भारत के इस खूंखार अपराधी ने मारे थे 97 पुलिसकर्मी, एनकाउंटर के लिए पुलिस ने यूं बिछाया था जाल
कानपुर। उत्तर प्रदेश के कानपुर में 2 जुलाई की रात हिस्ट्री शीटर विकास दुबे को पकड़ने गए डीएसपी समेत 8 पुलिसकर्मियों की हत्या कर दी गई। बदमाश विकास फरार है, गांव छावनी में तब्दील है। इस घटना ने भारत के उसे खूंखार बदमाश की याद ताजा कर दी जो 97 पुलिसवालों का हत्यारा माना जाता है। वीरप्पन, यही वो नाम है जिसे कुल 184 लोगों का हत्यारा बताया जाता है, जिनमें से 97 पुलिसवाले भी शामिल हैं। आइए जानते हैं कि दक्षिण भारत में आतंक का दूसरा नाम और चंदन तस्कर वीरप्पन की कहानी।
18 अक्टूबर 2004 को एनकाउंटर में मारा गया था वीरप्पन
18 अक्टूबर 2004 को वीरप्पन को पुलिस ने एनकाउंटर में मार गिराया था। किसी को यकीन नहीं हो रहा था कि वीरप्पन मारा गया है। साउथ इंडिया के जंगलों में वीरप्पन के नाम की तूती बोलती थी। उसका असली नाम कूज मुनिस्वामी वीरप्पन था, जो चंदन की तस्करी के साथ-साथ हाथी दांत की तस्करी भी करता था। वीरप्पन का नाम पहली बार 1987 में सुर्खियों में आया, जब उसने चिदंबरम नाम के एक वन अधिकारी को किडनैप कर लिया था। इसके बाद उसने पुलिस के एक पूरे जत्थे को ही उड़ा दिया था, जिसमें 22 लोग मारे गए थे।
कन्नड़ फिल्मों के हीरो को किया था किडनैप
1997 में वीरप्पन ने सरकारी अफसर समझकर दो लोगों को किडनैप किया था, लेकिन वे दोनों फोटोग्राफर थे। वो लोग वीरप्पन के साथ 11 दिन रहे। छूटकर आने के बाद उन दोनों ने वीरप्पन के बारे में हैरान करने वाले खुलासे किए थे। दोनों फोटोग्राफर ने बताया था कि वीरप्पन हाथियों को लेकर बड़ा भावुक था। वीरप्पन ने उन दोनों से कहा था कि जंगल में जो कुछ होता है, उसके नाम पर मढ़ दिया जाता है, पर उसे पता है कि इस काम में 20-25 गैंग शामिल हैं। सारा काम वो ही नहीं करता। वो सब उसने छोड़ दिया है। 2000 में वीरप्पन ने कन्नड़ फिल्मों के हीरो राजकुमार को किडनैप कर लिया और रिहाई के लिए फिरौती में 50 करोड़ की रकम मांगी।
तमिलनाडु और कर्नाटक सरकार ने रखा था 5.5 करोड़ का इनाम
तमिलनाडु
और
कर्नाटक
सरकारों
ने
मिलाकर
उस
पर
5.5
करोड़
का
इनाम
रखा
था।
एसटीएफ
वीरप्पन
को
पकड़ने
की
हरसंभव
कोशिश
कर
रही
थी।
इसी
बीच
2003
में
विजय
कुमार
को
एसटीएफ
का
चीफ
बनाया
गया।
आईपीएस
अफसर
विजय
कुमार
के
लिए
वीरप्पन
कोई
नया
नाम
नहीं
था।
1993
में
भी
विजय
ने
उसे
पकड़ने
की
कोशिश
की
थी,
लेकिन
नाकाम
रहे
थे।
इस
बार
विजय
कुमार
ने
योजना
बनाकर
बड़े
दिमाग
से
काम
लिया।
उन्होंने
वीरप्पन
के
गैंग
में
अपने
आदमी
घुसा
दिए
थे।
ऐसे
इसलिए
भी
संभव
हो
चुका
क्योंकि
वीरप्पन
के
गैंग
में
लोग
कम
हो
रहे
थे।
18
अक्टूबर
2004
को
वीरप्पन
अपनी
आंख
का
इलाज
कराने
जा
रहा
था।
जंगल
के
बाहर
पपीरापट्टी
गांव
में
उसके
लिए
एक
एंबुलेंस
खड़ी
थी,
वीरप्पन
उसमें
सवार
हो
गया।
गोलियों से छलनी हो गया था वीरप्पन का शरीर
पुलिस बीच रास्ते में घात लगाकर बैठी थी, तभी अचानक ड्राइवर ने रास्ते में एंबुलेंस रोक दी और वो उसमें से उतर कर भाग गया। इससे पहले कि वीरप्पन कुछ समझ पाता। पुलिस ने एंबुलेंस पर चारों तरफ से फायरिंग शुरु कर दी, जिसमें वीरप्पन मारा गया। बताया जाता है कि पुलिस वीरप्पन को जिंदा पकड़ना नहीं चाहती थी, क्योंकि वह अदालत से छूट जाता। हालांकि, पुलिस अपनी सफाई में यही कहा था कि वीरप्पन को चेतावनी दी गई थी, लेकिन उसने पुलिस पर गोली चला दी थी और पुलिस की जवाबी कार्रवाई करनी पड़ी, जिसमें वो मारा गया।
लाश को देखने को 20 हजार से ज्यादा लोग लाइन लगे थे
वीरप्पन मारा गया, इस बात का किसी को यकीन नहीं हो रहा था। अगले दिन पोस्टमार्टम हाउस के बाहर उसकी लाश को देखने को 20 हजार से ज्यादा लोग लाइन लगे हुए थे। बता दें, जंगलों में रहने वाले वीरप्पन को रॉबिनहु़ड से कम मानते भी नहीं थे। कहा जाता है कि जो उससे एक बार मिलता था, प्रभावित हो जाता था। कहा जाता है कि वीरप्पन के पास अकूत संपत्ति थी, जो उसने छिपाकर रखी थी। वीरप्पन का खात्मा करने वाले पुलिसकर्मियों को तमिलनाडु की तत्कालीन मुख्यमंत्री जयललिता ने तीन-तीन लाख रुपए दिए। सभी को प्रमोशन भी मिला था। सभी को उनके गृहनगर में सरकार की तरफ से एक-एक घर भी मिला।
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