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अरविंद सांखला : 11वीं पास यह शख्स देसी दिमाग लगाकर हर माह कमाता है 16 लाख रुपए

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जोधपुर। कहते हैं आवश्यकता आविष्कार की जननी है। इस बात का जीता-जागता उदाहरण है राजस्थान के जोधपुर जिले के मथानिया गांव के रहने वाले किसान अरविंद सांखला। इन्होंने अपना देसी दिमाग लगाकर कमाल कर दिखाया। पहले खुद ने खेती में हाथ आजमाया और फिर किसानों के सामने आने वाली कई समस्या के समाधान के लिए देसी जुगाड़ से मशीनें बना डालीं। उन्हीं को बेचकर अब छप्परफाड़ कमाई कर रहे हैं।

सालाना टर्नओवर 2 करोड़ रुपए

सालाना टर्नओवर 2 करोड़ रुपए

वन इंडिया हिंदी से बातचीत में अरविंद सांखला ने बताया कि किस तरह से उन्होंने एक मामूली किसान से करोड़पति बनने तक का सफर तय किया और मथानिया स्थित अपनी वर्कशॉप में बनाए गए कृषि यंत्रों को राजस्थान के साथ हरियाणा, यूपी, मध्य प्रदेश, पंजाब और गुजरात तक पहुंचाया। किस तरह से इन्होंने इस काम में महारत हासिल कर सालाना टर्नओवर 2 करोड़ रुपए पहुंचाया। मतलब हर माह 16 लाख रुपए से ज्यादा की कमाई।

70 की उम्र में किन्नू से सालाना 10 लाख रुपए कमा रहे चौधरी सुमेर राव, अमेरिका से भी आई डिमांड70 की उम्र में किन्नू से सालाना 10 लाख रुपए कमा रहे चौधरी सुमेर राव, अमेरिका से भी आई डिमांड

 पढ़ाई छोड़कर करने लगे खेती

पढ़ाई छोड़कर करने लगे खेती

10 भाई और 3 बहनों में सबसे बड़े अरविंद सांखला ने बताया कि उनकी कामयाबी की कहानी की शुरुआत वर्ष 1991 में होती है। तब मैंने 11वीं कक्षा उत्तीर्ण की थी। आगे पढ़ना चाहता था, मगर परिवार की माली हालत अच्छी नहीं थी तो पढ़ाई बीच में छोड़कर पिता के साथ खेती करने की ठानी। 1993 में हमारे खेत के कुएं की मोटर खराब हो गई। उसके बाद हमने कुएं में बोरिंग भी करवाई, मगर जब भी मोटर खराब होती तो हम रस्सी से खींचकर बाहर निकालते और फिर रस्सी से ही वापस रखते थे। दो दिन तक का समय लग जाता था। इसमें समय, मेहनत खूब लगती और इतने समय में फसल को पानी नहीं मिलने पर वह खराब होती उसका नुकसान सो अलग।

 लोरिंग मशीन का आविष्कार

लोरिंग मशीन का आविष्कार

अरविंद सांखला ने बताया कि भले ही मैंने इंजीनियरिंग की पढ़ाई नहीं की हो, मगर देसी जुगाड़ से मशीन बनाने में मेरी दिलचस्पी थी। सबसे पहले मैंने हमारे कुएं से मोटर निकालने में लगने वाले समय से बचने के लिए पाइप आदि के जुगाड़ से लोरिंग मशीन बनाई, जो काम कर गई। मेरा हौसला बढ़ा। मैं उसे लगातार मॉडिफाई करता रहा। आज खुद की वर्कशॉप में बनाई गई यही लोरिंग मैं 1.25 से ढाई लाख रुपए तक में राजस्थान समेत कई प्रदेशों में बेच रहा हूं।

 मिर्च छोड़कर लेने लगे गाजर की फसल

मिर्च छोड़कर लेने लगे गाजर की फसल

अरविंद सांखला की कहानी आगे बढ़े उससे पहले यह जान लो कि राजस्थान में मिर्च उत्पादन में मथानिया सबसे फेमस जगह है। मिर्च की बम्पर पैदा लेने वाले मथानिया के किसानों के सामने उस समय समस्या आई कि मिर्च में रोग लगना शुरू हो गया और भूजल स्तर पर भी पाताल की राह पकड़ता जा रहा था। ऐसे में अरविंद सांखला समेत मथानिया के अन्य किसानों ने मिर्च की बजाय गाजर की फसल लेना शुरू किया। मेहनत रंग लाई और यहां से रोजाना 20-25 ट्रक गाजर के निर्यात होने लगे।

