Vikas Dubey Crime History: 1990 में विकास दुबे ने किया था पहला अपराध, संतोष शुक्ला के भाई ने कहा- 19 साल बाद मिला इंसाफ
कानपुर। उत्तर प्रदेश के कानपुर के शिवली थाने के अंदर विकास दुबे ने 2001 में तत्कालीन भाजपा सरकार में राज्यमंत्री संतोष शुक्ला की हत्या कर दी थी। विकास दुबे के एनकाउंटर में मारे जाने के बाद संतोष शुक्ला के भाई मनोज शुक्ला ने कहा कि उनको न्याय मिलने में 19 साल लग गए। कहा कि जिसके खिलाफ भी उसने अपराध किया है, वे उसके मारे जाने से खुश हैं। अपने भाई की हत्या की घटना को याद करते हुए उन्होंने कहा कि उस समय विकास दुबे को जेल भेजा जाता तो कई परिवार बर्बाद होने से बच जाते। संतोष शुक्ला मर्डर केस की कहानी 2001 में शुरू हुई और सबूतों व गवाहों के अभाव में विकास दुबे इस मामले में छूट गया था। इसी हत्याकांड के बाद से ही विकास दुबे से इलाके में लोग खौफ खाने लगे थे।
कैसे हुई थी संतोष शुक्ला की हत्या?
वर्ष 2001 में हुई उस खौफनाक हत्या के बारे में बताया जाता है कि भाजपा नेता और तत्कालीन राजनाथ सरकार में दर्जा प्राप्त राज्यमंत्री रहे संतोष शुक्ला को विकास दुबे ने कानपुर देहात के शिवली थाने में दौड़ाकर गोली मार दी थी। दिनदहाड़े विकास दुबे ने थाने में संतोष शुक्ला की हत्या को अंजाम दिया था। इस कांड में दर्ज केस में विकास दुबे का भी नाम था। उसने छह महीने बाद आत्मसमर्पण किया था लेकिन कुछ साल बाद वह इस मामले में बरी हो गया था। संतोष शुक्ला के गनर और अन्य लोगों ने विकास दुबे के पक्ष में बयान दिया था।
(फोटो- संतोष शुक्ला के भाई मनोज शुक्ला)
2002 में पुलिस ने दाखिल की संतोष शुक्ला मर्डर केस की चार्जशीट
वर्ष 2002 में संतोष शुक्ला मर्डर केस में पुलिस ने जो चार्जशीट दाखिल की उसमें विकास दुबे समेत आठ लोगों को आरोपी बनाया गया था जिनमें तीन पुलिसकर्मी भी थे। 2003 में स्थानीय अदालत ने सबूतों के अभाव में सबको बरी कर दिया था। शिवली थाने के एक अधिकारी के मुताबिक, रिटायर्ड स्कूल प्रिंसिपल सिद्धेश्वर पांडे की वर्ष 2000 में हत्या हो गई थी जिसकी चार्जशीट में विकास दुबे पर साजिश रचने का आरोप था। इस चार्जशीट में विकास दुबे समेत चार लोगों को आरोपी बनाया गया था। स्थानीय अदालत ने 2004 में चारों आरोपियों को उम्रकैद की सजा सुनाई थी। उनमें से एक की मौत हो चुकी है, बाकी तीन जमानत पर छूट गए थे।
संतोष शुक्ला मर्डर के बाद बढ़ा राजनीतिक रसूख
अपराध की शुरुआत विकास दुबे ने लड़ाई-झगड़े से की थी। 1990 के आसपास विकास दुबे के खिलाफ शिवली थाने में मारपीट का पहला केस दर्ज हुआ था। वर्ष 1992 में दलित युवक की हत्या का आरोप उस पर लगा। इन दोनों केसों में वह छूट गया था। 1999 में उसने बिकरु के झुन्ना बाबा की हत्या कर उसकी जमीन और संपत्ति पर कब्जा कर लिया था। 2001 में संतोष शुक्ला की हत्या करने के बाद विकास दुबे का कद इतना बढ़ गया कि उसको नेताओं का संरक्षण मिलने लगा। 2002 में उसने अपने प्रतिद्वंद्वी नगर पंचायत अध्यक्ष लल्लन बाजपेयी की हत्या करने की कोशिश की। केबल ऑपरेटर दिनेश दुबे की हत्या कर दी जिसके बारे में ऐसा कहा जाता है कि महज 20 हजार रुपए का विवाद था।
बिकरु गांव के विकास दुबे का ऐसे हुआ अंत
विकास दुबे पर 60 से ज्यादा आपराधिक मामले दर्ज थे। इनमें 5 हत्या और 8 हत्या के प्रयास के केस थे। वह बिकरु गांव में रहता था। वह इस गांव का दस साल तक प्रधान रहा और इसके बाद जिला पंचायत सदस्य बना था। इसी बिकरु गांव में दो और तीन जुलाई के बीच की रात को वह आठ पुलिसकर्मियों की हत्या कर फरार हो गया था। यूपी पुलिस और एसटीएफ उसकी तलाश में खाक छानती रही लेकिन वो छकाता रहा। मध्य प्रदेश में उज्जैन के महाकाल मंदिर में वह रहस्यमय तरीके से पकड़ा गया। यूपी पुलिस और एसटीएफ के मुताबिक, उसको लेकर कानपुर आने के रास्ते में मुठभेड़ में वह मारा गया।
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