति राजेश कश्यप का शक और पुख्ता हो गया और वे जुनैद से लड़कर वापस आ गए।
पीड़िता की शिकायत पर हुआ रैकेट का खुलासा
पीड़िता संगीता ने बताया कि कानपुर में उन्हें धमकियां मिलने लगीं तो उन्होंने एक फरवरी को थाना बर्रा में रिपोर्ट दर्ज करा दी। इसके बाद पुलिस सक्रिय हुई और कुछ दिन की छानबीन में मानव अंग तस्करी के बड़े रैकेट का खुलासा हो गया। संगीता के घर की हालत देखने पर साफ हो गया कि वो किस तंगहाली में जीवन व्यतीत कर रही थी और ऐसे परेशान हाल लोग किडनी कारोबारियों के शिकार आसानी से बन जाते थे।
पहले अपनी किडनी बेची, फिर शुरू किया कारोबार
आरोपित राजकुमार राव कई साल पहले अपनी किडनी बेच चुका है। यहीं से उसे खुद यह रैकेट चलाने का आईडिया मिला और उसके खुद के पेट का सर्जिकल कट दूसरे लोगों का ब्रेनवाॅश करने का जरिया बना। वो अपने शिकार को आसानी से समझा लेता था कि किडनी देने के बाद कोई तकलीफ नहीं होती है और बिक्री के पैसों से जिंदगी ऐश से गुजरती है। कानपुर में वर्षों से किडनी रैकेट चल रहा है। पहले भी पुलिस कार्रवाई हुई है, लेकिन मानव अंगों के कारोबार को कभी जड़ से नाश नहीं किया जा सका।
डॉक्टर्स मददगार बने
इस बारे में स्थायी शासकीय अधिवक्ता व सीनियर क्रिमिनल वकील कौशल किशोर शर्मा ने बताया कि मानव अंग प्रत्यारोपण कानून 1995 में बना था, जिसमे केन्द्र सरकार ने 2011 में संशोधन करते हुए सजा के प्रावधान और कड़े कर दिए। इस कानून में डॉक्टर की जिम्मेदारी का दायरा भी बढ़ाया गया, लेकिन अंगदान की प्रक्रिया में रैकेटियर्स ने कई छेद ढूंढ निकाले और डॉक्टरों का एक वर्ग भी इसमे मददगार बना। उनका कहना है कि पुलिस को आज ही किडनी रैकेट के आरोपियों को आज कोर्ट में पेश करने के साथ ही गवाहों को मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश करके 164 के कलमबन्द बयान करा दे। वरना लम्बी कानूनी प्रक्रिया के कारण गवाह टूट सकते हैं और हमेशा की तरह आरोपियों को बच निकलने का मौका मिल जाएगा।
नामी अस्पताल इस बात का उठाते हैं फायदा
स्थायी शासकीय अधिवक्ता ने कहा कि चूंकि बड़े सरकारी पदों पर बैठक अधिकारी और नेता प्रतिष्ठित निजी अस्पतालों में अपना इलाज कराते हैं, इसलिए वे अस्पताल से आबलाईज रहते हैं। इसी आड़ में कुछ नामी-गिरामी अस्पताल इसका फायदा उठाते हुए नियमों के साथ खिलवाड़ कर लेते हैं। वहीं, इंडियन मेडिकल एसोसिएशन कानपुर चैप्टर की अध्यक्ष और किडनी विशेषज्ञ डॉ. अर्चना भदौरिया ने फर्जी दस्तावेजों को वेरीफाई न कर पाने की मजबूरी बताई, लेकिन कानपुर के किडनी रैकेट प्रकरण को आईएमए के लीगल सेल के पास भेजने की बात कही।