गाजर धोने की मशीन बना डाली

गाजर धोने की मशीन बना डाली

गाजर की पैदावार के बाद यहां के किसानों के सामने दिक्कत यह आई कि वो गाजर को टाट-बोरी पर रगड़-रगड़कर या तगारी व कुंण्डों में उसकी धुलाई करते थे। फिर भी गाजर पर चिपकी मिट्टी और उसकी जड़े पूरी तरह साफ नहीं हो पाती थीं। इस प्रक्रिया में न केवल उन्हें समय अधिक लगता था बल्कि जितनी मेहनत करते उतने भाव भी नहीं मिल पाते थे। तब फिर अरविंद सांखला ने अपना देसी इंजीनियर वाला दिमाग लगाया और ड्रम की मदद से गाजर धोने का जुगाड़ बनाया। इस काम में दिलचस्पी बढ़ी तो मथानिया में ही राम कुटिया नामक जगह के सामने विजयलक्ष्मी इंजीनियरिंग वर्क्स के नाम से कृषि यंत्र बनाने का कारखाना खोल लिया और लोरिंग व गाजर धोने की मशीन को आधुनिक बनाने में जुट गए। इसके बाद तो लहसुन की फसल निकालने हेतु कुली मशीन, पुदीने की मशीन और मिर्च साफ करने की मशीन भी बनाई।

जानिए अरविंद के आविष्कार को

जानिए अरविंद के आविष्कार को

1 लोरिंग मशीन

अरविंद बताते हैं कि लोरिंग मशीन बनाने के लिए उन्होंने झूले के साथ एक मोटर लगाई। मोटर लगने से काम आसान हुआ। फिर एक स्टैंड बनाया जिसकी चैसिस की साइज 6×3 और घोड़े की साइज 4×2 थी। एक गियर बॉक्स का निर्माण भी किया, जिसमें आरपीएम बना दिए। पहले बोरवेल की गहराई 300 फ़ीट थी। अब 100 फ़ीट से 1000 फ़ीट के बोरवेल में पम्प बैठाने का काम आसानी से हो जाता है। एक अकेला व्यक्ति यह सारा काम अब मात्र एक घंटे में कर लेता है।

 2. गाजर सफाई की मशीन

2. गाजर सफाई की मशीन

अरविंद सांखला द्वारा बनाई गई मशीन से 2 क्विंटल गाजर एक साथ साफ की जा सकती है। इसमें महज 15 मिनट का समय लगता है। इस मशीन के ज़रिए एक घण्टे में करीब 16 कट्टे यानी 8 क्विंटल तक गाजर साफ की जा सकती हैं। इसके विपरीत हाथ से कोई मजदूर 1 कट्टा (50 किलो) गाजर साफ करने में कम से कम 25 मिनट या इससे अधिक समय लगाता था।

 15 मिनट में 7 कट्टे गाजर की धुलाई

15 मिनट में 7 कट्टे गाजर की धुलाई

अब इसी मशीन पर दो आदमी 15 मिनट में 7 कट्टे एक साथ धो सकते हैं। यदि दो आदमी हों तो, एक घण्टे में करीब 30 से 40 कट्टे साफ किए जा सकते हैं। गाजर का सीजन चार माह चलता है कि इस दौरान अरविंद 40 हजार से 60 हजार तक में दौ सौ मशीनें तक बेच देते है। बिना ऑर्डर और एडवांस लिए बगैर मशीन तैयार नहीं करते।

ऐसे काम करती है गाजर की मशीन

ऐसे काम करती है गाजर की मशीन

गाज़र धुलाई के लिए दो तरह की मशीनें बनाई हैं। एक चेसिस तथा टायर सहित (जिसे इधर उधर ले जाया जा सकता है।) दूसरी बगैर चेसिस-टायर की जो एक ही स्थान पर रखी जाती है। इन मशीनों के सेण्ट्रल ड्रम में दो वृत्ताकार मोटी चकतियों की परिधि पर समान मोटाई की आयरन -पत्तियों को थोड़े-थोड़े ‘गैप' के साथ जोड़कर बनाया गया है, इससे इस पिंजरेनुमा ड्रम की भीतरी सतह इतनी खुरदरी बन जाती है कि इसको घुमाने पर गाजरों पर लगी मिट्टी और महीन जड़ें तो रगड़ खाकर साफ हो जाती हैं पर गाजरों को खरोंच तक नहीं लगती।

