2 साल की बच्ची की 'गवाही' पर हाईकोर्ट ने सुनाया बड़ा फैसला, बच्ची ने बिन बोले बयां की मंशा
जोधपुर। राजस्थान हाईकोर्ट की खण्डपीठ में दो साल की बच्ची की 'गवाही' पर उसको अपनी नानी के साथ भेजने का निर्णय सुनाया है। बच्ची की मां की मौत के बाद बच्ची की नानी की ओर से खण्डपीठ के समक्ष बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पेश कर बच्ची की अभिरक्षा मांगी गई थी।
याचिका का निस्तारण
इस पर बच्ची को गुरुवार को खण्डपीठ के समक्ष पेश किया गया। जहां अधिवक्ताओं की दलीलें नहीं चली, लेकिन मासूम ने खुद कोर्ट में अपने व्यवहार से यह फैसला सुनाने में खण्डपीठ की मदद की। न्यायाधीश संदीप मेहता व न्यायाधीश अभय चतुर्वेदी की खण्डपीठ ने फैसला सुनाकर याचिका का निस्तारण किया।
दादा-दादी और नाना-नानी कोर्ट में पेश
दरअसल, दो साल की बच्ची की नानी ने हाईकोर्ट में एक बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर कर बच्ची को दादा-दादी से अपनी अभिरक्षा में रहने की प्रार्थना की। इस पर कोर्ट ने पूर्व में आदेश दिया था कि गुरुवार को सुनवाई के दौरान बच्ची व उसके दादा-दादी व नाना-नानी को कोर्ट के समक्ष पेश करें।
दादी के पास से नानी के पास गई बच्ची
सुनवाई के दौरान खण्डपीठ के समक्ष बच्ची व दोनों पक्षकारों को पेश किया गया। बच्ची हालांकि अपनी दादी के साथ भी खुश नज़र आ रही थी, लेकिन बच्ची ने खण्डपीठ के समक्ष जैसे ही अपनी नानी को देखा और खुशी से उछलते हुए नानी की ओर बढ़ी। बच्ची की मंशा को भांपते हुए कोर्ट ने बच्ची को नानी की अभिरक्षा में भेजने का आदेश पारित करते हुए याचिका का निस्तारण कर दिया। इस मौके पर पुलिस के उच्च अधिकारी व संबंधित बिलाड़ा थानाधिकारी भी कोर्ट में मौजूद थे।
बच्ची का पिता जेल में
गौरतलब है कि बच्ची की मां की मौत के पश्चात बच्ची के पिता पर दहेज हत्या का मुकदमा दर्ज किया गया था। जिसके चलते बच्ची के पिता भारतीय दंड संहिता की धारा 304बी के अंतर्गत न्यायिक अभिरक्षा मे जेल में है। इसके साथ ही बच्ची की अभिरक्षा को लेकर एक मामला पारिवारिक न्यायालय में भी विचाराधीन है।
इन्होंने ने की पैरवी
ऐसे में खण्डपीठ ने सक्षम न्यायालय के आदेश आने तक बच्ची को नानी की अभिरक्षा में भेजने के आदेश दिए हैं। इस मामले में सरकार की ओर से अतिरिक्त महाअधिवक्ता फरज़द अली ने सरकार ने पैरवी की थी। दूसरी ओर से अधिवक्ता फियोज ने दादा का पक्ष रखा।
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