चालक का बेटा बना CA, जो लोग पिता से बोलते थे इसको ऑटो चलाना सिखा दो, वो भी अब कर रहे गर्व
जोधपुर। किसी पिता के लिए इससे बड़ी गर्व की बात और क्या होगी कि उसके बेटे पर कभी जो लोग ताने मारते थे। उसकी हिम्मत तोड़ देना चाहते थे वो ही लोग आज उस पर गर्व कर रहे हैं। उसे असल मायने में 'गुदड़ी का लाल' और कामयाबी की मिसाल बता रहे हैं।
यह भाग्यशाली पिता हैं इंद्रजीत साहनी, जो 34 साल पहले रोजगार की तलाश में बिहार के सिवान जिले से राजस्थान के जोधपुर में आए। शुरुआत के चार साल तक एक फैक्ट्री में काम किया और फिर ऑटो रिक्शा चलाने लगा। इस बीच जोधपुर में बेटा नीलेश का जन्म हुआ। अब इसी नीलेश ने पिता इंद्रजीत का सिर गर्व से ऊंचा कर दिया है। हाल ही घोषित किए गए सीए के परिणाम में नीलेश ने भी सफलता हासिल की है। पूरे जोधपुर में ऑटो चालक के बेटे नीलेश का सीए बनना चर्चा का विषय बना हुआ है।
पापा बोले-तुम्हें सीए बनाना है...
मीडिया से बातचीत में नीलेश ने बताया कि जब वह एक बार स्कूल से आया तो पिता बोले कि तुम्हें बनाना चाहता हूं। उस दिन वह पहली बार किसी चार्टर्ड एकाउंटेंट से मिले थे। पापा के कहने के बाद से ही नीलेश ने सीए बनने की ठान ली। जब सीए के कोर्स में एडमिशन लिया तो लोगों ने पिता से कहा कि बेटे को भी ऑटो चलाना सिखा दो। सीए बहुत कठिन कोर्स है। इससे नहीं हो पाएगा, ना ही आप इसकी पढ़ाई का खर्चा उठा पाओगे लेकिन आज वो ही लोग भी मुझ पर गर्व कर रहे हैं।
नीलेश सीपीटी में चौथे स्थान पर रहा
नीलेश ने बताया कि लोगों के ताने चुभते थे, मगर हिम्मत नहीं हारी। पिता के ख्वाब को पूरा करने के लिए कड़ी मेहनत की। सीपीटी में जोधपुर में चौथे स्थान हासिल किया। इसके बाद निजी कोचिंग संचालक बीएम बियानी सर ने सीए बनने में मदद की। दो बार एग्जाम क्लियर नहीं कर पाने से हौसला थोड़ा डगमगाया लेकिन मम्मी-पापा की आंखों में खुशी देखने के लिए फिर मेहनत शुरू की। रोजाना 16-18 घंटे पढ़ाई करता था। बस के पैसे बचाने के लिए 10 किलोमीटर तक साइकिल से स्कूल जाया करता था।
एक कमरे का घर वो किराए का
नीलेश के पिता ने बताया कि वे जोधपुर में एम्स रोड पर लोडिंग ऑटो चलात हैं। वहां आसपास के लोगों को पढ़ा-लिखा देखकर उनके मन में भी आता था कि वे भी अपने बेटे को पढ़ाएं ताकि वो भी अच्छे ऑफिस में बैठ कर सम्मान से कमाए। 300 से 500 रुपए रोज की कमाई के बीच बेटे को सीए बनाने की सोचना भी दिन में सपने देखने जैसा था। बेटे के जुनून ने उनमें उम्मीदें जिंदा रखीं। किराए के घर में सिर्फ एक कमरा है। बेटा देर रात तक पढ़ता था। उनकी नींद खराब ना हो इसलिए वो छत के ऊपर चला जाता था। वहां वह स्ट्रीट लाइट की रोशनी में स्टडी करता। आज उसे सीए बना देखकर उनकी जिंदगी की साधाना सफल हो गई है।