3. लहसुन की फसल निकालने के लिए कुली मशीन

3. लहसुन की फसल निकालने के लिए कुली मशीन

अरविंद सांखला बताते हैं कि पहले हाथ से लहसुन निकालने पर एक किसान 5 क्यारी से ही लहसुन निकाल पाता था। एक बीघा में 100 क्यारियां होती हैं। अब एक लेबर एक दिन में एक बीघा में मतलब 100 क्यारियों में से लहसुन उखाड़ सकता है। इस टाइम की बचत करने के लिए मैंने लहसुन की फसल निकालने के लिए कुली मशीन बनाई। 12,500 से लेकर 15,000 हज़ार रुपये तक की लागत में बनी इस मशीन की राजस्थान के कोटा में बहुत मांग है, क्यूंकि यहाँ लहसुन ज्यादा होता है। इस मशीन को ट्रेक्टर के पीछे टोचिंग करके काम लिया जाता है। मशीन के पत्ते ज़मीन में 7-8 इंच या 1 फ़ीट तक गहरे जाते हैं और मिट्टी को नरम कर देते हैं, जिससे कि लहसुन को ढीली पड़ चुकी मिट्टी से आसानी से इकट्ठा किया जा सकता है।

4. पुदीने की मशीन

4. पुदीने की मशीन

अरविंद ने सूखा पुदीना, धनिया और मैथी के लिए भी जुगाड़ से मशीन तैयार की। इसके अलावा 33×62 इंच का एक फ्रेम बनाया। फ्रेम पर एक कटर सिस्टम लगाया जो पुदीने और डंठल को काटता था और डस्ट को हटाने के लिए पंखा लगाया। गांवों में तार वाले देसी माचे (पलंग) होते हैं, इस पर महिलाएं आमने सामने बैठ कर पत्ती और डंठल को अलग करती हैं। बाद में छोटे डंठल को अलग से निकाला जाता है। इसमें पूरे दिन में 80 किलो से ज्यादा सूखा पुदीना साफ नहीं किया जा सकता। बाद में मिट्टी को भी एक पंखा चलाकर साफ़ किया जाता है।

90 हजार रुपए तक में बिकती है यह मशीन

90 हजार रुपए तक में बिकती है यह मशीन

अब मज़दूरी 150 से 200 रुपए प्रतिदिन है। हाथ से किए गए काम में कोई न कोई कमी रह ही जाती है। इसलिए मार्किट में भाव कम मिलते हैं, श्रम भी लग रहा है और भाव भी नहीं मिल पा रहा है, ऐसे में कैसे बेच पाएंगे? अरविंद द्वारा बनाई मशीन से सूखा पुदीना, धनिया और मैथी की 30-30 किलो की 30 बोरियां एक घंटे में तैयार हो जाती हैं। एक आदमी अकेले यह काम कर लेता है। 55,000 से लेकर 90,000 तक की इस मशीन की दिल्ली, यूपी, गुजरात में काफी मांग है।

 5. मिर्च साफ करने की मशीन

5. मिर्च साफ करने की मशीन

मथानिया मिर्च के लिए फेमस है। अब भी वहां कई किसान मिर्च की खेती करते हैं। ऐसे में भला अरविंद सांखला मिर्च साफ करने वाली मशीन बनाने में कहां पीछे रहने वाले थे। मिर्च को सूखने के लिए धुप में रखा जाता है। इस तरह सुखाने में मिट्टी रह जाती है। खाने में किरकिर आती है और स्वाद भी खराब हो जाता है। इसलिए अरविंद ने एक ऐसी मशीन तैयार की जिससे मिर्च से बीज, कंकड़, मिट्टी अलग हो जाती है और 250 किलो माल प्रतिघंटा साफ़ हो जाता है। इस मशीन की कीमत 40,000 से लेकर 75,000 हज़ार रुपये तक है। पहले मिर्च देश से बाहर जाती थी तो मिर्च का सैंपल लैब टेस्टिंग में फ़ैल हो जाता था। इसलिए मिर्च को विदेश में भेजना बन्द हो गया था। अब इस मशीन से तैयार माल लेब टेस्टिंग में ओके पाया गया है और विदेश जा रहा है।

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English summary
Jodhpur's Arvind Sankhala passes 11th and earns 16 lakh rupees every month
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