Kargil Vijay Diwas : शादी के 15 दिन बाद बॉर्डर पर संभाला मोर्चा, फिर तिरंगे में लिपटकर लौटे जोधपुर
जोधपुर। मरुधरा के रणबांकुरों ने कारगिल की जंग में वीरता की वो कहानियां लिख दी, जो हिन्दुस्तान कभी नहीं भूल पाएगा। वर्ष 1999 में मई से जुलाई तक करीब दो माह चले कारगिल युद्ध में हिन्दुस्तान के 527 सैनिक शहीद हुए थे। इनमें अकेले राजस्थान से 52 सपूत थे। वन इंडिया की 'कारगिल में राजस्थान के फौजी' सीरीज में जानिए जोधपुर के दो ऐसे वीर सपूतों की शहादत की कहानी, जो युवाओं को देश की रक्षा और बॉर्डर पर दुश्मन को मुंह तोड़ जवाब देने के लिए पिछले बीस साल से प्रेरित कर रही हैं।
जोधपुर शहीद भंवर सिंह इंदा: 15 दिन तक दुश्मनों से लोहा लेते रहे
कारगिल जंग में जोधपुर जिले ने भी अपना बहादुर सपूत भंवर सिंह इंदा को खोया था। भंवर सिंह की शहादत मिसाल है। ये अपनी शादी के महज 15 दिन बाद ही भारत-पाक बॉर्डर पर कारगिल में तैनात कर दिए थे। कारगिल विजय दिवस के 20 साल के मौके पर वीरांगना इंद्र कंवर ने कहा कि जब उनके हाथों की मेहंदी सुर्ख थी तब उन्हें देश ने याद किया था। कर्ज चुकाने के बाद जब वे तिरंगे में लौटे तब मेहंदी का रंग फीका पड़ चुका था। उनकी शहादत को 20 साल बीत गए, मगर उनके साथ बिताए चंद लम्हों की यादों के सहारे ये लंबा अरसा गुजारा है।
गांव बालेसर दुर्गावता निवासी वीरांगना इंद्र कंवर ने बताया कि कारगिल की जंग में भंवर सिंह 15 दिन तक दुश्मनों से लोहा लेते रहे और 28 जून, 1999 शहीद हो गए। तब उनकी उम्र 22-23 साल थी। उनसे बिछुडऩे का गम तो है, पर गर्व के सामने वह बौना रह जाता है। जब लोग कहते हैं कि देखो यह शहीद की पत्नी है...तो सम्मान महसूस होता है।
जोधपुर शहीद कालूराम जाखड़: आर्मी ज्वाइन करने के 5 साल बाद शहीद
जोधपुर के भोपालगढ़ क्षेत्र के खेड़ी चारणान गांव निवासी कालूराम जाखड़ पुत्र गंगाराम जाखड़ 28 अप्रेल 1994 को भारतीय सेना की 17 जाट रेजीमेंट में सिपाही के पद पर सेना में भर्ती हुए थे। चार-साढ़े चार साल बाद ही उनकी तैनाती जम्मू कश्मीर इलाके में हो गई थी। मई 1999 में कारगिल युद्ध शुरू हो गया था। कालूराम कारगिल की पहाड़ी पर करीब 17850 फीट की ऊंचाई पर पीपुल-2-तारा सेक्टर में अपनी रेजिमेंट के साथ तैनात थे।
इस दौरान 4 जुलाई 1999 को पाकिस्तानी सेना ने उनकी रेजिमेंट पर हमला बोल दिया। एक बम का गोला कालूराम के पैर पर आकर लगा और उनका पैर शरीर से अलग ही हो गया था। इसके बावजूद भी कालूराम दुश्मनों से लड़ते रहे और अपने रॉकेट लांचर से दुश्मनों का एक बंकर ध्वस्त कर उसमें छिपे 8 घुसपैठियों को मार गिराया।
मां को लिखे खत में था इन बातों का जिक्र
कालूराम जाखड़ ने कारगिल से ही अपनी मां को एक खत भेजा था। बाद में पता चला कि उन्होंने जिस दिन खत लिखा था। उसी दिन वे शहीद हो गए थे। खत में उन्होंने अपनी मां को सम्बोधित करत हुए लिखा था कि मां तुम मेरी चिंता मत करना। तेरे बेटे के नाम का शिलालेख गांव में लगेगा और तेरे बेटे को एक दिन पूरी दुनिया जानेगी कि कैसे वह दुश्मनों से लड़ा था। कालूराम का यह पत्र उनके जीवन का आखरी खत बनकर रह गया।