मेजर शैतान सिंह : चीन के सैनिकों को मौत के घाट उतारते समय बर्फ में दबे, फिर भी नहीं छोड़ी बंदूक
जोधपुर। परमवीर चक्र विजेता शहीद मेजर शैतान सिंह की 57वीं पुण्यतिथि सोमवार को मनाई गई। जोधपुर के पावटा चौराहा स्थित शहीद मेजर शैतान सिंह की प्रतिमा पर सेना और प्रशासन के अधिकारियों ने श्रद्धांजलि दी। जवानों ने कार्यक्रम में बिगुल की ध्वनियों के साथ दिवंगत मेजर को सलामी दी। इस मौके पर मेजर के कार्यों को याद किया गया।
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शहीद मेजर शैतान सिंह 1962 में भारत-चीन युद्ध के दौरान वीरगति को प्राप्त हो गए थे। मेजर ने वीरगति को प्राप्त होने से पहले कई चीनी सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया था। उनकी वीरता और बहादुरी को देखते हुए सरकार ने उन्हें परमवीर चक्र से नवाजा।
मेजर शैतान सिंह का जीवन परिचय
एक दिसम्बर 1924 को जोधपुर में जन्मे मेजर शैतान सिंह को वीरता और बहादुरी पिता लेफ्टिनेंट कर्नल हेमसिंह भाटी से विरासत में मिली थी। वर्ष 1962 के भारत-चीन युद्ध में 16वीं कुमाऊं बटालियन से युद्ध का नेतृत्व करने वाले मेजर शैतान सिंह जम्मू कश्मीर के चुसुल सेक्टर के रेजंगला पर मोर्चा संभाल रहे थे।
इस क्षेत्र को जवानों की तीन ट्रुप गार्ड कर रही थी। इन्हीं में थे मेजर शैतानसिंह भाटी, जो एक ट्रुप से दूसरे ट्रुप को निर्देशित कर रहे थे। उनके निर्देशन व प्रोत्साहन से भारतीय जवानों ने बड़ी संख्या में चीनी सैनिकों को मौत के घाट उतार और कई घंटों तक बमबारी के बावजूद शौर्य का परिचय दिया।
सैनिक कल्याण अधिकारी कमांडर लक्ष्मण सिंह ने बताया कि 1962 के भारत-चीन युद्ध में कुमाऊं बटालियन के 109 जवान शहीद हुए थे। मोर्चा संभालते हुए मेजर शैतानसिंह की देह बर्फबारी से जम गई थी, लेकिन उनके हाथ से बंदूक नहीं छूटी।